"प्रकाश रसायन" (Photochemistry) के अंतर्गत वे सभी [रासायनिक अभिक्रिया-रासायनिक क्रियाएँ] आ जाती हैं जिनके होने के लिये [प्रकाश] प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष कारक होता है। यद्यपि यह सच है कि लघु वैद्युच्चुंबकीय तरंगों, जैसे एक्स, गामा तथा कॉस्मिक विकिरण द्वारा भी पदार्थो में रासायनिक प्रभाव उत्पन्न होते हैं, किंतु इन सब तरंगों का प्राथमिक प्रभाव आयन उत्पादन है। प्रकाश रसायन में उन्हीं प्रकाशतरंगों के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है जिनके द्वारा विघटन या सक्रियण होता है। इन प्रकाशतरंगों की दैर्घ्यसीमा सामान्य रूप से १०,००० आँगस्ट्राम से १,८०० आँगस्ट्राम तक (१ आँ = १०E-८ सेंटीमीटर) है। प्रकाश रासायनिक अभिक्रियाओं को भलीभाँति समझने के लिये प्रकाश की प्रकृति तथा इसका पदार्थो के साथ होनेवाली अभिक्रियाओं का समझना आवश्यक है। प्रकाश [ऊर्जा] है। यह ऊर्जा इसकी तरंगों की आवृत्ति तथा तीव्रता पर निर्भर करती है। प्रकाश ऊर्जा की ईकाई "फोटॉन' या क्वांटम का मूल्य hn होगा; h को "प्लांकस्थिरांक' कहते हैं|


इसका मान ६.६२ ´ १०E-२७ अर्ग. सेकंड होता है। अगर आवृत्ति अधिक हुई तो प्रकाश तरंग में ऊर्जा भी अधिक होगी।

जब कोई रासायनिक तंत्र प्रकाश का अवशोषण करता है तब इस उर्जा का रूपांतर या तो ऊष्मा में हो जाता है या यह अनुनाद (resonance), प्रतिदीप्ति (fluorescence) या स्फुरदीप्ति (phosphorescence) विकिरण के रूप में उत्सर्जित होती है, या अवशोषित उर्जा तंत्र में रासायनिक क्रिया को उत्पन्न करती है।

पदार्थों द्वारा प्रकाश का अवशोषण "लैंबर्ट के अवशोषण नियम" के अनुसार होता है। लैंबर्ट ने १७६० ई. में प्रयोगों द्वारा ज्ञात किया कि किसी समांग अवशोषणकारी माध्यम के बराबर मोटाईवाली तहें अपने अंदर से गुजरती हुई प्रकाश की तीव्रता का समान अनुपात में अवशोषण करती हैं। इस नियम को निम्नलिखित समीकरण द्वारा प्रकट करते हैं :

Ia = Ii exp (-kd) (1)

यहाँ (Ii) = आपाती प्रकाश तीव्रता ; (Ia) = पारगमित प्रकाश की तीव्रता तथा (d) माध्यम की तह की मोटाई है। (k) को अवशोषण गुणांक कहते हैं। (e) प्राकृतिक लॉगेरिथ्म का आधार है। राबर्ट ब्यून्सेन ने (k) के स्थान पर लोप गुणांक (e) का प्रयोग किया। लोप गुणांक (e) तह की उस मोटाई (सेंटीमीटर में) व्युत्क्रम है जिसको पार करने पर आपाती प्रकाश की त्व्रीाता प्रारंभ में जितनी थी उसका दसवाँ हिस्सा हो जाती है। e = ०.४३४३ k आसानी से सिद्ध किया जा सकता है।

बीयर का अवशोषण नियम बीयर ने १८५२ ई में लैबंर्ट के अवशोषण नियम का विस्तार किया। उसने विलयन के माध्यम द्वारा प्रकाश के अवशोषण का प्रायोगिक अध्ययन किया और इस अध्ययन के फलस्वरूप "बीयर का अवशोषण नियम' प्रतिपादित किया। इस नियम को निम्नलिखित समीकरण द्वारा व्यक्त करते हैं :

Ia = Ii exp (-kd) ........... (2)

(e = प्राकृतिक लॉगिरथ्म का आधार)

