इसमें हम दोनों हाथों से अपने पैर के अँगूठे को पकड़ते हैं, पैर के टखने भी पकड़े जाते हैं। चूँकि हाथों से पैरों को पकड़कर यह आसन किया जाता है इसलिए इसे पादांगुष्टासन कहा जाता है।

सावधानी संपादित करें

रीढ़ की हड्डी में कोई शिकायत हो तथा साथ ही पेट में कोई गंभीर बीमारी हो ऐसी स्थिति में यह आसन न करें।

लाभ संपादित करें

यह आसन मूत्र-प्रणाली, गर्भाशय तथा जननेन्द्रिय स्रावों के लिए विशेष रूप से अच्‍छा होता है। इससे कब्ज की शिकायत भी दूर होती है। यह पीठ और रीढ़ की हड्डी को मजबूत और लचीला बनाता है तथा जंघाओं और पिंडलियों की माँसपेशियों को मजबूत करता है। आँतों के व पेट के प्राय: समस्त विकार इस आसन को नियमित करने से दूर होते हैं। इससे सुषुम्ना नाड़ी का खिंचाव होने से उनका बल बढ़ता है।

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें