पूर्वोत्तर भारत का लोक साहित्य और नारी
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-डॉ. गोमा देवी शर्मा
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- भूमिका
- असम की लोक कथाओं में नारी
- मणिपुर की लोकथाओं में नारी
- त्रिपुरा की लोककथाओं में नारी का स्वरूप
- अरुणाचल प्रदेश एवं अन्य पूर्वोत्तर भारतीय राज्यों की लोककथा और नारी
1. भूमिका
पूर्वोत्तर भारत आठ राज्य रूपी मनकों की सुंदरतम एक माला है। यहाँ की नैसर्गिक प्राकृतिक छटा हर पथिक के दिलों में अमिट छाप बनकर बस जाता है। प्राचीनकाल से इस भूमि में विभिन्न पौराणिक घटनाएँ घटित हुई हैं। इन राज्यों में लोक साहित्य का विकास भी प्रचुर मात्रा में भरा हुआ है जो इस भूमि के ज्ञान साहित्य का परिचायक हैं। पूर्वोत्तर भारत का हर राज्य भारत के अन्य राज्यों की तरह विविध बिडंबनाओं भरे नारी जीवन को उजागर करता है। यहाँ के जनजीवन में नारी का विशिष्ट रूप विद्यमान है। मेघालय की खासी जनजाति जहाँ मातृ सत्तात्मक है, तो वहीं मणिपुर तथा अन्य राज्य नारी के प्रति अपनी उदार दृष्टिकोण रखते हैं। इन प्रांतों में विकसित लोक साहित्य में नारी के विविध रूप देखने को मिलते हैं। यहाँ पूर्वोत्तर भारत के अलग-अलग राज्यों की लोक कथाओं में प्नाप्त नारी के स्वरूप को उजागर करने का आंशिक प्रयास किया गया है।
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2. असम की लोककथाओं में नारी
असम राज्य पूर्वोत्तर भारत का प्रवेश द्वार है। असमिया, बंगाली, बोडो, दिमासा, मिसिंग, कछारी, विष्णुप्रिया मणिपुरी, गोर्खा, टिवा, राभा, मिरी, चाय जनजाति आदि इस राज्य में जीवन यापन करने वाली जनजातियाँ हैं। असमिया लोक कथा में नारी बेटी, माता, भगिनी, पत्नी, राक्षसी आदि विविध रूपों में वर्णित है। इस भूमि में विकसित लोककथा, लोकगाथा, लोकगीत, लोक नाटक, लोक मान्यता आदि से यह स्पष्ट होता है कि प्राचीनकाल से ही असमिया समाज में नारी का स्थान सम्मानित रहा है और वर्तमान समाज में भी यह परंपरा बरकरार है। एक विशिष्ट शक्ति पीठ के रूप में प्रसिद्ध माता कामाख्या देवी का भव्य मंदिर नारी गरिमा को मंडित करने वाला महत्वपूर्ण स्थल है। यह मंदिर प्राचीनकाल से ही तंत्र साधना का केंद्र रहा है। साधना में शक्ति की कामना करना नारी सम्मान का परिचायक है। यहाँ प्रचलित लोक नाटक, लोक सुभाषित, लोक मान्यता, धार्मिक आस्था एवं विश्वास सभी में महिलाओं का स्वतंत्र अस्तित्व मुखरित होता है। जहाँ तक लेककथाओं का प्रश्न है उसमें स्त्री के विविध स्वरूप को दर्शाया गया है जिसमें साहस, चतुराई, त्याग, ममता से भरी, परिवार की धुरी जैसे सत्चरित्र से युक्त है तो वहीं विमाता, इर्ष्यालु जैसे चरित्रों में भी पाई जाती है। कोउला और बोउगा लोककथा में अकेली औरत बड़ी चतुराई से लोमड़ी से निपटती है। पोल खुल गई कथा में मौलाना के पाखंड का पोल मेजबान की बीबी खोल देती है, वहीं निन्यानब्बे के चक्कर लोककथा में सौ करने के चक्कर में अपना सुख-चैन गँवा बैठी कल्याणी परिवार को सँवारने में महिला की भूमिका को दर्शाती है। सर्वज्ञानी कथा में फरिङ की पत्नी बड़ी चतुराई से पति से बोरा धान इकट्ठा करवाती है और पीठा बनाती है। तेजीमोला, चंपावती, सरूमा जैसी कथाओं में स्त्री स्त्री को ही सताने वाली राक्षसी, इर्ष्यालु एवं दयाहीन विमाता के रूप में सामने आती है।