या Ia = I1 . 10 E (-exp cd) ......... (3)

जब सांद्रता c ग्रामाणु (gram molecule) में होती है तो K आण्विक अवशोषण गुणांक कहलाता है और e 'ग्रामाणु लोप गुणांक' कहते हैं। e ग्रामाणु विलयन की तह की उस मोटाई (सेंटीमीटर में) के बराबर है जिसके द्वारा Ii का मान Ii/१० हो जाता है। बीयर का नियम तनु विलयन पर लागू होता है; सांद्र विलयन में प्रकाश का अवशोषण बीयर के नियम के अनुसार नहीं बल्कि अलग अलग मूल्य का होता है।

जब कोई फ़ोटॉन किसी एक अणु के बहुत ही समीप आ जाता है, तो फ़ोटान या तो पूर्ण रूप से अवशोषित हो जाता है या वह अवशोषित होकर पुन: एक दूसरी ऊर्जा के फ़ोटान के रूप में उत्सर्जित होता है। जो फ़ोटॉन पूर्णत: अवशोषित हो जाता है उसका रूपांतरण निम्नलिखित प्रकारों से होता है :

१. ऊष्मा अवशोषणकारी तंत्र का ताप बढ़ जाता है।

२. विघटन अणु अपने छोटे छोटे घटकों में विघटित हो जाता है जैसे कख ® +hn क+ ख।

३. उत्तेजितअणु अवशोषणकारी अणु ऊर्जा को तब तक धारण किए रहता है जब तक वह दूसरे अणु से रासायनिक अभिक्रिया नहीं कर लेता, या वह ऊर्जा की दूसरे ऐसे अणु को हस्तांतरित कर देता है जो उसका उपयोग रासायनिक परिवर्तन लाने में करता है।

४. विघटन तथा उत्तेजन प्रकाश-विघटित यौगिक का एक घटक उत्तेजित अवस्था में रहता है, जैसे

कख + hn --> क + ख*

५. आयनीकरण अणु या परमाणु में से संयोजी इलेक्ट्रॉन बाहर निकल जाता है और अणु या परमाणु के स्थान पर धन आयन रह जाता है, जैसे

कख + hn --> क + ख + e (इलेक्ट्रॉन)

६. प्रतिदीप्ति प्रकाश उत्तेजित अणु द्वारा अवशोषित क्वांटा का कुछ अंश, जब इलेक्ट्रॉन निम्नतर ऊर्जातल पर लौटता है, तब तुरंत दूसरे तरंग-दैर्घ्य-विकिरण के रूप में उत्सर्जन हो जाता है। अगर इस प्रकार के उत्सर्जन में कुछ क्षण का विलंब हो जाता है तो यह घटना प्रतिदीप्ति न कहलाकर स्फुरदीप्ति कहलाती है।

७. भौतिक पारस्परिक क्रिया (Physical Interaction) यहाँ क्वांटा का न तो अवशोषण होता है न पुन: उत्सर्जन बल्कि उसका कुछ अंश या तो (क) इलेक्ट्रॉन ले लेता है, जैसा कि कॉम्पटन प्रभाव (Compton effect) में होता है, या (ख) अणु घूर्णन या अणु कंपन ऊर्जा को प्रभावित करता है, जैसा कि रमन प्रभाव (Raman effect) में देखा गया है।

प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध कर दिया गया है कि हर प्रकार की रासायनिक अभिक्रियाएँ जैसे विघटन, पुनर्विन्यास, योगशील, बहुलीकरण श्रृंखला, प्रकाश उत्प्रेरकीय अभिक्रिया प्रकाश द्वारा हो सकती है।

प्रकाश रसायन के नियम

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प्रकाश रासायनिक अभिक्रियाओं की व्याख्या करने के लिये दो नियमों को प्रतिपादित किया गया है।

पहला नियम "ग्राथस ड्रेपर (Grathus Draper) नियम' के नाम से प्रसिद्ध है। यह नियम गुणात्मक है। इस नियम के अनुसार वही प्रकाश पदार्थो में रासायनिक अभिक्रियाओं को उत्पन्न करता है जो उनसे अवशोषित होता है। किंतु इसका यह अर्थ नहीं कि वह सभी प्रकाश रासायनिक अभिक्रिया का सृजन ही करता है जो पदार्थो द्वारा अवशोषित हो जाता है। प्राय: इस अवशोषित प्रकाश का रूपांतरण ऊष्मा में हो जाता है जिससे पदार्थो का ताप बढ़ जाता है।

