फिक के विसरण के नियम

(फिक का विसरण का नियम से अनुप्रेषित)

फिक के विसरण के नियम (Fick's laws of diffusion) एडॉल्फ फिक द्वारा सन् १८५५ में प्रतिपादित हुए थे। फिक के विसरण से संबंधित दो नियम हैं जिनकी सहायता से विसरण गुणांक, D की गणना की जा सकती है।

विसरण का प्रदर्शन

फिक का विसरण का प्रथम नियम

संपादित करें

विसरण-धारा-घनत्व सांद्रणप्रवणता के अनुपात में और समांतर होता है।

 

where

  •   is the diffusion flux in dimensions of [(amount of substance) length−2 time−1], example  .   measures the amount of substance that will flow through a small area during a small time interval.
  •   is the diffusion coefficient or diffusivity in dimensions of [length2 time−1], example  
  •   (for ideal mixtures) is the concentration in dimensions of [(amount of substance) length−3], example  
  •   is the position [length], example  

फिक का विसरण का द्वितीय नियम

संपादित करें
 

Where

  •   is the concentration in dimensions of [(amount of substance) length−3], example  
  •   is time [s]
  •   is the diffusion coefficient in dimensions of [length2 time−1], example  
  •   is the position [length], example  

इसी समीकरण से विसरण प्रक्रिया का नियंत्रण होता है। यह फ़िक का दूसरा नियम है।

यदि विलयन में विद्युत्‌ से आवेशित कण नहीं है, तो D का संबंध कणों की गतिशीलता (mobility) B से है और तब D=k T B जहाँ k बोल्ट्समॉन का (Boltzmann's) स्थिरांक, T परम ताप और B कणों की गतिशीलता है। यदि कण r त्रिज्या के गोला (spheres) है और विलायक के अणु से बड़े हैं, तो B स्टोक (Stokes) के नियम से प्राप्त होता है। इस नियम के अनुसार B=1/(6 . Pi . h . r), जहाँ h द्रव का श्यानता गुणांक है।

यदि विलयन कण विद्युत्‌ से आवेशित हैं, तब D कणों के विभिन्न किस्मों पर निर्भर करता है। एकसंयोजक विद्युत्‌ अपघट्य (electrolyte) विलयन, जिसमें दो आयन ही सोडियम और क्लोरीन हैं, जैसे नमक के विलयन में

D = k T B1 B2 / (B1 + B2)

जहाँ B1 और B2 दो आयनों की गतिशीलता है। इनसे विसरण गुणांक का आकलन हो सकता है और धुले कणों के विस्तार का निर्धारण किया जा सकता है। एक निश्चित परिस्थिति में मापन कर विसरण गुणांक का आकलन किया जा सकता है। विसरण गुणांक का प्रयोगों से निर्धारण कठिन इसलिए होता है कि द्रवों का विसरण बड़ी मंदगति से होता है। मापने योग्य परिवर्तन हो सके, इसमें हफ्तों या महीनों लग सकते हैं। इस समय विलयन ज्यों का त्यों बिना किसी विक्षोभ के रहना चाहिए। ऐसा होना कठिन काम है। इन कठिनाइयों के कारण ऐसे उपकरण की, जिसमें सांद्रण का बड़ा सूक्ष्म अंतर मापा जा सके, आवश्यकता पड़ती है। इसके लिए एक विशिष्ट प्रकार का कक्ष बना है, जिसमें सांद्रण का बड़ा सूक्ष्म अंतर मापा जा सकता है। इसमें सूक्ष्मदर्शी की सहायता ली जाती है। रंजक के विलयनों के विसरण मापने में ही उपयोगी सिद्ध हुआ है। रंजन की कार्यविधि और जैव तंतुओं के अभिरंजन के अध्ययन में भी यह कक्ष उपयोगी सिद्ध हुआ है।

विसरण गुणांक, D, का मान भिन्न भिन्न द्रवों के लिए बहुत भिन्न भिन्न होता है। यदि किस द्रव के विसरण गुणांक का मान बहुत ऊँचा है, तो ऐसे द्रव को हम क्रिस्टलाभ (Crystalloid) कहते हैं और जिसका विसरण गुणांक का मान कम रहता है, उसे कोलॉइड (Colloid) कहते हैं क्रिस्टलाभ, में अम्ल, लवण और अन्य वस्तुएँ आ जाती हैं, जो क्रिस्टलाभ बनती हैं और कोलॉइड में गोंद, ऐल्ब्युमेन, स्टार्च तथा सरस आते हैं। क्रिस्टलाभ साधारणतया पानी में घुलते हैं, जबकि कोलायड पानी में जेली बन जाते हैं। कोलॉइड के अणु बड़े जटिल (complex) होते हैं। इस कारण उनका विसरण गुणांक कम होता है। वे अपेक्षया स्वादहीन होते हैं, क्योंकि विसरित होकर तंत्रिका टर्मिनल (nerve terminal) तक नहीं पहुँच पाते। इसी कारण वे अपाच्य भी होते हैं।

इन्हें भी देखें

संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ

संपादित करें