आर्य समाज उन संस्थाओं में है जो फीजी में सबसे पहले स्थापित हुईं। इसकी स्थापना १९०४ में हुई थी। अपनी स्थापना से इसने युवा, शिक्षित और प्रगतिशील हिंदुओं को अपनी तरफ आकर्षित किया। बीसवीं सदी के पहले तीन दशकों के दौरान, यह फिजी में भारतीय समुदाय की एकमात्र आवाज थी और इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि जब फिजी के भारतीयों ने राजनीतिक अधिकार प्राप्त किया तब विधान परिषद में पहुँचने वाले सभी भारतीय सदस्य आर्य समाजी थे। फिजी में भारतीयों पर आर्य समाज का प्रभाव धीरे-धीरे कम हो गया है क्योंकि भारतीयों का प्रतिनिधित्व करने वाले अन्य संगठन भी बाद में स्थापित हो गए, लेकिन सन 1959 तक आर्य समाज राजनीति में प्रमुख शक्ति बनी रही। फिजी में आज भी आर्य समाज अपने सदस्यों को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर बोलता है तथा इसकी गतिविधियाँ दिखाई देती हैं। फिजी का आर्यसमाज अनेक धार्मिक, सामाजिक और शैक्षणिक संस्थायें चलाता है।

फिजी के आर्य समाज का इतिहास संपादित करें

सन १८९३ तक फिजी में शिक्षा केन्द्र स्थापित हो चुके थे। ये केन्द्र छोटे-छोटे समूहों द्वारा संचालित थे जो अपना 'समाज' चलाते थे। सन १९०२ में शिव दत्त शर्मा भारत से फिजी पहुँचे। सुवा के निकट समबुला में एक मन्दिर स्थापित किया गया। यही मन्दिर बच्चों के लिये विद्यालय का काम भी करता था जिसमें लगभग ६० लड़के-लड़कियाँ पढ़ते थे।

फिजी में आर्य समाज की स्थापना में पंजाब से आये २२ वर्षीय बिहारी लाल का गहरा प्रभाव पड़ा। वे आस्ट्रेलिया होते हुए अर्जेन्टाइना जाने के लिये निकले थे और फिजी में रुक गये थे। नवुआ चीनी कारखाने में उन्हें नौकरी मिल गयी थी। वे नियमित रूप से सुवा आते थे जहाँ स्वामी दयानन्द सरस्वती की शिक्षाओं में रुचि रखने वाले लोग मंगल सिंह के घर एकत्र होते। बिहारी लाल के पास सत्यार्थ प्रकाश की एक उर्दू प्रतिलिपि थी जिसमें से वे कोई भाग पढ़ते और उसकी व्याख्या करते। यह कार्य प्रत्येक रविवार को होता था।

२५ दिसम्बर १९०४ को फिजी के भारतीयों का एक छोटा समूह समबुला में एकत्र हुआ। इसमें मंगल सिंह, गज प्रताप सिंह, ननकू सोनार, बिहारी लाल, शिव दत्त शर्मा, बासदेव राय, इनायत हुसेन, इन्द्र नारायण और टीकाराम वर्मा आदि शामिल थे। इसी सभा में आर्य समाज के स्थापना का निर्णय लिया गया।

सन्दर्भ संपादित करें

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें