पृथूदकस्वामी चतुर्वेद (९वीं शताब्दी) भारत के ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे।उन्होने ब्रह्मगुप्त के दोनों ग्रन्थों ( ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त तथा खण्डखाद्यक) पर भाष्य ग्रन्थ की रचना की। खण्डखाद्यक पर रचित उनके भाष्य का नाम 'खण्डखाद्यकविवरण' है।

काये (Kaye) के अनुसार उन्होने टॉलेमी के प्रमेय को सिद्ध किया है।

भारत में बीजगणित का किस प्रकार से विकास हो रहा था, इसे देखने के लिये पृथूदक स्वामी की ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त की टीका में प्रयुक्त निरूपण-पद्धति (notation) नीचे दी गयी है। इसमें वे समीकरण 10x +8 =x2+110x +8 =x2 +1 को निम्नलिखित विधि से लिखा गया है:[1]

यव 0 य 10 रू 8
यव 1 य 0 रू 1

यहाँ 'यव' , 'यावत् अवद वर्ग' का लघुरूप है। इसका अर्थ है 'अज्ञात राशि का वर्ग' । 'य' , 'यावद् हवत्' का लघु रूप है, जिसका अर्थ है ' अज्ञात संख्या ' । 'रू' , 'रूप' का लघुरूप है जिसका अर्थ 'अचर संख्या' (constant term)। इस प्रकार ऊपर की प्रथम पंक्ति का अर्थ है-

0x2 +10x +80x2 +10x +8

तथा दूसरी पंक्ति का अर्थ है-

x2 +0x +1x2 +0x +1

अतः सम्पूर्ण समीकरण का रूप निम्नलिखित हो जाता है-

0x2 +10x +8=x2 +0x+10x2 +10x +8 =x2 +0x +1

या

10x +8 =x2 +110x +8=x2 +1.