प्रतीत्यसमुत्पाद
प्रतीत्यसमुत्पाद का सिद्धांत कहता है कि कोई भी घटना केवल दूसरी घटनाओं के कारण ही एक जटिल कारण-परिणाम के जाल में विद्यमान होती है। प्राणियों के लिये इसका अर्थ है - कर्म और विपाक (कर्म के परिणाम) के अनुसार अनंत संसार का चक्र। क्योंकि सब कुछ अनित्य और अनात्म (बिना आत्मा के) होता है, कुछ भी सच में विद्यमान नहीं है। हर घटना मूलतः शून्य होती है। परंतु, मानव, जिनके पास ज्ञान की शक्ति है, तृष्णा को, जो दुःख का कारण है, त्यागकर, तृष्णा में नष्ट की हुई शक्ति को ज्ञान और ध्यान में बदलकर, निर्वाण पा सकते है। द्वादश निदान को बौद्ध दर्शन में भव चक्र कहा गया है। भव चक्र तीनो कालो से संबंधित होता है। इसी का नाम प्रतित्य समुत्पाद है जो बुद्ध धर्म का मौलिक सिद्धांत है। प्रतित्य समुत्पाद का अर्थ है किसी वस्तु की प्राप्ति होने पर , समुत्पाद। प्रतित्य समुत्पाद बौद्ध मत का करणवाद है। प्रतित्य समुत्पाद बौद्ध दर्शन का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है।
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- Digital Dictionary of Buddhism
- Kamma & the Ending of Kamma
- Maha-nidana Sutta
- Paticca-samuppada-vibhanga Sutta
- Upanisa Sutta translation by Bhikkhu Thanissaro
- A Translation and Exposition of the Upanisa Sutta by Bhikkhu Bodhi
- A Comprehensive Discourse on Paticcasamuppada by Mahasi Sayadaw
- Notes on Dhamma - A Note on Paticcasamuppāda by Nanavira Thera
- Bhikkhu Thanissaro: The Shape of Suffering: A Study of Dependent Co-arising (PDF-Dokument; 744 kb)