पिनगवाँ
पिनगवाँ (Pinangwan) भारत के हरियाणा राज्य के मेवात ज़िले (नूँह ज़िले) में स्थित एक प्राचीन नगर है, इस स्थान पर काफी युद्ध लडे गये इसलिए इसे मेवात जनपद का पानीपत भी कहा जाता हे। यह पुनहाना विधानसभा और गुडगांवा लोकसभा क्षेत्र का एक हिस्सा है।[1][2][3]
पिनगवाँ Pinangwan | |
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निर्देशांक: 27°51′37″N 77°10′09″E / 27.86028°N 77.16917°Eनिर्देशांक: 27°51′37″N 77°10′09″E / 27.86028°N 77.16917°E | |
देश | भारत |
राज्य | हरियाणा |
ज़िला | मेवात ज़िला |
ऊँचाई | 187 मी (614 फीट) |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 12,612 |
भाषा | |
• प्रचलित | मेवाती, हिन्दी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 122508 |
आई॰एस॰ओ॰ ३१६६ कोड | IN-HR |
वेबसाइट | mewat |
इतिहास
संपादित करेंकनिंघम के अनुसार पिनगवाँ कस्बा प्राचीन काल में पिलुवना के नाम से जाना जाता था, सुरसेन राजवंश के दोर मे कस्बे के आसपास के क्षेत्र पीलूवन के नाम से जाना था [[1]], बाद मे इसका नाम छतीमकी भी रहा हे,15 वी शताब्दी मे झिमरावट के खांजादा नूर खां ने नरवरगढ के कछवाहा राजा आस्करण को हराया, नूर खां खांजादा ने आधुनिक पिनगंवा नाम रखा। पिंगलगढ की दंतकथा पिनगवा से मेल नही खाती, पिंगलगढ पींगल नदी के पास बसा था जो पशिचमी राजस्थान मे हे, पिनगंवा के आसपास ना तो पिंगल नदी हे ना पूंगल देश। पिलूवन मे केंद्रित होने के कारण इसका नाम प्राचीन मे पिलूवना था जो पिनगंवा मे परिवर्तित हो गया.फिरोजशा तुगलक के दोर, और मुगल दोर मे पिनगवां खंजादा राजाओ का मुख्य गढ रहा। मुगलकालीन मकबरे और मुगलकालीन बाऊडी बाउडी खांजादो की ऐतिहासिक इमारते इसकी शान बढाती हैं। इसके पश्चिम मे अरावली की पहााड़ी हे। इसकेे उत्तर दिशा ऐतेहासिक गांव रहपुआ है। राजा आस्करण राजा पाठ त्याग कर जब मुथुरा की तीरथ यात्रा पे निकले तो रहपुआ गांव मे उसने रहतुआ बनकर निवास किया।
पिनगवां पर आजादी से पहले खंजादो का अधिकार रहा। मुगलकाल मे ये गढ मुगल एंपायर का अंंग रहा। 1857 की क्रांति मे पिनगवां और आस पास के लोगो ने बढचढकर भाग लिया। क्रांति असफल होने पर अंग्रेजों ने मेवात का दमन किया। अंग्रेजों ने पिनगवां के 82 लोगों को फांसी दी। 1857 के हीरो और बहादुर वीर सदरुद्दीन मेवाती पिनगवां का रहने वाला था। 1947 के बटवारे के बाद पिनगंवा के सभी जागीरदार खांजादे पाकिस्तान पलायन कर गये। इसमे हिंदू और मुस्लिम आबादी भाईचारे के साथ रहती हे। दोनो धर्मों के लोग ईद-दिपावली साथ मिलकर मनाते हैं। यांहा के निवासियों का मुख्य कार्य वयापार और कृषि है।
क़स्बा पिनंगवां का गौरवशाली इतिहास
संपादित करेंआधुनिक पिनगंवा शहर के संस्थापक झिमरावट के प्रसिद्ध जागीरदार बहादुर क़ादिर ख़ान ख़ानज़ादा उर्फ क़द्दू ख़ान ख़ानज़ादा के पुत्र बहादुर नूर खान हैं। नूर खान खानजादा ने 1424 बिक्रमी में राजा आसकरण को पराजित करने के पश्चात इसे आबाद किया। इस स्थान पर पहले एक छोटा सा गांव "छतीमकी" बस्ता था। एक तीतर के शिकार को लेकर राजा आसकरण व नूर खान के बीच पहले तो हल्की नोक-झोंक हुई और फिर नोबत युद्ध तक पहुंच गयी। बहादुर नूर खान खानजादा ने राजा आसकरण की सारी संपत्ति छीन ली और उसके महलों और घरों को ध्वस्त कर दिया। संचित धन से मौजूदा पिनंगवा को बसाया। (हेरिटेज आॅफ मेवात बहवाला मुक्का ए मेवात ) एक दूसरी रिवायत के मुताबिक इस कस्बे का पुराना नाम "पिंगलगढ" है। (मेव क़ौम और मेवात) मगर प्रथम रिवायत ज़्यादा मज़बूत व मबनी बर हक़ीक़त है।
- क़स्बे_के_नामकरण_का_कारण
आबादी के लिए जगह का चयन करने के बाद नूर खान कस्बे के प्रतिष्ठान की ओर आकर्षित हुवा। इस बीच एक नौकर ने उन्हें एक लगा हुवा पान पेश किया जो अचानक नूर खान के हाथों से गिर गया। नूर खान खानजादा ने तुरंत अपनी बरछी उसी स्थान पर गाड दी और अच्छे शगुन के तौर पर इस स्थान का नाम (पान + गंवां) "पानगवां" रख दिया (यानी पान गंवाने का स्थान), जो अतिउपयोग के कारण पानगवां से पिनंगवां हो गया। (तारीखे जिला गुड़गांव, पृष्ठ संख्या -52),