दूसरा नियम "आइंस्टाइन का प्रकाश रासायनिक तुल्यता नियम" के नाम से प्रसिद्ध हे। यह नियम प्रकाश रासायनिक प्रक्रियाओं की सैद्धांतिक व्याख्या करने के लिये महत्वपूर्ण है। क्वांटम सिद्धांत का उपयोग करके आइंस्टाइन ने इस नियम को प्रतिपादित किया। इस नियम के अनुसार अवशोषणकारी पदार्थ प्रकाश को क्वांटा में अवशोषण करता है तथा प्रकाश रासायनिक परिवर्तन की प्राथमिक प्रक्रिया यह है कि एक अवशोषणकारी अणु प्रकाश के एक ही क्वांटम hn का अवशोषण करता है। किसी प्रकाश रासायनिक परविर्तन का जो अंतिम फल होता है वह अवशोषणकारी अणु की बढ़ी हुई रासायनिक क्रियाशीलता के कारण है, इस क्रियाशीलता के कारण यह तंत्र के गौण रासायनिक क्रियाओं में भाग लेता है। अंतिम फल प्राथमिक तथा गौण क्रियाओं का संकलित (समाकलित) फल होता है।

आइंस्टाइन के नियम के अनुसार प्राथमिक क्रिया में किसी पदार्थ का एक ग्रामाणु (६.०२ x १०E२३ अणु) ६.०२ x १०E२३ क्वांटा का अवशोषण करता है। इस "ग्रामाणु क्वांटा' को एक "आइंस्टाइन' कहते हैं। अगर n आवृत्ति का "फ़ोटॉन' एक ग्रामाणु द्वारा अवशोषित होता है तो अवशोषित ऊर्जा E, Nh n के बराबर होगी, जहाँ N = एक ग्रामाणु में अणुओं की संख्या = ६.०२ x १०E२३। अगर अवशोषित फोटान का तरंगदैर्घ्य l है तो n = c/l, c प्रकाश के वेग (१.० x १०E१० सेंटीमीटर प्रति सेकंड) का संकेत है। अगर l एंग्स्ट्रम में है तो E = अर्ग प्रति ग्रामाणु हुआ। सुविधा के लिये ऊर्जा को कैलोरी में प्रकट करते हैं। एक केलोरी ४.१८४ x १०E७ अर्ग के बराबर होता है। अत: कैलोरी प्रति ग्रामाणु हुआ। ऊपर लिखित समीकरण में N, h, तथा c का मूल्य रखने पर

E = किलो कैलोरी प्रति ग्रामाणु होता है। इस E को आइंस्टाइन कहते हैं जो l लंबाई के विकिरण द्वारा प्राप्त होती है। ऊपर लिखित तथ्यों से यह स्पष्ट है कि l के बढ़ने से जो ऊर्जा प्रति ग्रामाणु अवशोषित होती है वह अधिक होती है तथा लाल प्रकाश द्वारा जो ऊर्जा अवशोषित होती है वह क्षीण होती है।

क्वांटम क्षमता

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प्रकाश रासायनिक अभिक्रियाओं का फल प्राय: प्रक्रिया की क्वांटम क्षमता द्वारा प्रगट करते हैं। क्वांटम क्षमता की परिभाषा निम्नलिखित है : प्रकाश अवशोषक ग्रामाणुओं की संख्या जो प्रकाश के एक आइंस्टाइन का अवशोषण करके रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेती है, उस अभिक्रिया की क्वांटम क्षमता कहलाती है। उसको हम इस प्रकार भी कह सकते हैं कि प्रकाश के एक क्वांटम का अवशोषण करके कितने अणु प्रतिक्रिया में भाग लेते हैं। आइंस्टाइन के नियम के अनुसार एक आइंस्टाइन का अवशोषण करके एक ग्रामाणु प्रक्रिया में भाग लेगा। अत: यह आशा की जाती है कि किसी भी प्रकाश रासायनिक अभिक्रिया की, जिसमें केवल प्रकाश से ही प्रतिक्रिया होती है क्वांटम क्षमता एक होगी। प्रयोगों द्वारा ज्ञात किया गया है कि इनी गिनी रासायनिक अभिक्रियाओं में क्वांटम क्षमता एक या एक के निकटतम होती है। अधिकतर अभिक्रियाआें में यह एक से या तो अधिक होगी या कम। साधारणत: क्वांटम क्षमता एक, दो या तीन बहुत ही सामान्य है किंतु कुछ ऐसी भी प्रकाश रासायनिक अभिक्रियाएँ हैं जिनमें यह या तो बहुत ही अधिक होती है या, बहुत ही कम।

