अकार्बनिक रसायन के सन्दर्भ में, पोलिश वैज्ञानिक काज़िमीर फायान्स (Kazimierz Fajans) ने सन १९२३ में निम्नलिखित नियम बताए-

  1. यदि धनायन के आकार को कम कर दिया जाए तथा ऋणायन के आकार को बढ़ा दिया जाए तो आयनिक बंध में सहसंयोजी लक्षण बढ़ जाते हैं।

NaCl>KCl>RbCl>CsCl

  1. यदि धनयनों का आकार व आवेश एक जैसा हो तो उस धनायन की ध्रुवण क्षमता अधिक होगी जिनके इलेक्ट्रोनिक विन्यास संक्रमण धातु जैसे होते हैं।
  2. यदि धनायन तथा ऋणायन पर आवेश की मात्रा बढ़ाई जाए तो आयनिक बंध के सहसंयोजी लक्षणों में वृद्धि होगी।

NaCl<MgCl2<AlCl3 NaCl<Na2O<Na3(PO4)

  1. धनायन का आकार अपने मूल परमाणु से छोटा होता है।
  2. केटायन का आयनिक विभव जितना अधिक होता हैं उसकी सह-संयोजक बंध बनाने की क्षमता उतनी अधिक होता हैं।

उपरोक्त नियमों के आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि कोई रासायनिक आबन्ध, आयनिक होगा या सहसंयोजी।

आयनिक और आणविक त्रिज्या के बीच संबंध दर्शाता चित्र।

उपरोक्त नियमों का सारांश निम्नलिखित तालिका में दिया गया है-

उदाहरण -

आयनिक (Ionic) सहसंयोजक (Covalent)
Low positive charge High positive charge
Large cation Small cation
Small anion Large anion