पानीपत का प्रथम युद्ध

दिल्ली सल्तनत की मुगल विजय के दौरान 1526 की लड़ाई
(पानीपत की पहली लडाई से अनुप्रेषित)

पानीपत का पहला युद्ध, उत्तरी भारत में लड़ा गया था,और इसने इस इलाके में मुग़ल साम्राज्य की नींव रखी। यह उन पहली लड़ाइयों में से एक थी जिसमें बारूद, आग्नेयास्त्रों और मैदानी तोपखाने को लड़ाई में शामिल किया गया था।

पानीपत का प्रथम युद्ध
मुग़लों की विजय का भाग
The battle of Panipat and the death of Sultan Ibrāhīm, the last of the Lōdī Sultans of Delhi

बाबरनामा से पानीपत का प्रथम युद्ध
तिथि 21 अप्रैल 1526
स्थान पानीपत, हरियाणा, भारत
परिणाम मुग़लों की निर्णायक विजय
क्षेत्रीय
बदलाव
दिल्ली सल्तनत पर मुग़लों का कब्ज़ा
योद्धा
साँचा:Country data मुग़ल साम्राज्य दिल्ली सल्तनत
सेनानायक
बाबर सुल्तान इब्राहिम लोदी
शक्ति/क्षमता
12,000-25,000 मुग़ल एवं अफ़ग़ान,[1]
सम्बद्ध भारतीय सैनिक,[1]
24 मैदानी तोपें
50,000-100,000 सैनिक,[1]
300 युद्ध हाथी[2]
मृत्यु एवं हानि
कम 20,000

सन् 1526 में, काबुल के तैमूरी शासक ज़हीर उद्दीन मोहम्मद बाबर की सेना ने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी, की एक ज्यादा बड़ी सेना को युद्ध में परास्त किया।

युद्ध को 21 अप्रैल को पानीपत नामक एक छोटे से गाँव के निकट लड़ा गया था जो वर्तमान भारतीय राज्य हरियाणा में स्थित है। पानीपत वो स्थान है जहाँ बारहवीं शताब्दी के बाद से उत्तर भारत के नियंत्रण को लेकर कई निर्णायक लड़ाइयां लड़ी गयीं।

एक अनुमान के मुताबिक बाबर की सेना में 12,000-25,000 के करीब सैनिक और 20 मैदानी तोपें थीं। लोदी का सेनाबल 130000 के आसपास था, हालांकि इस संख्या में शिविर अनुयायियों की संख्या शामिल है, जबकि लड़ाकू सैनिकों की संख्या कुल 100000 से 110000 के आसपास थी, इसके साथ कम से कम 300 युद्ध हाथियों ने भी युद्ध में भाग लिया था। क्षेत्र के हिंदू राजा-राजपूतों इस युद्ध में तटस्थ रहे थे, लेकिन ग्वालियर के कुछ तोमर राजपूत इब्राहिम लोदी की ओर से लड़े थे।

इस युद्ध में बाबर ने तुलुगमा पद्धति का प्रयोग किया था। इसका एक अन्य नाम उच्चतर युद्ध कौशल था। यह अब तक के युद्धों में पहला ऐसा युद्ध था जिसमें इसका प्रयोग किया गया।

बाबर के द्वारा इस युद्ध में उस्मानी विधि ( तोप सज़ाने की विधि) का भी प्रयोग किया गया। ये इसने तुर्को से सीखी थी। पानीपत के इस युद्ध मे इब्राहिम लोधी युद्ध भूमि मे मारा गया।। इस तरह बाबर की विजय हुई। बाबर ने कबूल की जनता को चांदी के सिक्के दिए। इस उपरांत बाबर को कलंदर की उपाधि दी गई।

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. (Davis 1999, pp. 181 & 183)
  2. (Davis 1999, p. 181)

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें