1860 ईस्वी में महान रूसी लेखक इवान तुर्गनेव द्वारा रचित उपन्यास 'पिता और पुत्र' वर्तमान परिपेक्ष्य में भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना उस दौर में था। तुर्गेनेव ने इस उपन्यास को उस दौर में लिखा था, जब रूस में तानाशाह जार निकोलाई प्रथम के शासन का अंत हुआ था और वहाँ सामाजिक बदलाव अँगड़ाइयाँ ले रही थीं। हर दौर की तरह इस दौर में भी नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी के बीच एक अंतर देखने को मिलता है। नई पीढ़ी में हमेशा एक नई सोच और नए विचारों का प्रार्दुभाव होता है और पुरानी पीढ़ी उसका विरोध यह कहकर करती है कि यह नीतिगत नहीं है, इस उपन्यास के मूल में भी यही विचार निहित है। साथ ही पिता और पुत्र के रिश्ते का जो वर्णन मिलता है वह वाकई दिल को छूने वाला है। उपन्यास के पात्रों के माध्यम से उन्नीसवीं सदी के शुरुआत में रूस की सामाजिक स्थिति कैसी थी, इस पर बारीकी से प्रकाश डाला गया है। बजारोव, अरकादी निकोलाई पेत्रोविच, पावेल पेत्रोविच जैसे अलग-अलग विचारों वाले पात्रों के जरिए इस बात को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है कि जार के शासन के बाद लोगों को किन-किन वैचारिक और सामाजिक संघषों का सामना करना पड़ा है। इन सब के बीच विभिन्न घटनाओं के जरिए लेखक ने किसानों की स्थितियों पर भी प्रकाश डाला है। उपन्यास के केन्द्र में बजारोव है, जो रूस के उस दौर की सामाजिक और मानसिक सोच के बिल्कुल उलट है। वह खुद को निहलिस्ट (कुछ भी नहीं) मानता है, उसका अक्कड़पन ही उसकी सबसे बड़ी खासियत है।[1]

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "'पिता और पुत्र'-गहरी पैठ का मोती". वेबदुनिया. मूल (एचटीएम) से 19 जून 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 मई 2008. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)