बिम्बाणु
बिम्बाणु, या प्लेटेलेट, या [[थ्रॉम्बो] में उपस्थित अनियमित आकार की छोटी अनाभिकीय कोशिका (यानि वे कोशिकाएं, जिनमें नाभिक नहीं होता, मात्र डीएनए ही होता है) होती है, व इनका व्यास २-३ µm होता है।[1] प्लेटेलेट का राशाइनिक नाम -थ्रंबोसाइट एक प्लेटेलेट कोशिका का औसत जीवनकाल ८-१२ दिन तक होता है। सामान्यत: किसी मनुष्य के रक्त में एक लाख पचास हजार से लेकर 4 लाख प्रति घन मिलीमीटर प्लेटलेट्स होते हैं।[2] ये बढोत्तरी कारकों का प्राकृतिक स्रोत होती हैं। जीवित प्राणियों के रक्त का एक बड़ा अंश बिम्बाणुओं (जिनमें लाल रक्त कणिकाएं और प्लाविका शामिल हैं) से निर्मित होता है। दिखने में ये नुकीले अंडाकार होते हैं और इनका आकार एक इंच का चार सौ हजारवां हिस्सा होता है। इसे सूक्ष्मदर्शी से ही देखा जा सकता है। यह अस्थि मज्जा (बोन मैरो) में उपस्थित कोशिकाओं के काफी छोटे कण होते हैं, जिन्हें तकनीकी भाषा में मेगा कार्योसाइट्स कहा जाता है। ये थ्रोम्बोपीटिन हार्मोन की वजह से विभाजित होकर खून में समाहित होते हैं और सिर्फ १० दिन के जीवनकाल तक संचारित होने के बाद स्वत: नष्ट हो जाते हैं। शरीर में थ्रोम्बोपीटिन का काम बिम्बाणुओं की संख्या सामान्य बनाना होता है।
रक्त में उपस्थित बिम्बाणुओं का एक महत्त्वपूर्ण काम शरीर में उपस्थित हार्मोन और प्रोटीन उपलब्ध कराना होता है। रक्त धमनी को नुकसान होने की स्थिति में कोलाजन नामक द्रव निकलता है जिससे मिलकर बिम्बाणु एक अस्थाई दीवार का निर्माण करते हैं और रक्त धमनी को और अधिक क्षति होने से रोकते हैं। शरीर में आवश्यकता से अधिक होना शरीर के लिए कई गंभीर खतरे उत्पन्न करता है।[3] इससे खून का थक्का जमना शुरू हो जाता है जिससे दिल के दौरे की आशंका बढ़ जाती है। बिम्बाणुओं की संख्या में सामान्य से नीचे आने पर रक्तस्नव की आशंका बढ़ती है।
रक्त में बिम्बाणुओं की संख्या किसी खास रोग या आनुवांशिक गड़बड़ी की वजह से होती है। किसी इलाज या शल्यक्रिया की वजह से भी ऐसा होता है। अंग प्रत्यारोपण, झुलसने, मज्जा प्रत्यारोपण (मैरो ट्रांसप्लांट), हृदय की शल्यक्रिया या कीमोचिकित्सा (कीमोथेरेपी) के बाद अकसर खून की जरूरत होती है। ऐसे में कई बार बिम्बाणुआधान (प्लेटलेट्स ट्रांसफ्यूजन) की भी जरूरत पड़ती है। प्रायः प्रचलित रोग डेंगू जैसे विषाणु जनित रोगों के बाद बिम्बाणुओं की संख्या में गिरावट आ जाती है।[4][5]
हल्के या मध्यम थ्रोम्बोसाइटोपेनिया से पीड़ित व्यक्ति कुछ घरेलू उपायों द्वारा प्लेटलेट्स की संख्या बड़ा सकते हैं। विटामिन सी से भरपूर फल और सब्जियां प्लेटलेट्स की संख्या बढ़ाने में मदद करते हैं। प्लेटलेट्स बढ़ाने वाले फलों और सब्जियों में शामिल हैं – नींबू, संतरा, अनानास, अनार, कीवी, पपीता, ब्रोकोली आदि। प्लेटलेट्स की संख्या बढ़ाने के लिए ऐसे खाद्य पदार्थ खाने की सलाह दी जाती है जिनमें अधिक मात्रा में फोलेट और विटामिन K होता है। इसके अलावा विटामिन डी से भरपूर खाद्य पदार्थ भी प्लेटलेट्स बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। इन खाद्य पदार्थों में शामिल हैं- अंडे की जर्दी, फोर्टिफाइड दूध, दही, वसायुक्त मछली जैसे – सैल्मन, टूना, मैकेरल आदि।[6]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ कैम्पबेल, नील ए. (२००८). जीव विज्ञान (अष्टम संस्करण). लंदन: पीयरसन एड्युकेशन. पृ॰ ९१२. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-321-53616-7.
Platelets are pinched-off cytoplasmic fragments of specialized bone marrow cells. They are about 2-3µm in diameter and have no nuclei. Platelets serve both structural and molecular functions in blood clotting.
- ↑ उसकी त्वचा पर पड़ जाते थे काले धब्बे Archived 2009-10-23 at the वेबैक मशीन।(हिन्दी)। वेब दुनिया। डॉ॰ कैलाशचन्द्र दीक्षित। होम्योपैथिक केस हिस्ट्री
- ↑ चाँदी के कण रोकेंगे रक्त के थक्के बनना Archived 2009-08-17 at the वेबैक मशीन।(हिन्दी)। वेब दुनिया।१४ जून, २००९। नई दिल्ली]]
- ↑ डेंगू के मरीज बढे, एसएमएस में प्लेटलेट्स की कमी[मृत कड़ियाँ]। खास खबर।२१ सितंबर, २००९।(हिन्दी)
- ↑ डेंगू सीजनः प्लेटलेट्स के लिए दर-दर भटकेंगे मरीज Archived 2009-09-06 at the वेबैक मशीन। फरीदाबाद मेट्रो।(हिन्दी)। शिखा राघव
- ↑ पाण्डे, डॉ अमित (जनवरी 12, 2023). "प्लेटलेट्स की कमी के लक्षण, कारण और उपाय". Web Post Guru.
इन्हें भी देखें
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