पैराडाइज लॉस्ट (Paradise Lost), जॉन मिल्टन नामक आंग्ल कवि का लिखा हुआ एक महाकाव्य है। इस महाकाव्य को लिखने की इच्छा उनके मन में 1639 में ही अंकुरित हुई थी, परंतु लिखने का काम पूरी लगन के साथ सन् 1658 से शुरू हो सका। यह सन् 1663 में समाप्त हुआ। चार साल के बाद यह प्रकाशित हुआ।

मिल्टन का प्रसिद्ध महाकाव्य : पैराडाइज लॉस्ट

पैराडाइज लॉस्ट, जो अतुकान्त छंद में लिखा गया है, वर्जिल तथा होमर के समय से लिखे गये सभी महाकाव्यों में सर्वोत्कृष्ट है। यह महाकाव्य शक्तिशाली चरित्र-चित्रण, अत्यंत सुंदर कल्पनाशक्ति, विविध प्रभावपूर्ण छंद तथा प्रौढ़ भाषा के आनंद आदि गुणों से पूरिपूर्ण है। यह काव्य पुनर्जागरण काल (रेनेसां) तथा यूरोपीय धर्मसुधार (रिफाॅर्मेशन) काल की प्रवृत्तियों का परिपूर्ण सम्मिश्रण है। इसमें प्राचीन देवतावाद युग और बाइबल के नैतिक उत्साह का सुंदर मिलन है।

इसके लिये प्रकाशक ने मिल्टन को प्रथम प्रकाशन के समय 5 पौंड दिया तथा प्रथम तीन संस्करणों की बिक्री के बाद प्रत्येक संस्करण के लिये पाँच पौंड देने का वादा किया। परंतु मिल्टन को कुल मिलाकर दस ही पौंड मिले। उनकी मृत्यु के बाद उनकी विधवा पत्नी ने प्रकाशन का अधिकार आठ पौंड लेकर बेच दिया।

यह महाकाव्य लंदन स्थित लिट्ल ब्रिटेन नामक पुस्तक विक्रेताओं के बाजार में दुकानों पर अलक्षित अवस्था में पड़ा रहा। कहा जाता है, अर्ल ऑफ डोसेंट ने अपनी रुचि की पुस्तकें खोजते-खोजते पैराडाइज लॉस्ट देख लिया। उस महाकाव्य के कुछ अंश पढ़कर उनको बहुत आश्चर्य हुआ। वे उसकी खरीदकर घर ले गए और उसे पूरा पढ़कर ड्रायन के पास भेज दिया। ड्रायन ने थोड़े ही समय के बाद इस अभिप्राय के साथ वापस कर दिया कि इस पुरुष ने हम लोगों को तो नीचा दिखाया ही, साथ ही पुराने कवियों को भी परास्त कर दिया।

