प्रक्रियाकौमुदी व्याकरणशास्त्र के प्रखर विद्वान् रामचन्द्रगुणचन्द्र के द्वारा निर्मित प्रक्रियाग्रन्थ है। यह व्याकरणशास्त्रका प्रथम प्रक्रिया ग्रन्थ था । इसने संस्कृत व्याकरण शास्त्र को देखने का दृष्टिकोण बदल दिया । रामचन्द्र वैष्णवमतावलम्बी थे। इसमें वैष्णव धर्म से सम्बन्धित सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है। रामचन्द्राचार्य रचित ग्रन्थों में सबसे प्रौढ़ रचना 'प्रक्रियाकौमुदी' है । यह पाणिनीय व्याकरण में प्रवेश के इच्छुक छात्रों के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुई। यह धर्मकीर्ति विरचित रूपावतार से विस्तृत है परन्तु इसमें पाणिनि के सम्पूर्ण सूत्रों का सन्निवेश नहीं है। इसमें ग्रन्थकर्त्ता ने सरल ढंग तथा सरल शब्दों के माध्यम से मध्यममार्ग का अवलम्बन किया है। इसका मुख्य प्रयोजन प्रक्रिया ज्ञान कराना है । तिब्बती आचार्यों ने प्रक्रियाकौमुदी का अनुवाद तिब्बती में बहुत पहले कर दिया था ।

आचार्य पाणिनिकृत अष्टाध्यायी व्याकरणशास्त्र की एक अमूल्य निधि है। इसकी रचना के उपरान्त व्याकरणशास्त्र के अध्ययन को एक नयी दिशा प्राप्त हुई । अष्टाध्यायी के अध्ययन की सरलता के लिए कई प्रक्रियाग्रन्थों की रचना की गयी। इनमें से आचार्य रामचन्द्र-प्रणीत प्रक्रियाकौमुदी एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। विट्ठल ने इस पर न्यायस्नेह-प्रपूरणी नामक टीका का निर्माण किया जिसका उल्लेख उन्होंने प्रसादटीका में किया है। प्रक्रियाकौमुदी की प्रसाद टीका में आचार्य रामचन्द्र द्वारा किये गये कार्यों को अतुलनीय ढंग से समझाया गया है। प्रक्रियाकौमुदी पर किये गये क्षेपकों का निवारण किया गया है। प्रक्रियाकौमुदी की प्रसाद टीका पक्षपातरहित करने के लिए विट्ठल ने कई विद्वानों के कार्यों को देखकर उनके निष्कर्षो को ग्रहण किया, जिन्हें सभी विद्वान एकस्वर से स्वीकार करते हैं।

प्रक्रियाकौमुदी दो भागों में विभाजित है - पूर्वार्ध तथा उत्तरार्ध । पूर्वार्ध में सुबन्त के ज्ञान के लिए क्रम से संज्ञा, संधि, स्वादि, स्त्रीप्रत्यय, विभक्तियों, समास तथा तद्धित का वर्णन करते हैं। उत्तरार्ध में तिङन्तों का वर्णन करते हैं जिसमें भ्वादि दशगणीय धातु ण्यन्तादि धातुओं तथा कृत् प्रत्ययों का क्रमशः विवेचन करते हैं। रूपसिद्धि में उपादेय तथा आवश्यक सूत्रों का प्रत्येक प्रकरण में संकलन किया गया है। लघुवृत्ति के साथ उचित दृष्टान्त भी दिये गये हैं । वैदिक शब्दों के साधक सूत्रों का सद्भाव है । रामचन्द्राचार्य ने कई आचार्यों के मतों को उद्धृत कर तुलनात्मक अध्ययन भी किया है। उन्होंने अपने ग्रन्थ में 'महाभाष्य' तथा 'काशिका' के कतिपय श्लोक उद्धृत किये हैं वहीं कुछ सूत्रों की व्याख्या में 'रूपावतार" का भी श्लोक उद्धृत किया गया है।

प्रक्रिया कौमुदी की टीका सम्पत्ति पर्याप्त रूप से समृद्ध है परन्तु विट्ठलकृत 'प्रसाद' तथा शेषकृष्णकृत 'प्रकाश' टीका विशेष महत्त्वपूर्ण है। 'प्रसाद टीका' में रामचन्द्राचार्य द्वारा व्यक्त हजारों सूत्रों को यहाँ देकर ग्रन्थ को पूर्ण तथा समृद्ध करने का महनीय प्रयास विट्ठल द्वारा किया गया है। इसके प्रक्षेपों का निवारण भी इसका एक मुख्य उद्देश्य था । शेषकृष्ण ने वीरबल के पुत्र कल्याणमल्ल को व्याकरण की शिक्षा देने के लिए 'प्रकाश' नामक टीका का प्रणयन किया जिसका विवरण ग्रन्थकर्ता स्वयं ग्रन्थ के प्रारम्भ में देते हैं । रामचन्द्राचार्य ने विभिन्न वैयाकरणों के मतों का संग्रह भी अपने ग्रन्थ में करके इसके महत्त्व को और बढ़ा दिया। लोक व्यवहार को दृष्टि में रखते हुए उन्होंने सूत्रों तथा वार्तिकों में नये शब्दों का सन्निवेश भी किया है जो प्राचीन आचार्यों के मतविरुद्ध है। प्रक्रियाकौमुदी का मुख्य लक्ष्य लोकव्यवहार में प्रयुक्त शब्दों के साधुत्व को प्रतिपादित करना है।