भारतीय दर्शन में प्रमेय वह है जो प्रमा या यथार्थ ज्ञान का विषय हो ; वह जिसका बोध प्रमाण द्वारा करा सकें ; वह वस्तु या बात जिसका यथार्थ ज्ञान हो सके ।

ज्ञान का विषय बहुत सी वस्तुएँ हो सकती हैं पर न्याय दर्शन में गौतम ने उन्हीं वस्तुओं को प्रमेय के अन्तर्गत लिया है जिनके ज्ञान से मोक्ष या अपवर्ग की प्राप्ति होती है। ये बारह हैं— आत्मा, शरीर, इंद्रिय, अर्थ, बुद्धि, मन, प्रवृत्ति, दोष, प्रेत्यभाव, फल, सुख और अपवर्ग । यद्यपि वैशेषिक के "द्रव्य, गुण, कर्म सामान्य, विशेष और समवाय" - सब पदार्थ ज्ञान के विषय हैं तथापि न्याय में गौतम ने बारह वस्तुओं का ही प्रमेय के अन्तर्गत विचार किया है।

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