यह महाकाव्य संक्षेप में विषयवर्णन के साथ शुरू होता है : मानव ईश्वरीय आज्ञाभंग अपराध के फलस्वरूप किस प्रकार स्वर्ग से वंचित हो जाता है और शैतान, जो मनुष्य के दु:ख का मूल कारण है, ईश्वर के साथ द्रोह करने के कारण किस प्रकार स्वर्ग से निकाल दिया जाता है। इसके बाद शैतान नरकस्थित अग्निमय तालाब में पड़े हुए अपने अनुयायियों को देखता है। वह अपने बहादुर साथियों को जगाता है और एक बार फिर लड़ाई का खतरा उठाया जाय। परंतु इस खबर को सुनकर कि एक नई दुनिया उत्पन्न की गई है वह इसी के सत्य का ज्ञान प्राप्त करने का निश्चय करता है। शैतान स्वयं इस नए संसार के लिये प्रस्थान करता है। ईश्वर शैतान को देखता है, मानव के विषय में अपने पुत्र के साथ विचार विनिमय करता है, उसके पतन की भविष्यवाणी करता है और अंत में उसकी मुक्ति का उपाय निश्चित करता है। इसी समय शैतान सूर्यमंडल में प्रवेश करता है। और वहाँ नए संसार के माग्र का पता लगाकर स्वर्ग में चला जाता है। वहाँ अदाम तथा ईव्ह में होनेवाले वार्तालाप को छिपकर सुनता है कि क्यों ईश्वर के द्वारा उनपर ज्ञानवृक्ष के फल न खो का प्रतिबंध लगा दिया गया है। आनेवाली आपत्ति के विषय में अदाम को सतर्क करने के लिये रफेल को भेजा जाता है जो शैतान के विषय में अदाम को सब बातें सुनाता है। शैतान किसी साँप के शरीर में प्रवेश करता है तथा ईव्ह को एकांत में देखकर उसके साथ बोलने लगता है। साँप को मनुष्यवाणी में बोलते हुए सुनकर ईव्ह को बड़ा ही आश्चर्य होता है। साँप उससे कहता है ""मैंने ज्ञानवृक्ष के फल का आस्वाद लिया और इसीसे मुझे तत्काल बोलने की शक्ति तथा ज्ञान प्राप्त हुआ।"" कौतूहल से ईव्ह को स्वयं फल खाने की इच्छा होती है और वह अदाम को भी उसे खाने के लिये प्रोत्साहित करती है। अदाम तथा ईव्ह को स्वर्ग से निकाल बाहर करने के लिये मायकेल को भेजा जाता है। अदाम तथा ईव्ह निरुपाय होकर स्वर्ग से बाहर कर दिए जाते हैं। इस प्रकार महाकाव्य समाप्त होता है।

हिन्दी अनुवाद

संपादित करें

पैराडाइज लॉस्ट के विश्व-विश्रुत महाकाव्य होने के बावजूद अब तक हिन्दी में गद्य-पद्य किसी रूप में इसका अनुवाद नहीं हो पाया है। हिन्दी साहित्य के आरंभिक युग से ही महाकवि विद्यापति के माध्यम से हिन्दी की अभिन्न अंगभाषा के रूप में प्रचलित मैथिली में इस महाकाव्य का एक उत्तम पद्यानुवाद हो चुका है। अनुवादक हैं प्रो० मुक्तिनाथ झा। मुक्तिनाथ झा जी ने 'पैराडाइज लॉस्ट' एवं 'पैराडाइज रिगेण्ड' दोनों का पद्यानुवाद किया है और ये दोनों एक ही जिल्द में प्रकाशित हैं। लगभग 400 पृष्ठों की स्वर्गच्युति ओ पुनरपि लभते स्वर्गम् नामक इस अनूदित कृति में 'पैराडाइज लॉस्ट' (स्वर्गच्युति) के अनुवाद में तो अनेक स्थलों को काफी संक्षिप्त किया गया है, अन्यथा मूल की तरह यह अनुवाद भी अत्यंत बृहद् और सामान्य पाठकों के लिए आतंककारी हो जाता, परन्तु 'पैराडाइज रिगेण्ड' (पुनरपि लभते स्वर्गम्) का पद्यानुवाद सम्पूर्ण एवं प्रायः अविकल है।[1]

इन्हें भी देखें

संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ

संपादित करें

आनलाइन पाठ

संपादित करें

अन्य सूचना

संपादित करें
  • darkness visible – comprehensive site for students and others new to Milton: contexts, plot and character summaries, reading suggestions, critical history, gallery of illustrations of Paradise Lost, and much more. By students at Milton's Cambridge college, Christ's College.
  • Selected bibliography at the Milton Reading Room – includes background, biography, criticism.
  1. स्वर्गच्युति ओ पुनरपि लभते स्वर्गम्, प्रकाशक-साहित्यिकी; प्राप्ति-स्थल- श्री रतिनाथ झा, ग्राम-हाटी, पोस्ट-सरिसब पाही, जिला-मधुबनी, पिन-847424; पृ०-272 पर उल्लिखित।