प्रगत पदार्थ तथा प्रक्रम अनुसंधान संस्थान
प्रगत पदार्थ तथा प्रक्रम अनुसंधान संस्थान (Advanced Materials and Processes Research Institute) पदार्थ एवं प्रक्रम के क्षेत्र में अनुसंधान करने वाली भारत की अनुसंधान संस्था है। इसे पहले 'क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला' के नाम से जाना जाता था।
परिचय
संपादित करेंप्रगत पदार्थ तथा प्रक्रम अनुसन्धान संस्थान (एम्प्री) की स्थापना मई 1981 में क्षेत्रीय अनुसन्धान प्रयोगशाला के रूप में हुई थी और इसने दिल्ली से काम करना प्रारंभ किया था। धातु मैट्रिक्स सम्मिश्र में विशेषज्ञता रखने वाले प्रतिष्ठित धातु वैज्ञानिक डॉ॰ पी.के. रोहतगी प्रयोगशाला के संस्थापक निदेशक थे। वे एक छोटे समूह के साथ दिसम्बर, 1983 में वर्तमान परिसर में आये। प्रारंभ में प्रयोगशाला में 15 वैज्ञानिक थे, जिनमें से 10 की विशेषज्ञता धातु विज्ञान/पदार्थ विज्ञान में थी। इस अवधि में प्रयोगशाला का कार्यक्षेत्र एल्यूमिनियम ग्रेफाइट धातु मेट्रिक्स सम्मिश्र, प्राकृतिक रेशा आधारित सम्मिश्र एवं धातु गुण निर्धारण था। धीरे-धीरे इसने धात्विक गुण निर्धारण के उद्देश्य से स्केंनिंग एलेक्ट्रोंन माइक्रोस्कोप, ओप्टिकल माइक्रोस्कोप, एक्सरे दिफ़्रेक्शन उपस्कर, instran (यंत्रकीय परिक्षण), इमेज विश्लेषक आदि उपस्करों का आधार स्थापित किया। इस प्रकार प्रयोगशाला को यांत्रिक परीक्षण, संसारण, सतह अभियांत्रिकीय एवं अवशेष जीवन आकलन जैसे विविध धात्विक गुण निर्धारण क्षेत्रों में विशेषज्ञता मिली। धीरे-धीरे समय के साथ प्रयोगशाला का कार्यक्षेत्र खनिज प्रसंस्करण एवं उपस्कर डिजाइन, पर्यावरण प्रतिरूपण एवं डिजाइन तक बड़ा। इसके साथ ही प्रयोगशाला में भवन निर्माण सामग्री संबंधी अनुसंधान कार्य में इतनी अधिक प्रगति की कि मटेरिअल रिसर्च सोसाइटी ऑफ इंडिया ने इस प्रयोगशाला को भवन निर्माण सामग्री का चैप्टर घोषित किया था। अपने जल संसाधन प्रतिरूपण एवं डिजाइन, सतह उपचारित कृषि औजार, सीसल रेशों से निर्मित हस्तशिल्प तथा कृषि मृदा की गुणवत्ता बढाने के लिए फ्लाय एश के प्रयोग संबंधी शोध कार्यों से एम्प्री भोपाल ग्रामीण प्रोद्योगिकियों के लिए भी महत्वपूर्ण प्रयोगशाला मानी जाने लगी। इसके साथ ही एम्प्री भोपाल को एक प्रतिष्ठित १० करोड़ रुपए की यू. एन. डी. पी.-भारत सरकार -डी.एस. टी. परियोजना भी दी गई, जिसके अर्न्तगत ग्रामीण प्रौद्योगिकी प्रसार का एक प्रादर्श स्थापित किया जाना था। यह परियोजना वर्ष २००४ में सफलतापूर्वक की गयी। सितम्बर २००१ में कार्य निष्पादन मूल्यांकन बोर्ड (प्रयोगशालाओं की गतिविधियों के मूल्यांकन के लिए सी.एस.आई. आर. द्वारा गठित उच्च स्तरीय समिति) के सम्मुख एक प्रस्तुतीकरण किया गया और बोर्ड ने यह गहनता से पाया कि प्रयोगशाला को विशेष रूप से चुने गए कार्यक्रमों में कार्य करते हुए अपनी विशेषज्ञता तय करनी चाहिए। इसके पहले चरण के रूप में उपलब्ध संसाधनों को समेकित करने के लिए प्रयोगशाला को पदार्थ एवं प्रतिरूपण समूहों में विभाजित किया गया, जिसके अर्न्तगत सहयोगी समूह कार्यरत थे। इस पुनर्गठन से हमें पदार्थ और प्रतिरूपण के लिए आई. एस.ओ.-1001:2000 प्रमाणीकरण प्राप्त हुआ। डी. आर. डी. ओ., डी.ओ.एम्., बी.आर.एन.एस. आदि बाह्य एजेंसियों से पदार्थ एवं उत्पाद विकास हेतु परियोजनाएं प्राप्त करने के अतिरिक्त प्रयोगशाला ने सी.एस.आई.आर. नेटवर्क परियोजनाओं में भी प्रतिभागिता की, जिनमें से अधिकांश पदार्थ, खनिज प्रसंस्करण एवं संसाधन संबंधी हैं।
हांलाकि प्रयोगशाला नए पदार्थ एवं प्रक्रमों के विकास में सक्रिय रूप से कार्यरत थी, लेकिन इसका कार्यक्षेत्र फिर भी क्षेत्रीय रूप में परिभाषित किया जा रहा था और यही इसके नाम से भी झलकता था। मार्च २००७ में प्रयोगशाला के अधिवेश पर विशेष बल देते हुए इसका नाम परिवर्तित कर प्रगत पदार्थ तथा प्रक्रम अनुसन्धान संस्थान (एम्प्री) किया गया। टीम एम्प्री आज इस क्षेत्र में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय परिद्रश्य में अपने आपको अग्रणी साबित करने के लिए एक साथ मिलकर अग्रसर है।
लक्ष्य एवं कार्य
संपादित करेंइसका उद्देश्य भविष्य में विश्वस्तरीय गुणवत्ता प्राप्त करना और पदार्थ एवं प्रक्रमों के क्षेत्र में विख्यात और मान्य नाम बनना है। यह संस्था नेनो सामग्री विकास, नेनो प्रौद्योगिकी, एन.ई. एम्.एस. एवं एम्.ई.एम्.एस., पदार्थ प्रतिरूपण एवं डिजाईन, जैव अनुकृत पदार्थ आदि जैसे अधिक परिष्कृत क्षेत्रों में कार्य करेगी। विकसित हो रहा मानव संसाधन प्रोफाइल पदार्थ के क्षेत्र में बुनियादी अनुसंधान से लेकर व्यवसाय विकास तक का कार्य कर सकेगा।