प्रभु जगद्बन्धु (१८७१ - १९२१) बंगाल के एक हिन्दू सन्त थे। उन्होने अपने जीवन का अधिकांश समय ध्यान में एवं श्रीअंगन (जिला फरीदपुर) में उपदेश देते हुए बिताया। उनकी शिक्षा के आधार पर ही महानाम सम्प्रदाय की नींव पड़ी।

प्रभु जगद्बन्धु सुन्दर

श्री श्री श्री प्रभु जगद्बन्धु सुन्दर
जन्म 28 अप्रैल 1871
दहापाड़ा, मुर्शिदाबाद, बंगाल प्रेसिडेन्सी
मौत 17 सितम्बर 1921(1921-09-17) (उम्र 50 वर्ष)
श्रीअंगन, फरीदपुर जिला
वेबसाइट
mahanam.org

प्रभु जगद्बन्धु का आविर्भाव 28 अप्रैल, सन् 1871 को मुर्शिदाबाद शहर के दूसरे पार गंगातीर में डाहापाड़ापल्ली में हुआ था। इनका तिरोभाव 17 सितम्बर, 1921 को फरीदपुर के श्रीअंगन में हुआ। इनके पिता दीनानाथ न्यायरत्न और माता वामासुन्दरी देवी थीं।

प्रभु जगद्बन्धु ने बंकिघम, पेरिस एवं वैटिकन की यात्रा भी की और दो वर्ष विदेश में बिताए। उन्होने विश्वव्यापी भयावह विनाश के युग की चेतावनी दी और इस संकट से बचने के लिए हरिनाम का आश्रय लेने की प्रेरणा दी। हरिनाम के प्रचार-प्रसार के लिए कीर्तन दल का गठन किया। हरिनाम के माध्यम से उन्होंने डोमों और वेश्याओं का उद्धार किया।

प्रभु जगद्बन्धु वह निरन्तर नाम संकीर्तन में डूबे रहते थे। 16 वर्ष 8 महीने तक वह स्वेच्छा से हवा व प्रकाशविहीन पर्णकुटिया में एकान्तवास करते रहे। महाप्रभु ने कहा कि इस कलियुग में नाम संकीर्तन ही धर्मसाधना का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। वे असाधारण अलौकिक शक्तियों के स्वामी और त्रिकालज्ञ पुरुष थे। उन्होंने बताया कि हरिनाम के बिना परित्राण नहीं। वह सत्यद्रष्टा और सत्यवक्ता थे। वह सत्यद्रष्टा और सत्यवक्ता थे। उनकी भविष्यवाणियाँ सत्य प्रमाणित हुई। सर्वज्ञ होने के साथ प्रभु परम करुणामय थे।

प्रभु जगदबंधु ने चीन द्वारा भारत पर आक्रमण की भविष्यवाणी 64 वर्ष पहले ही की थी। 1897 में प्रभु ने लिखा था कि भारत द्विखण्डित होगा। बंगाल के विभाजन के विषय में भी उन्होंने भविष्यवाणी की थी। इतिहास इस बात का प्रमाण है कि उनकी भविष्यवाणियाँ सत्य साबित हुई।

प्रभु सूक्ष्म शरीर धारण कर लेते थे। वह अन्तर्यामी थे। उनसे कुछ भी छिपा न था। उनकी कृपा से असंभव भी संभव हो जाता था।