प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली
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प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अंतर्गत संपूर्ण भूभाग को विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में बांट दिया जाता है और प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक व्यक्ति या प्रतिनिधि निर्वाचित होता है। 84 वे संविधान संशोधन द्वारा 1991 की जनगणना आधार रखा और 87 वे संविधान संशोधन 2003 के द्वारा 2001 की जनगणना आधार रखा
इस प्रतिनिधित्व के अन्तर्गत किसी क्षेत्र को निर्वाचन कराने केलिए कई भागों में बांटा जाता है। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक ही सदस्य का चुनाव किया जाता है। इसे भौगोलिक या क्षेत्रीय प्रतिनिच्छिात्व भी कहा जाता है। सुविधा की दृष्टि से निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या कम करके एक निर्वाचन क्षेत्र से कई सदस्ज्ञयों का भी चुनावकिया जा सकता है। जिस चुनाव क्षेत्र से केवल एक ही सदस्य चुना जाता है, उसे एक सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र तथा जिस क्षेत्र सेएक साथ कई सदस्य चुने जाते हैं, उसे बहुदसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र कहा जाता है। एक सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र अपेक्षाकृत भौगोलिकदृष्टि से छोटे और कम जनसंख्या वाले क्षेत्र होते हैं और कई बार राजनीतिक विभाजन के अनुरूप ही होते हैं। भारत तथा फ्रांसमें ऐसे ही निर्वाचन क्षेत्र हैं। इस प्रणाली में सामान्य तौर पर मतों के बहुमत के आधार पर ही परिणाम घोषित किया जाता है। इसकाप्रमुख गुण इसकी सरलता है। इसमें दलों की संख्या भी सीमित रहती है। लेकिन अनेक विद्वानों ने इस प्रणाली की भी आलोचनाकी है। इस प्रणाली के आधार पर चुना हुआ व्यक्ति केवल एक ही हित का प्रतिनिधित्व करता है, क्षेत्र के बाकी हित बिना प्रतिनिक्तिात्व के रह जाते हैं। इसकी आलोचना करते हुए जी0डी0एच0 कोल ने लिखा है-”वास्तविक लोकतन्त्र केवल एक सर्वशक्तिमानप्रतिनिधि सभा में नहीं, बल्कि व्यवसायिक प्रतिनिधि निकायों के एक संयुक्त संगठन में पाया जाता है।” प्रादेशिक प्रतिनिधित्व के दोषोंको देखते हुए कुछ विद्वान व्यवसायिक आधार पर प्रतिनिधित्व का समर्थन करते हैं। इसी कारण डुग्विट ने कहा है-”व्यवसाय,सम्पत्ति, वाणिज्य, उद्योग-धन्धे यहां तक कि विज्ञान और धर्म आदि राष्ट्रीय जीवन की समस्त शक्तियों को प्रतिनिधित्व प्राप्त होनाचाहिए। आज इस पद्धति के दोषों को दूर करने के लिए फ्रांस तथा आयलैण्ड में एकल हस्तांतरणीय मत प्रणाली को ही अपनायाजा रहा है। यह आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का ही एक रूप है।
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