आइंस्टाइन के नियम तथा प्रायोगिक परिणामों में जो आभासी अंतर है उसकी व्याख्या निम्नलिखित रूप से की गई है। अब यह मान लिया गया है कि आइंस्टाइन का नियम केवल प्राथमिक क्रिया के लिये ही लागू होता है जिसमें प्रकाश का वास्तविक अवशोषण करता है किंतु प्राय: यह होता है कि प्राथमिक क्रिया में जो पदार्थ पैदा होते हैं वे प्रतिकारक के अणु के साथ बाद की तापीय क्रियाओं में भाग लेते हैं। इन तापीय क्रियाओं को गौण क्रिया कहते हैं। दूसरे शब्दों में यद्यपि प्राथमिक क्रिया की क्वांटम क्षमता एक होती है, तथापि गौण क्रियाओं के कारण जो अंतिम फल प्राप्त होता है उसकी क्वांटम क्षमता एक होती है, तथा गौण क्रियाओं के कारण जो अंतिम फल प्राप्त होता है उसकी क्वांटम क्षमता एक से भिन्न होती है। किसी भी प्रकाश रासायनिक अभिक्रिया की क्वांटम क्षमता के वास्तविक मूल्य से गौण क्रियाआें का स्वभाव तथा इनकी क्रिया समझने में बड़ी मदद मिलती है। उदाहरण के लिये हाइड्रोजन आयोडाइड (HI) के प्रकाश रासायनिक विघटन की क्वांटम क्षमता दो है। अत: संपूर्ण अभिक्रिया का क्रम निम्नलिखित है :

HI + hn --> H´ I (१)

HI + H --> H2 + I (२)

I + I --> I2 (३)

(१), (२) और (३) के योग से 2H I + hn --> H2 + I

प्रकाश रासायनिक अभिक्रियाओं के अध्ययन का एक मुख्य ध्येय किसी भी अभिक्रिया की क्वांटम क्षमता को प्रयोग द्वारा ज्ञात करना है। इसके लिये क्वांटम क्षमता, j = से प्रगट करना वांछनीय है। प्रकाश अवशोषणकारी पदार्थ के कितने ग्रामाणु क्रिया में प्रति सेकंड भाग लेते हैं इसको परिचित रासायनिक विश्लेषण विधियों द्वारा ज्ञात करते हैं। चूँकि आइंस्टाइन का मूल्य प्रकाश तरंगदैर्घ्य या आवृत्ति पर निर्भर करता है या प्रकाश रासायनिक अभिक्रियाआें के प्रायोगिक अध्ययन के लिये एकवर्णी प्रकाश का उपयोग करना आवश्यक होता है। एकवर्णी प्रकाश का अर्थ है एक निश्चित तरंगदैर्घ्य का प्रकाश। एकवर्णी प्रकाश की अति परिशुद्ध त्व्रीाता "तापीयपुंज' द्वारा ज्ञात हो जाती है। तापीय पुंज द्वारा प्रकाश ऊष्मा में परिवर्तन हो जाता है और इस ऊष्मा द्वारा जो विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है उसको विद्युत धारामापी यंत्रों द्वारा ज्ञात कर लिया जाता है। विद्युतद्वाहक बल की माप क्रियातंत्र की अनुपस्थिति तथा उपस्थिति दोनों में करते हैं। इन दोनों के अंतर से कितने आइंस्टाइन का अवशोषण हुआ ज्ञात हो जाता है।

