फाब्री तथा पेरो व्यतिकरणमापी

फाब्री तथा पेरो व्यतिकरणमापी व्यतिकरणमापी में केवल दो व्यतिकारी किरणपुंजों का उपयोग किया गया है। 1893 ई. में बुलूच (Boulouch) ने सर्वप्रथम बताया कि अनेक व्यतिकारी किरणपुंजों के उपयोग से अधिक सुग्राहिता प्राप्त की जा सकती है। इस सिद्धांत का विकास 1897 ई. में फाब्री तथा पेरो द्वारा किया गया। इनके उपकरण में दो समतल समांतर कांचपट्ट रहते हैं, जिनपरश् पतला रजतश् फिल्म रहता है। जब विस्तृत प्रकाशस्त्रोत से ये पट्ट प्रदीप्त किए जाते हैं, तब इन पट्टों केश् मध्य से व्यतिकरण के कारण फ्रंज बनते हैं। ये फ्रंज अनंत परवलय होते हैं और ये समान झुकाव के फ्रंज कहलाते है। ये फ्रंज हाइडिंगर (Haidinger) फ्रंज के समान होते हैं, पर ये वह किरणपुंज के कारण तीव्र और चमकीले होते हैं।

फार्बी-पेरो का व्यतिकरणमापी : इस व्यतिकरनमापी (etalon) में प्रकाश के प्रवेश करने के बाद बहु-आन्तरिक परावर्तन होता है।

इन बहुकिरणपुंजों के फ्रंजों के अनेकानेक उपयोग हैं। धन डेसिमीटर जल की संहति इस व्यतिकरण से मापी गई है और यह संहति एक किलोग्राम से 27 मिलिग्राम कम है। गैसीय अपवर्तनांक ज्ञात करने के लिए, यह व्यतिकरणमापी मानक साधन है। 1943 ई. में टोलैसकी (Tolansky) ने क्रिस्टल पृष्ठ की रूपरेखा ज्ञात करने में इस व्यतिकरणमापी का उपयोग किया। इससे इतनी परिशुद्धता थी कि क्रिस्टल जालक (crystal lattice) अंतराल को भी प्रकाशतरंगों द्वारा मापा जा सकता था। इस व्यतिकरणमापी से क्रिस्टल के आकृतिक लक्षण से लेकर आण्विक विमाएँ तक उद्घटित हो गई हैं। एकवर्णी तथा श्वेत दोनों प्रकार का प्रकाश इस व्यतिकरण में प्रयुक्त होता है।

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