पार्श्वनाथ मंदिर, जैसलमेर
दुर्ग में स्थित पार्श्वनाथ तीर्थकर का मंदिर अपने स्थापत्य मूर्तिकला व विशालता हेतु प्रसिद्व है। वृद्धिरत्नमाला के अनुसार इस मंदिर में मूर्तियों की कुल संख्या १२५३ है। इसके शिल्पकार का नाम ध्त्रा है। पार्श्वनाथ मंदिर के प्रथम मुख्य द्वारा के रूप में पीले पत्थर से निर्मित शिल्पकला से अलंकृत तोरण बना हुआ है। इस तोरण के दोनों खंभों में देवी, देवताओं, वादक-वादिकाओं को नृत्य करते हुए, हाथी, सिंह, घोंे, पक्षी आदि उकेरे हुए हैं, जो सुंदर बेल-बूटों से युक्त हैं। तोरण के उच्चशिखर पर मध्य में ध्यानस्थ पार्श्वनाथ की मूर्ति उत्कीर्ण हुई है। द्वितीय प्रवेश द्वार पर मुखमंडप के तीन तोरण व इनमें बनी कलामय छत विभित्र प्रकार की सुंदर आकृतियों से अलंकृत है। तोरण में तीर्थकरों की मूतियाँ वस्तुतः सजीव व दर्शनीय है।
गुजरात शैली के प्रतिरुप इस मंदिर में सभा मंडप, गर्भगृह, गूढ मंडप, छः चौकी, भभतिकी ५१ देव कुलिकाओं की व्यवस्था है। इन कुलिकाओं में बनी हुई मूर्तियाँ अत्यंत ही मनोहारी है। सभामंडल की गुंबदनुमा छत को वाद-वादनियों की मनोहारी मुद्राओं से सजाया गया है। सभामंडप के अग्रभाग के खंभे व उसके बीच के कलात्मक तोरणों पर विभित्र प्रकार की आकृतियों में तक्षण कला के अनुपम प्रकार के उदाहरण दृष्टिगोचर होते हैं। इस मंडप में ९ तोरण है। इसी सभामंडप में पीले पाषाण की ५x ४-१/२ फीट ऊँचाई वाली चार शिलाएँ हैं। में स्थित देवी-देवताओं के उपस्थित होने के आधार पर है।
मंदिर के सभा मंडप के आठ सुंदर कलापूर्ण तोरण बने हैं। खंभों के निचले भागों में हिंदू देवी-देवताओं की सुंदर खंी आकृतियाँ बनी हैं। गुंबद की बनाबट आकर्षक है। दूसरी ओर तीसरी मंजिल पर भगवान चंद्रप्रभू विराजमान हैं, जो चौमुख रूप में हैं। नीचे के सभा मंडप में चारों तरफ जाली का काम हुआ है। मंदिर में गणेश को विभिण मुद्राओं में प्रदर्शित किया गया है। यहाँ तीसरे मंजिल पर एक कोठरी मे रखी धातु की बनी चौबासी व पंच तीर्थी मूर्तियों का संग्रह है।