प्राण वात
प्राण वायु
संपादित करेंयह वायु निरन्तर मुख में रहती है और इस प्रकार यह प्राणों को धारण करती है, जीवन प्रदान करती है और जीव को जीवित रखती है। इसी वायु की सहायता से खाया पिया अन्दर जाता है। जब यह वायु कुपित होती है तो हिचकी, श्वांस और इन अंगों से संबंधित विकार होते हैं।