फोग एक ४ से ६ फीट ऊंचाई की छोटी आकर की झाड़ी प्रजाति का पौधा है जो भारत और पाकिस्तान के सूखे इलाकों में पाया जाता है।

Calligonum polygonoides
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: Plantae
विभाग: Magnoliophyta
वर्ग: Magnoliopsida
गण: Caryophyllales
कुल: Polygonaceae
वंश: Calligonum
जाति: Calligonum polygonoides
Linnaeus, 1753

यह मरुष्थल में पाई जाने वाली उपयोगी झाड़ी है। इसकी जड़ों का उपयोग लुहारों द्वारा हथियार बनाने के लिए कोयला निर्माण हेतु किया जाता है। इसके फूल को फोगला कहा जाता है जिसका उपयोग रायता बनाने में किया जाता है।

खेती के तरीकों में बदलाव से मरूस्थल की पहचान फोग लुप्त होने के कगार पर पहुंच गया है। पहले जिन स्थानों पर फोग बहुतायात से उगता था, उन स्थानों पर अब फोग नजर ही नहीं आत है। मरूप्रदेश वासियों के लिए संजीवनी के रूप में काम आने वाले फोग का हर जगह महत्व था लेकिन खेती में मशीनों के अन्धाधुन्ध उपयोग ने फोग को विलुप्ति के कगार पर पहुंचा दिया है। पहले जब गांव में थोडी दूरी पर ही फोग की झाडियों की हरियाली नजर आ जाती थी। चैत्र में इन पर नई पत्तियां आने से मनोरम दृश्य होता था। लोग इसे खाद्यान्न के रूप में तो काम लेते हैं इसकी पत्तियां पशुओं के चारे एवं तना जलाऊ लकडी के रूप में भी काम में लेते। लेकिन अब यह सब बीते जमाने की बात हो गया है।

इसे अंग्रेजी में केलीगोनम पॉली गोनोइडीस (Calligonum polygonoides) कहते हैं जो इंटरनेशनल यूनियन फोर कंजरवेशन ऑफ नेचर एण्ड नेचूरल रिर्सोसेज (IUCN) की रेड डाटा बुक में शामिल करने की सिफारिश सूची में है। आईयूसीएन की रेड डाटा बुक के लिए फोग को संकटग्रस्त प्रजाति श्रेणी में रखा गया है।[1]

इतिहास में फोग

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प्राचीन नागवंशी लोग पेड़ पौधों अथवा जानवरों को अपना विशिष्ठ प्रतीक चिन्ह मानते थे। वर्तमान नें अधिकांश नागवंशी जातियां जाटों में शामिल हो गई हैं। जाटों की एक प्रमुख गोत्र का नाम फोगाट है जो संभवतः नागवंशियों की संतान हैं जो फोग को अपना प्रतीक चिन्ह मानते थे। फोगाट जाट हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में पाए जाते हैं।

एकबार की बात है, बीकानेर के राजा रायसिंहजी के भाई पीथळ नांव के ख्यातनांव कवि को दिल्ली बादशाह अकबर ने बुरहानपुर भेजा और वहां के सूबेदार बनाए गए। देस से ज्यादा दिन बहार रहने के कारण देश की याद आई। एक दिन वे तफरी कर रहे थे। अचानाक उनको फोग दिख गया तो वे बोले :

तूं सैं देसी रूंखड़ो, म्हे परदेसी लोग।
म्हानै अकबर तेड़िया, तूं यूं आयो फोग।।

डेनमार्क के प्रधानमंत्री एंडर्स फोग को नाटो में प्रमुख नाटो के नेताओं ने एंडर्स फोग रैसमुसेन को गठबंधन का नया महासचिव नियुक्त किया है।

राजस्थानी भाषा में फोग की महिमा

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फोग री जड़ भी ऊंडी। बंतळ करता लोग कैवै कै फोग-खेजड़ा पताळ रो पाणी पीवै। खोदता जावो, पण आं री जड़ नीं खूटै। फोग बिरखा रै पाणी सूं ई जीवतो रैय सकै। गरमियां में हर्यो रैवै। इं रा जड़-बांठ सांगोपांग बळीतो। इणरा पत्तां नै ल्हासू कैवै। गाय, भैंस, बकरी, भेड अर ऊँट ल्हासूं कोड सूं खावै। इण बांठ रा फूलां नै फोगलो कैयीजै। फोगलै रो रायतो बणै लिज्जतदार। इण रायतै री तासीर ठण्डी। सरीर री गरमी रो बैरी। बैदंग में इण बांठ रो खासो नांव। लू रो ताव उतारण सारू रामबांण। डील माथै इणरा हर्या पानका नाखो अर लू रो ताव उतारो। लकवै रै रोग्यां रो इलाज भी फोग सूं हुवै। मरीज नै उघाड़ो कर`र मांचै सुवावै। मांचै नीचै सूं फोग रै पत्तां री भाप दिरीजै। बैद बतावै कै इणसूं लकवो ठीक हुवै। फोग रै फळ नै घिंटाळ कैवै। घिंटाळ डांगरां रो लजीज चारो। घिंटाळ ऊँटां नै भोत भावै। जे खोड़ में तिसाया मरो, फोग रा पानका चाबो। तिरस नै जै माताजी री। फोग धोर्यां रो चूल्हो दोय तरियां सूं बाळै। एक तो लकड़ी सूं अर दूजो पानकां, घिंटाळ अर बळीतै रै बिणज सूं। इणी कारण मुरधर रै लोकजीवण में फोग री मोकळी महिमा। बैसाख री तपती लूवां में हर्यो कच्च रैवै। खारा खाटा ल्हासू खाय'र छाळ्यांक् मोकळो दूध देवै। बैसाख में गाय-भैंस रो दूध सूक ज्यावै, पण छाळ्यां धीणो बपरावै। इण सारू लोक में कैबा चालै-

'फोगलो फूट्यो, मिणमिणी ब्याई।
भैंस री धिरियाणी, छाछ नै आई।'

फोगलै रै रायतै सारू भी लोक में कैबा है-

'फोगलै रो रायतो, काचरी रो साग।
बाजरी री रोटड़ी, जाग्या म्हारा भाग।'

फोग की कहावतें - फोग आलो ई बळै, सासू सूदी ई लड़ै।

कहावत में कहा गया है कि जिस प्रकार फोग की लकड़ी गीली होने पर भी आग पकड़ लेती है, उसी प्रकार सास सीधी हो तब भी अधिकार पूर्वक बहू को फटकार लगा ही देती है। मौका मिलने पर असली स्वभाव उजागर हो ही जाता है।

नोट - छाळी अर मिणमिणी बकरी रा पर्याय है।

  1. "Patrika News in Hindi". मूल से 15 जुलाई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 अगस्त 2009.