फाग
फाग होली के अवसर पर गाया जाने वाला एक लोकगीत है। यह मूल रूप से उत्तर प्रदेश का लोक गीत है पर समीपवर्ती प्रदेशों में भी इसको गाया जाता है। सामान्य रूप से फाग में होली खेलने, प्रकृति की सुंदरता और राधाकृष्ण के प्रेम का वर्णन होता है। इन्हें शास्त्रीय संगीत तथा उपशास्त्रीय संगीत के रूप में भी गाया जाता है। फाग स्त्री व पुरुष दोनों के द्वारा गाया जाता है। फाग गाने के साथ बजाये जाने वाले वाद्य यंत्र : मृदंग, टिमकी, मंजीरा आदि।
फाग अवधी, ब्रज, बुंदेलखंडी और भोजपुरी बोलियों में गाए जाते मिलते हैं। शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत के रूप में भी गाया जाता है।
गांव देहातों में फाल्गुन महीने में फाग गाए जाने की परंपरा है। इसमें एक मंडली शाम को खेती किसानी के काम से निपटकर एक जगह जुटती है और बारी-बारी से सभी के घर जाकर फाग के गीत गाती है और नाचती-गाती है। इस समय ढोलक, मंजीरा बजाकर त्यौहार का आनंद लिया जाता है। यह क्रम फाल्गुन पूर्णिमा यानी होली तक चलता रहता है। इस दिन फगुआरों की टोली लोगों संग अबीर-गुलाल खेलकर उत्सव भी मनाती है फाग के भी कई प्रकार हैं इनमें से देवताओं को प्रशन्न करने के लिए धमार फाग गाया जाता है। इसके बाद चैत्र का महीना शुरु होने पर चैता गाया जाता है।
- सीता जी के अयोध्या आने पर गाया जाने वाला फाग
अरे, गोरिया करी के सिंगार
अंगना में पीसे लीं हरदिया
होए, गोरिया करी के सिंगार
अंगना में पीसे लीं हरदिया
ओ अंगना में पीसे लीं हरदिया
ओ अंगना में पीसे लीं हरदिया
गोरिया करी के सिंगार
अंगना में पीसे लीं हरदिया
अरे, जनकपुर के हवे सिल सिलबटिया
जनकपुर के हवे सिल सिलबटिया
अरे, अवध के हरदी पुरान
अवध के हरदी पुरान।