बोडो लोककथा 'एक राजा और एक मूर्ख में मूर्ख की बीवी राजा की कुत्सित कामना पर अपनी बुद्धि चातुर्य से पानी फेर देती है। सुअर और कुत्ते का दाना में पति पत्नी के द्वारा सुअर और कुत्ते को चतुराई से काम पर लगवाना, अरबी की फसल कहानी में पति-पत्नी का मिलकर लोमड़ी से पार पाना- आदि कथाओं में नारी-पुरुष समानता के भाव व्यक्त हुए हैं। आलिरी दाम्रा, चार भाइयों की कथा, गम्बीरा वीर आदि कथाओं में नारी के विभन्न स्वरूप के दर्शन मिलते हैं।
डिमासा लोककथाओं में नारी के महिमामयी रूप को दर्शाया गया है। एक स्त्री सम्बन्ध की पवित्रता को रक्षा करने हेतु घर छोडकर तपस्विनी बन जाती है। इससे यह स्पष्ट होता है कि समाज में स्त्री की भूमिका पुरुष से उच्च होती है। हरिराम नामक व्यक्ति अपनी डिस्रु नाम की कन्या की सुंदरता पर मोहित होकर उससे विवाह का प्रस्ताव रखता है। पिता के कुत्सित प्रस्ताव को ठुकराते हुए डिश्रु रिश्ते की रक्षा हेतु घर-द्वार त्यागकर तपस्विनी बन जाती है। पूर्वोत्तर की लोककथाओं में उच्छृंखलता के लिए कोई स्थान नहीं मिलता। राभा समुदाय की एक लोक गीत हायमारू में देवियों के साथ प्रचीन वीरांगनाओं की स्तुति गाई जाती है। कार्बी लोककथा सरएट-कंबन-हीहीपी नारी प्रधान कहानी है। इसमें इर्ष्यालु और इमान्दार नारी का चित्रण हुआ है। मिसिङ लोककथा आकाश कैसे उँचा हुआ - में बूढ़ी औरत के धान कूटने वाले मूसल लगने के कारण आकाश धरती से बहुत छिटक जाने का उल्लेख है तो कछारी लोककथा नारी का सम्मान करो में पति से पत्नी को चतुर बताया गया है।
3. मणिपुर की लोकथाओं में स्त्री
मणिपुर की भूमि विभिन्न जाति-जनजातियों की क्रीड़ास्थली है। यहाँ मुख्य रूप से मूल मणिपुरी या मितै, नागा, कुकी, गोर्खा, पांगल, कोम, कबुई, मार, पाइते, हिंदीभाषी आदि निवास करते हैं। इन समुदायों में प्रचलित लोक साहित्य एवं लोक मान्यताओं में नारी के विबिन्न स्वरूपों का साक्षात्र होता है। इन समुदायों में प्रचलित लोकमान्यताओं, लोककथाओं आदि में प्रचुर मात्रा में नारी के विविध रूपों के दर्शन होते है। वह देवी, प्रेयसी, बहन, माता, भगिनी, राक्षसी जैसे विभिन्न किरदारों में नारी सजी है। इन लोककथाओं मे नारी-पुरुष का स्वरूप समाज में बराबर रूप में दिखाई देता है। मणिपुर में देवी उपासना प्राचीनकाल से होती आई है। इससे नारी शक्ति का महत्व समाज में स्वत: बढ़ जाता है। उत्तर भारत की सामाजिक परंपरा के मुकाबले मणिपुरी समाज नारी को लेकर सदा उदार रहा है। यहाँ इमोइनु पूजा धूमधाम से की जाती है। मान्यता यह है कि इमोइनु घर की देवी है। उन्हें खुश करने से घर-में धन-धान्य और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। दुर्गा पूजा, सरस्वती पूजा, लक्ष्मी पूजा आदि भी यहाँ असीम आस्था के साथ की जाती है। ये विशेष अवस समाज में नारी के महत्व को दर्शाते हैं।
