पियारा सिंह गिल
पियारा सिंह गिल एक महान भारतीय नाभिकीय भौतिकशास्त्री थे जो ब्रह्मांडीय किरण नाभिकीय भौतिकी में अग्रणी थे। इन्होने अमेरिका की मैनहट्टन परियोजना में काम किया था। इसी परियोजना ने विश्व के प्रथम परमाणु बम और इसकी तकनीक की खोज की थी। वह केंद्रीय वैज्ञानिक - यंत्र संगठन (भारत) मे पहले निद्रेशक रहे। उनिवरसीटि औफ छिकागो (1940) मे अध्येता रहे। वह टाटा इन्सटिठ्युट औफ फंड्म्नतल रिस्र्च (1947) मे अनुसंधान प्रोफेसरशिप के साथी रहे और् परमाणु ऊर्जा आयोग नई दिल्ली के साथ काम किया। उन्होने अपनें वैज्ञानिक जीवन में विभिन्न स्ंस्थानों में कायृ करके भारत के वैज्ञानिक कायृक्रमों को गति प्रदान की। १९५०-१९६० मे गिल, भारत की परमाणु हथियार रणनीति मे नेहरु जी के सल्हाकार रह चुके है। रॉबर्ट ओप्पेन्हेइमेर गिल के सहयोगी और दोस्त थे, मेनहेतन प्रोज्ट मे साथ काम किया।
Piara Singh Gill | |
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चित्र:P.S.GILL.jpg पियारा सिंह गिल | |
जन्म |
28 अक्टूबर 1911 चेला, जिला होशियारपुर, पंजाब, ब्रिटिश इंडिया |
मृत्यु |
23 मार्च 2002 (आयु 90 वर्ष) |
आवास | भारत |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
क्षेत्र | नाभिकीय भौतिकी |
संस्थान |
Tata Institute of Fundamental Research Atomic Energy Commission of India Aligarh University Punjab Agricultural University University of Chicago First Director of Central Scientific Instruments Organization (CSIO) |
शिक्षा |
University of Southern California University of Chicago |
डॉक्टरी सलाहकार | Arthur Compton |
प्रसिद्धि | उन्नत परमाणु ब्रह्मांडीय किरण अनुसंधान, वैज्ञानिक जिन्होंने मैनहट्टन परियोजना में काम किया तथा केंद्रीय वैज्ञानिक उपकरण संगठन (CSIO) के प्रथम निर्देशक थे। |
व्यक्तिगत जीवन
संपादित करेंडॉ गिल का जन्म 28 अक्टोबर 1911 को होशियारपुर जिले (पंजाब में) के चेला नामक एक छोटे से गाव मे हुआ था। उनके पिता श्री बस्ंत सिंह तथा माता श्रीमती प्रताप कौर थी। उनका परिवार आधुनिक सुखसुविधाओं से संपन्न था। उनके बडें भाई का नाम सरदार हरीसिंह "खान्दा" था, जो राष्ट्रीय आंदोलन की गतिविधियों को संचालित करते थे। वह नेहरु जी के खरिब दोस्त थे जो उनके वैज्ञानिक सफलता से प्रभावित थे।
शिक्षा व अध्ययन
संपादित करेंडॉ गिल ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव से तीन मील दुर स्थित कोट फतुही के प्राथमिक विघ्यालय में प्राप्त की। पांचवी तक इस विघ्यालय में पढने के बाद उन्होने नादलोन के आर डी हाई स्कूल में छठी कक्षा प्रवेश लिया और नवीं कक्षा तक वहीं पढते रहे। किंतु मैट्रिक की परीक्षा उन्होने महिपालपुर के खालसा हाई स्कूल से उत्तीण्र की। 1928 में उन्होने हाई स्कूल की परीक्षा पास की और अपनी पढाई जारी रखने के लिए पनामा चले गए, वहां से उन्हें आगे संयुक्त राज्य अमेरिका जाना था। संयुक्त राज्य अमेरिका के विश्वविघ्याल्य में प्रवेश के लिए उन्हें आगे पय्राप्त धन की आवश्यकता थी अतः उन्होने पनामा में एक वष्र तक अथक परिश्रम कर काफी धन एकत्रित किया। वह अपने उह्देश्य में कम्रशील रहे तथा उन्हें कैलिफोनिया विश्वविघ्यालय में प्रवेश मिल गया। कैलिफोनिया के बाद गिल ने 1930 में फ्रांसिस्कों की ओर प्रस्थान किया। उन्होंने गणित के सुधार के लिए रूजवेल्ट हाई स्कूल में प्रवेश लिया।
गुलमगृ में सबसे कॉस्मिक किरणों की पहली प्रयोगशाला की स्थापना
संपादित करें१९५० में अमेरिकन फिलॉसिफिकल सोसायटी ने उन्हे अपने यहां आमंत्रीत किया, जहा उन्होने बाटोल रिसचृ फाउंडेशन के निदेशक स्वृगीय एफ डब्लू जी स्वप्न को शोध कायो में सहयोग दिया।
संस्थाओं की सदस्यता व फेलोशिप
संपादित करेंदेश को कॉस्मिक किरण अनुस्ंदान में पहचान दिलाने वाले डॉ गिल को कई संस्थानों ने अपना सदस्य बनाया। वह 1945 में भारतीय राष्ट्रिय संस्थान के फेलो बने। उन्होने भारतीय विज्ञान संस्थान में ४ वषृ तक विदेश सचिव के रूप में कायृ किया। डॉ गिल 1946 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के भौतिक विज्ञान के अध्यक्ष बने। उन्होने दो वषृ तक भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी तथा भारतीय भौतिकी सोसायटी की अध्यक्षता भी की। उन्हें साहा इंस्टीट्यूट ऑफ न्युक्लियर फिजिक्स के प्रशासन म्ंड्ल व भारतीय विज्ञान विकास परिषद कि कायृकारिणी की सदस्यता भी प्रदान कि गई। वह भारतीय भौतिकी सोसायटी, पंजाब विश्वविघ्यालय, राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के फेलो भी रहे। डॉ गिल को अमेरिका की सिग्मा इलेवन तथा अमेरिकन फिजिकल सोसायटी ने भी अपना फेलो बनाकर सम्मानित किया।