प्रणववाद
गार्ग्यायण का प्रणववाद (अर्थ : प्रणव का उच्चारण) भगवान दास द्वारा १९१०-१३ के बीच तीन भागों में प्रकाशित एक ग्रन्थ है। इसमें भगवान दास का कहना है कि यह ग्रन्थ एक महर्षि गार्ग्यायण द्वारा रचित एक अल्पज्ञात प्राचीन ग्रन्थ का सारांश है। भगवान दास का यह भी कहना है कि यह पुस्तक उनको पण्डित धनराज ने अपनी स्मृति से उन्हें सुनाया और उन्होने इसे लिखा है। पण्डित धनराज उनके थियोसोफिकल सोसायटी के मित्र थे और आँख से अन्धे थे। पुस्तक के प्रकाशन के पूर्व ही पण्डित धनराज की मृत्यु हो गई थी।
इन्हें भी देखें
संपादित करें- वैमानिक शास्त्र
- भगवान दास (महान चिन्तक, थियोसोफिस्ट)
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- प्रणववाद (This book has nothing to do with the original Pranava Veda by Mamuni Mayan)
- Pranavavad of Gargyayan and Pranavavada arthadeepika of swami Yogananda (संस्कृत-अंग्रेजी)
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