पुष्प दलविन्यास
पुष्प दलविन्यास कली में उसी चक्र की अन्य एककों के सापेक्ष बाह्यदल अथवा दल के लगे रहने के क्रम को पुष्पदल विन्यास कहते हैं। पुष्प दलविन्यास के प्रमुख प्रकार कोरस्पर्शी, व्यावर्तित, कोरछादी, ध्वजक होते हैं। जब चक्र के बाह्यदल और दल एक दूसरे के किनारों को केवल स्पर्श करते हो उसे कोरस्पर्शी कहते हैं जैसे कैलोट्रॉपिस। यदि किसी दल अथवा बाह्यदल का किनारा अगले दल पर तथा दूसरे तीसरे आदि पर अतिव्याप्त हो तो उसे व्यावर्तित कहते हैं। इसके उदाहरण: गुढ़ल, भिण्डी तथा कपास हैं। यदि बाह्यदल अथवा दल दूसरे पर अतिव्याप्त हो तो उसकी कोई विशेष दिशा नहीं होती, तो इस प्रकार की स्थिति को कोरछादी कहते हैं। इसके उदाहरण गुलमोहर है। मटर, सेम में पाँच दल होते हैं। इनमें से सबसे बड़ा (मानक) दो पार्श्विक दलों को और ये दो सबसे छोटे दलों (कूटक) को अतिव्यापित करते हैं। इस प्रकार के पुष्प दलविन्यास को ध्वजक अथवा चित्रपतंगीय कहते हैं।