कई कार्यो में तापीय पुंज से जितनी परिशुद्ध माप होती है उसकी आवश्यकता नहीं होती है। अत: इन सब कार्यों के लिये अवशोषित प्रकाश ऊर्जा को किरण क्रियामापी या प्रकाश-विद्युत सेल द्वारा ज्ञात करते हैं। किरण क्रियामापी एक युक्ति है जिसके द्वारा प्रकाश रासायनिक परिवर्तनों में कितनी विकिरण ऊर्जा अवशोषित हुई ज्ञात करते हैं। आजकल जितने प्रकार के किरण क्रियामापियों का प्रयोग होता है उनमें एक यूरेनाइल ऑक्सेलेट किरण क्रियामापी मुख्य है। इसमें एक पारदर्शक पात्र (स्फटिक) में यूरेनाइल सल्फेट तथा ऑक्सेलिक अम्ल का तनु विलयन रखते हैं। जब इस किरण क्रियामापी को परा बैंगनी या बैंगनी विकिरण द्वारा (२५४० - ४३५० एंग्स्ट्रम) प्रकाशित करते हैं तब ऑक्सेलिक अम्ल का विघटन हो जाता है। प्रयोग के अंत में ऑक्सेलिक अम्ल की कितनी मात्रा विघिटित हुई इसको विलयन में बचे हुए ऑक्सेलिक अम्ल का पौटैशियम परमैंगनेट द्वारा अनुमापन करके ज्ञात करते हैं। प्रयोग आरंभ करने के पहले इस किरण क्रियामापी का प्रकाश के विभिन्न तरंगदैर्घ्यो पर मानकीकरण कर लिया जाता है। ऑक्सेलिक अम्ल की कितनी मात्रा विघटित हुई इसको ज्ञात करके कितने आइंस्टाइन का अवशोषण हुआ ज्ञात हो जाता है। तापीय पुंज की प्रयोग की भाँति इसमें भी अवशोषित आइंस्टाइन की माप क्रियातंत्र की अनुपस्थिति तथा उपस्थिति में की जाती है। इस प्रकार किरण क्रियामापी द्वारा जितनी ऊर्जा ली गई उन दोनों के अंतर के बराबर ऊर्जा, क्रियातंत्र द्वारा अवशोषित हुई। लैटन तथा फॉर्ब्ज (Leighton Forbes) ने प्रकाश रासायनिक अभिक्रियाआें का अध्ययन किरण क्रिया मापी द्वारा अत्यंत सावधानी तथा यथार्थता से किया है। यद्यपि क्वांटम क्षमता तरंग की लंबाई के साथ थोड़ी बहुत बदलती है फिर भी मान लिया गया है कि एक मिश्रित विलयन द्वारा, जिसमें यूरेनाइल सल्फेट तथा ऑक्सेलिक अम्ल की सांद्रता क्रमश: ०.०१ ग्राम अणु तथा ०.०५ ग्राम अणु प्रति लिटर है, २५४०-४३५० एंग्स्ट्रम के प्रकाशतरंग के क्वांटम के अवशोषण से ऑक्सेलिक अम्ल के ०.५७ अणु का विघटन होता है। दूसरे शब्दों में ऑक्सेलिक अम्ल के एक ग्रामाणु का विघटन ३,००० एंग्स्ट्रगम के तरंगदैर्घ्य के १.७५ आइस्टान (१,६६,००० केलोरी) द्वारा होगा।

तापीय क्रियाओं की भाँति प्रकाश रासायनिक अभिक्रियाओं की गति की अभिकारकों की सांद्रता, दाब, विलयन स्वभाव तथा उत्प्रेरक की सांद्रता आदि पर निर्भर करती है। तापीय अभिक्रियाओं की अपेक्षा ये अभिक्रियाएँ ताप से बहुत ही कम प्रभावित होती हैं। इनका ताप गुणांक बहुत ही क्षीण होता है।