मणिपुर में प्रचलित लोककथाओं में नारी के परिश्रमी एवं बुद्धि चातुर्य को दर्शाया गया है। सहेली ढिबरी लोककथा इसका उत्तम उदाहरण है। इस कथा में बूढ़ी औरत अपनी बुद्धि चातुर्य से स्वयं को ही नहीं पूरे समाज को शातिर चोर से बचाती है। इसमें स्त्री का रक्षक रूप सामने आता है। इसी तरह शंद्रेम्बी-चाइश्रा लोककथा में अच्छी स्त्री एवं ईर्ष्या से ग्रस्त स्त्री के बारे में ज्ञान देती है। लाङ्मैदोन पक्षी लोककथा भी एक ऐसी लोककथा है जिसमें सौतेली माँ के अत्याचार से दम तोड़केर नोङ्दोन्नू नामक लड़की लाङ्मैदोन पक्षियों के झुंड में शामिल होकर चली जाती है। कोम, कबुई, गोर्खा, नागा, कुकी आदि जनजाति की लोककथाओं में भी समाज में स्त्री के विविध स्वरूप एवं भूमिका के बारे में पता चलता है।
4. त्रिपुरा की लोककथाओं में नारी का स्वरूप
त्रिपुरा पूर्वोत्तर भारत का एक सुन्दर राज्य है। उदयपुर की पहाडियों पर स्थित त्रिपुर सुंदरी का भव्य मंदिर समाज में नारी के स्थान को दर्शाता है फिर भी यहाँ की लोककथाओं में स्त्री का स्वरूप विरोधाभासजन्य है। सोइकुत सोईरेंग बाय आमिसङनी की सेवाती पति और उसके भाई बहनों के सदाके लिए बिढ़ने का कारण बनती है वहीं कांचनमाला एक ऐसी दरबारी लोककथा है जिसमें कांचनमाला नामक औरत को अपने ही जेठ के द्वारा यौन शोषित होना पड़ा। चेथुआंग लोककथा में बड़ा भाई अपनी ही बहन पर मोहित होता है और शादी का प्रस्ताव रखता है। पता चलने पर बहन इस कुप्रस्ताव को ठोकर मारते हुए जंगल की ओर पलायन करती है और ईश्वरीय कृपा से पक्षी बन जाती है। अचाई लोककथा पिता के निकम्मेपन को निभाने के लिए झूम खेती में दिन भर परिश्रम करने वाली बहनों की आर्थिक एवं मानसिक दशा का वर्णन करती है और बड़ी बहन अजगर से विवाह कर लेती है। निकम्मा पिता इसे अपना अपमान मानकर अपने दामाद की हत्या कर देता है। इससे क्षुब्ध होकर सभी बहनें आत्महत्या कर लेती हैं।
5. अरुणाचल प्रदेश की लोककथा और नारी
अरुणाचल के प्राचीन मान्याताओं में नारी को विशेष दर्जा प्रदान किया गया है। यहाँ मनाए जाने वाले पर्व त्योहारों के अवसर पर विभिन्न देवियों की पूजा-आराधना इस प्रांत में नारी की महिमा को दर्शाते हैं। इस प्रदेश मे जीवन यापन करने वाली विभिन्न जनजातियों में प्रचलित लोककथाओं में नारी के विभिन्न रूपों के दर्शन होते हैं। कहीं वह सशक्त है तो कहीं असक्त। आबोतानी और मिथुन लोककथा में पत्नी पति से कई गुना चतुर है और वह बड़ी चतुराई से पति को माध्यम बनाकर विभिन्न पशु-पक्षी के साथ मिथुन को स्वर्ग से धरती पर उतारने में सक्षम हो जाती है। इसी प्रकार नागकन्या कथा में भोला ताराओन दुष्ट राजा पर अपनी पत्नी की युक्तियों से विजय प्राप्त करता