प्रीतर (Praetor ; प्राचीन लैटिन में : [ˈprajtoːr])) मूलत: सैनिक उपाधि है। लैटिन नगरों के मजिस्ट्रेटों को यह सर्वोच्च उपाधि प्रदान की जाती थी।

रोमन गणराज्य के अधीन रोमन कांसुल को प्रीतर कहा जाता था। ई.पू. 367 के लिसीनियन के अनुसार कांसुलों के सहयोगी के रूप में नए मजिस्ट्रेटों की नियुक्ति की प्रथा शुरू हुई। कांसुलों की अपेक्षा इन नए मजिस्ट्रेटों के अधिकार कुछ कम थे। दीवानी के मामलों में न्याय करने के अधिकार इन्हें प्राप्त थे। इन मजिस्ट्रेटों को नगर (सिटी) प्रीतर कहा जाता था। जब इस प्रकार के प्रीतरों की संख्या बहुत बढ़ गई, सिटी प्रीतरों को और अधिकार देकर उन्हें मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया और प्रीतर शब्द बाकी बचे हुए मजिस्ट्रेटों के लिए निश्चित रूप से प्रयुक्त होने लगा। बाद में इन प्रीतरों की संख्या और बढ़ा दी गई और वे प्रांतों के गर्वनरों के रूप में भी कार्य करने लगे। रोमन गणराज्य के अधीन इन प्रीतरों की अंतिम अवस्था यह थी कि एक निश्चित संख्या में प्रीतर चुने जाते थे। ये एक साल तक जज का काम करते थे और बाद में गवर्नर के रूप में विभिन्न प्रांतों में भेज दिए जाते थे।

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