प्रकाश रसायन के अंतर्गत प्रकाश सुग्राहीकरणीय अभिक्रियाएँ भी आती हैं। बहुत सी क्रियाओं में प्रकाश अवशोषक अणु क्रिया में स्वयं भाग न लेकर केवल ऊर्जावाहक का कार्य करता है। इसका एक सर्वोत्तम उदाहरण पारद वाष्प के परमाणु हैं जो २,५३७ एंग्स्ट्रम पराबैंगनी विकिरण का अवशोषण करके सक्रिय अवस्था में आ जाते है। इस विकिरण की ऊर्जा १,१२,००० केलोरी प्रति ग्रामाणु है। हाइड्रोजन गैस के एक ग्रामाणु को परमाणु में विघटित करने के लिये १,०२,४०० केलोरी की आवश्यकता होती है; २५३७ एंग्स्ट्रम तरंगदैर्घ्य की ऊर्जा इससे अधिक है। किंतु अगर हाइड्रोजन गैस को ठंडे पारदवाष्प लैप द्वारा प्राप्त २५३७ एंग्स्ट्रम से आलोकित करते हैं तो उसके अणुआओ का परमाणुओं में विघटन नहीं होता। किंतु यदि हाइड्रोजन अणु का विघटन परमाणु में हो जाता है। क्रिया का क्रम निम्नलिखित रासायनिक समीकरणों द्वारा प्रगट करते हैं :

Hg (वाष्प) + २,५३७ एंग्स्ट्रम = Hg* ; H2 + Hg* = Hg+2H हाइड्रोजन गैस २,५३७ एंग्स्ट्रम-विकिरण के लिये पारदर्शी है। पारद वाष्प परमाणु प्रकाश-सुग्राहक कार्य करता है। इस प्रकार प्राप्त हाइड्रोजन परमाणु अति अभिक्रियाशील होते हैं; वे धात्विक ऑक्साइडों, नाइट्रस ऑक्साइड, एथिलीन, कार्बन मोनोऑक्साइड और दूसरे पदार्थो का श्घ्रीाता तथा सुगमता से अपचयन कर देते हैं। उत्तेजित पारद परमाणु केवल हाइड्रोजन का ही नहीं बल्कि ऐमोनिया तथा अन्य कार्बनिक पदार्थो का भी विघटन करते हैं। पारद परमाणु के अतिरिक्त प्रकाश सुग्राहक के अन्य बहुत से उदाहरण हैं जैसे, क्लोरीन, ब्रोमीन, ओजोन तथा यूरेनाइल ऑक्सेलेट। प्रकाश सुग्राहीकरणीय अभिक्रियाएँ सभी अवस्था ¾ ठोस, द्रव तथा गैस-में होती हैं।

विभिन्न प्रकार की प्रकाश रासायनिक अभिक्रियाएँ प्रकाश की किंन तरंगों द्वारा होती हैं तथा इनकी क्वांटम क्षमता कितनी होती है, इनका अध्ययन अनेक यौगिकों के साथ हुआ है।

प्रकाश रसायन के अध्ययन के कुछ महत्वपूर्ण व्यावहारिक प्रयोजन हैं। कुछ अभिक्रियाओं की व्यापारिक उपयोगिता है। इन अभिक्रियाओं में मुख्य रूप से श्रृंखला तथा बहुलीकरण प्रक्रियाएँ आती है। प्रकाश की अल्प मात्रा से जिन पदार्थो का संश्लेषण होता है वे व्यापारिक महत्व के होते हैं। विकिरण ऊर्जा के विनाशकारी प्रभाव भी अनेक हैं, जैसे रंग का उड़ जाना, रबर का ्ह्रास, कुछ बहुलकों का विच्छेदन। उद्योग में इन विनाशकारी प्रभावों का निराकरण करना अति आवश्यक है। प्रकाश रासायनिक विधियों द्वारा स्वतंत्रमूलक तथा सक्रियशील परमाणु आवश्यकतानुसार सुगमता से उत्पन्न किए जा सकते हैं।

सन्दर्भ ग्रन्थ

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  • नोयेज ऐंड लेटन : फोटोकेमिस्ट्री ऑव गैसेज; राइन होल्ड पब्लिशिंग कॉपं; न्यूयॉर्क १९४१

इन्हें भी देखें

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  • [[प्रकाशविद्युतरासायनिक



सेल]] (Photoelectrochemical cell)