कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, लेकिन कर्म के फलों में कभी नहीं, अतः कर्म को फल के लिए मत करो और न ही काम करने में तुम्हारी आसक्ति हो।
”
— भगवद्गीता (२;४७) में, श्रीकृष्ण द्वारा कथित वचन (यह कर्मयोग दर्शन का मूल आधार है।)