- क़ादिर_उर्फ_क़द्दू_के_पुत्र_व_नस्लों_के_निवास_स्थान
कहा जाता है कि स्वर्गीय कादिर खान उर्फ क़द्दू ख़ान ख़ानज़ादा के तीन लडके थे, (1) - नूर ख़ान खानज़ादा ::: - उन्होंने पिनंगवां को बसाया और इसे अपना शाश्वत निवास स्थान चुना, पिनंगवां के खांजादे उसी के वंशज हैं, जो भारत के विभाजन के समय पाकिस्तान चले गए। (२) - नसीर खान खानजादा ::: - बसई खानजादा को बसाने वाले यही थे। बसई खानजादा के खानजादे नसीर खान की ही नस्लें हैं, (३) - हामिद खान ::: -इसने झिमरावट को अपने निवास स्थान के तौर पर चुना। झिमरावट से संबंधित खानजादे उसी की औलाद हैं।
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संपादित करें- ऐतिहासिक_पसे_मंज़र
ऐतिहासिक रूप से इस शहर का बहुत महत्व है। इस स्थान पर इतिहास के कई महत्वपूर्ण युद्ध लड़े गए हैं। रेवाड़ी (धुंदगढ़) के बाद, इस मोर्चे पर महमूद गजनवी को सबसे ज्यादा नुकसान हुवा। पिनंगवां के पास लाहबास गांव के निकट कई खूबसूरत मक़बरे उसी काल की याद दिलाते हैं। इसी सरज़मीन पर बहादुर मलका मेव ने ग़ियासुद्दीन बलबन से दो दो हाथ किये थे। इसी स्थान पर मेवों ने एक छापेमार लडाई में मुगल सम्राट शाहजहाँ के मददगार फौजी दस्ते को तितर-बितर कर दिया था। इसी रणभूमि में दादाजी हीरा मेव ने प्रसिद्ध जाट राजा व शासक सूरजमल के सेनापति का सर क़लम किया था। (क्रांति 1857 मेवातियों का हिस्सा, पेज 109, बहवाला "मेव क़ौम और मेवात" मास्टर अशरफ साहिब पचनाका, पृष्ठ नं-55)
क्रांति 1857 के गदर में विद्रोही सेना का सफल नेतृत्व करने वाला सेनापति व स्वतंत्रता सेनानी सदरुद्दीन मेव इसी एतिहासिक कस्बे का निवासी था। इसी सदरुद्दीन की फौज ने मेवात से अंग्रेज़ी सेना व अंग्रेज परस्तों का सफाया कर दिया था। (Revolt of 1857 in Haryana, by KC Yadav) पिनंगवां की इस बहादुर विद्रोही टुकड़ी ने अंग्रेज़ों की ताकत के पतन के बाद ताऊडू, सोहना, फिरोजपुर झिरका, पूनाहाना और पेनांगवा में ब्रिटिश कट्टरपंथियों की बहुत बड़ी लूटपाट की। इसी तेश में दिल्ली के पतन के बाद पहले से कहीं अधिक मजबूत होने वाले अंग्रेज़ ने दोगुने उत्साह के साथ जब मेवाती विद्रोह को कुचलने की योजना बनाई तो एक बार फिर स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा इस नगरी को अंग्रेजी फौज के विरुद्ध मोर्चा बनने का गौरव प्राप्त हुआ।
(क्रांति 1857 मेवातियों का हिस्सा बहवाला सरदार मदार खान गंगवानी, मासिक पत्रिका "मेवात" लाहौर, पेज- 19, मेव क़ौम और मेवात मास्टर अशरफ पचानका, पृष्ठ 143)
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संपादित करेंभारत के विभाजन के दौरान हुई उथल-पुथल के भयावह दृश्य को भी इसने अपनी आंखों से देखा है। इस शानदार ऐतिहासिक शहर (पिनंगवा) की गोद में, खानज़ादा काल के खंडहर अपने सुनहरे शासन का आज तक बखान कर रहे हैं। बावली और मस्जिदों के अलावा, खानज़ादा प्रमुखों के खंडर मकबरे आजतक विनाश के कगार पर खड़े अपने ख़ातमे के मुंतज़िर है। नम आंखों के साथ हलाकत का इंतजार कर रहे इन शोकाकुल खंडहरों का कोई पुरसाने हाल नहीं। इस शहर को महत्वपूर्ण ऐतिहासिक युद्धों और आकर्षणों के संयोजन के कारण मेवात के पानीपत के रूप में जाना जाता है।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "General Knowledge Haryana: Geography, History, Culture, Polity and Economy of Haryana," Team ARSu, 2018
- ↑ "Haryana: Past and Present Archived 2017-09-29 at the वेबैक मशीन," Suresh K Sharma, Mittal Publications, 2006, ISBN 9788183240468
- ↑ "Haryana (India, the land and the people), Suchbir Singh and D.C. Verma, National Book Trust, 2001, ISBN 9788123734859