है। इन दो कहानियों में पुरुष सत्ता पर स्त्री भारी पड़ती दिखाई देती है। गालो जनजाति में प्रचलित तोपो गोने शीर्षक लोककथा में थोड़ी सी चूक के लिए नारी को इतनी बड़ी सजा की हकदार बताया है कि वह शिला बन जाती है। जाईबोने शीर्षक लोककथा जाईबोने नामक सुंदर नारी पात्र पर केंद्रित है। वह एकनिष्ठ प्रेमी है। दिदिकुब नामक खलनायक उसे पाना चाहता है। प्रेम में नाकाम दिदिकुब दोनों प्रेमी-प्रेमिका को मरवा देता है। यहाँ नारी की इच्छा को पुरुषसत्ता द्वारा कुचलने का प्रयास किया गया है। अरुणाचल के विभिन्न जनजातियों की मान्यता में नारी कहीं पूज्य देवी, चतुर, सशक्त रूप में चित्रित है, तो कहीं कमजोर, अविवेकी, विनाशकारी रूप में भी चित्रित है। इसी प्रकार सिक्किम, नागालैंड, मिजोरम आदि राज्यों में प्रचलित लोक मान्यताओं एवं लोक साहित्य में नारी को अनेक रूपों का चित्रण मिलता है। यही मान्यताएँ आज भी इन प्रांतों के नारी जीवन को संचालित कर रही हैं।
सन्दर्भ ग्रंथ सूची
1. Status and Empowerment of Tribal Women in Tripura -Dr. Krishn Nath Bhoumik, Kalpaj Publication, Delhi, 2005
2. देवराज, मणिपुरी लोककथा संसार, राधाकृष्ण प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली, प्रथम संस्कण- 1999
3. 21 श्रेष्ठ लोककथाएँ, असम-डा.गोमा देवी शर्मा -डायमंड प्रकाशन, दिल्ली, 2022
4. बी. जयंतकुमार शर्मा (सं), फुङ्गावारी शिङ्बुल, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, संस्कर- 2013
5. भारतीय अस्मिता और पूर्वोत्तर का लोक कथा जगत - डॉ. स्वर्ण अनील, कंचनजंघा, 2021
6. डॉ. वीरेन्द्र परमार -असम का लोक साहित्य, जनकृति ई-पत्रिका।
लेखक परिचय
ड़़ॉ गोमा देवी शर्मा पूर्वोत्तर भारत की कलमकार हैं। वे हिंदी, नेपाली, मणिपुरी, असमिया एवं अंग्रेजी भाषाओं की ज्ञाता हैं। उनके नेपाली भाषा र संस्कृति (2012), भारतीय नेपाली साहित्यको विश्लेषणात्मक इतिहास (2017,18), मणिपुरमा नेपाली साहित्य: एक अध्ययन (2016), शून्य प्रहर का साक्षी ( अनुवाद, 2022), कोरोना की पहली दस्तक (डायरी, 2023), नारी सर्जक (2023) मौलिक पुस्तकों के अलावा साहित्य लहर (हिंदी कविता संकलन, मणिपुर के कवियों द्वारा रचित कविताओं का संकलन, 2021), 21 श्रेष्ठ लोककथाएँ असम (2022), पूर्वोत्तर भारत के विस्मृत स्वाधीनता सेनानी (2023), ईशान प्रभा (पूर्वोत्तर भारत की कविताओं का संकलन, 2024), ईशान-आलोक (पूर्वोत्तर भारत की चुनिन्दा लोककथाओं का संकलन,2024) संपादित पुस्तकें, दर्जनों हिंदी, नेपाली एवं अंग्रेजी में लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखन के लिए उन्हें असम सरकार द्वारा असम गौरव सम्मान, पूर्वोत्तर हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा हिंदी सेवी सम्मान, हाम्रो स्वाभिमान दिल्ली द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार जैसे सम्मान एवं पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।