कुट्टित वेल्डन

(फोर्ज वेल्डन से अनुप्रेषित)

इस्पात अथवा लोहे के दो टुकड़ों को खूब सफेद गरम कर पाटने की क्रिया द्वारा जोड़ने को कुट्टित वेल्डन या चटका लगाना (Forge welding) कहते हैं।

प्रत्येक धातु को खूब तपाने से वह ठोस से द्रव रूप में बदलने लगती है लेकिन पिटवाँ लोहा अथवा मुलायम इस्पात में एकदम ऐसा नहीं होता। सफेद चमकते हुए गरम होने पर वे बहुत मुलायम और चिपचिपे हो जाते हैं, ऐसी अवस्था में यदि दो टुकड़ों को पास-पास सटाकर दबाव के साथ मिला दिया जाए, तो वे जुड़कर एक हो जाते हैं। यह ताप 815 डिग्री से 870 डिग्री सें. तक होता है। इससे कम ताप पर गरम कर टुकड़ों को जितना ही पीटकर जोड़ने की चेष्टा की जाए, वे कभी नहीं जुड़ेंगे और उन्हें उपर्युक्त ताप से अधिक ताप पर गरम करने से उनकी धातु जलकर बेकार हो जाएगी। पिटवाँ लोह को अधिक गरम करने से उसमें से बारीक सफेद चिनगारियाँ स्वत: ही निकलने लगती हैं। मुलायम इस्पात में कुट्टित वेल्डन योग्य ताप कुछ नीचा होता है और वह उस समय आता है, जब उसका लाल रंग सफेद में बदलने लगता है। मजबूत और उत्तम जोड़ लगान के लिए जोड़े जानेवाले तलों को भौतिक और रासायनिक दोनों ही प्रकार की अशुद्धियों से, जैसे लोह ऑक्साइड की पपड़ी या भट्ठी की राख, रहित कर देना चाहिए। अशुद्धियों को छुड़ाने के लिए तलों पर सुहागा और दानेदार शुद्ध वालू छिड़क दी जाती है, जो उपर्युक्त ताप पर गलकर उन तलों पर जमनेवाली ऑक्साइड की पपड़ी और राख को गलाकर दूर करती है और बाद में ऑक्साइड जमने भी नहीं देती। सुहागा और बालू छिड़कने का समय वह होता है, जब लोहा पीला दिखाई देने लगे। गलकर बालू का जो स्लैग बन जाता है, व पीटते समय छिटककर बाहर आ जाता है। जोड़ने के उद्देश्य से दो टुकड़ों को आपस में मिलाकर चोट मारने की क्रिया जोड़ के मध्य भाग से आरंभ करनी चाहिए। कठिन किस्म के इस्पातों के लिए कुट्टित वेल्डन का ताप इतना ऊँचा नहीं होता कि उसपर बालू छिड़कने से वह गल से, अत: शुद्ध सुहागा अथवा चार भाग सुहागा और एक भाग नौसादर के मिश्रण की लाग बनाकर छिड़की जाती है।

कुट्टित वेल्डन के जोड़

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पिटवाँ लोहा और मुलायम इस्पात के टुकड़ों को सीधा जोड़ लगाने के लिए बहुधा तीन प्रकार के जोड़ों का उपयोग किया जाता है जिन्हें क्रमश: टक्कर का जोड़, ऊपर नीचे का जोड़, जिसे लप्पा लगाना भी कहते हैं और चिरवाँ जोड़ कहते हैं। चित्र 2. में इनकी आकृति क्रमश: क, ख और ग में दिखाई गई है।

टक्कर का जोड़

यह जोड़ वस्तु की लंबाई की दिशा से समकोण पर बनाया जाता है। ठंढी हालत में ही सही सही जोड़ बनाकर फिर वेल्डनवाली वस्तुओं को सफेद गरम कर उन्हें आपस में दबाते हुए चोंटे मारते है, लेकिन प्राय: देखा जाता है कि हाथ से दबाने पर पूरा दबाव न पड़ने के कारण गरम तल एकदम एक दूसरे से नहीं मिलते जिस कारण जोड़ कच्चा रहकर बाद में टूट जाता है, अत: अच्छे कारखानों में एक विशेष प्रकार के यंत्र में वस्तुओं को दबाकर यहीं यंत्र के साथ लगी निहाई पर रखकर चोटें मारते हैं।

लप्पे का जोड़

इस जोड़ को बनाने के लिए ठंढी हालत में किसी प्रकार की तैयारी नहीं करनी पड़ती। लेकिन यह जोड़ चित्र 2. की आकृति ज में दिखाए अनुसार मोटा रह जाता है और जहाँ एक टुकड़े का मोटा किनारा दूसरे में घुसता है, वहाँ दरार रह जाती है, अत: जोड़ मिलाने के पहले प्रत्येक टुकड़े के सिरे के अलहदा से तपा और पीटकर काफी पतला कर लिया जाता है, जैसा चित्र 2. की आकृति ख और झ में दिखाया गया है। इन जोड़ों को बनाने की तैयारी में खास बात यह है कि उन दोनों टक्करों की आकृति ऐसी बनाई जाए कि इने तेज गरम होने की हालत में उनपर बननेवाला स्लैग संपर्क के कारण दबते ही स्वत: बाहर की तरफ आसानी से निकल जाए, अत: दोनों सिरों का थोड़ा-थोड़ा ठाँस कर उन्हें कुछ उन्नतोदर आकृति दे दी जाती है। ऐसी आकृति बनाने के लिए विशेष प्रकर के ठस्सों का भी प्रयोग किया जाता है, जिस प्रकार के ठस्सों का भी प्रयोग किया जाता है, जिस प्रकार के सिरे चित्र 2. की आकृति च में दिखाए गए हैं, वे बिलकुल गलत हैं, क्योंकि जोड़ के बीच में जहाँ टक्करें आपस में मिलेंगी एक गुहा बन जाएगी, जिसमें से स्लैग बाहर नहीं निकल सकेगा, अत: दोनों टक्करों को आपस में मिलाते समय किनारा सबसे पहले जुड़ेगा, फलत: जोड़ कमजोर रहेगा। गोल छड़ों को जोड़ने के लिए सिरे बनाने की आकृति चित्र 2. के च में दिखाई गई हैं। यही विधि प्राय: जंजीरों की कड़ियों के मुँह जोड़ने के लिए अधिक उपयुक्त रहती है।

चिरवाँ जोड़

यह जोड़ बहुत भारी वस्तुओं को जोड़ने के लिए बनाया जाता है। ऐसा साधारण जोड़ तो चित्र 2. की आकृति ग में दिखाया गया है लेकिन विशेष भारी वस्तुओं के उपयुक्त जोड़ चित्र 2. की आकृति ट और ठ में दिखाया गया है। इस जोड़ में संपर्क में आनेवाली सतह तो अधिक होती ही है, बल्कि चिरे हुए द्विशाखित भाग की नोंके, कलीनुमा दूसरे भाग की गोलाई के पीछे मुड़कर उसे मजबूती से पकड़ लेती हैं और फिर बाद में पीटकर पतला करने पर एक भाग की धातु दूसरे भाग में प्रविष्ट होकर एकजान हो जाती है। दूसरे टुकड़े के कलीनुमा भाग को बनाते समय उसे चिकना न बनाकर सीढ़ीनुमा दाँतेयुक्त बनाकर खुरदरा कर देना चाहिए।

विशेष प्रकार के जोड़

चित्र 3. में विभिन्न प्रकार के उद्देश्यों से जोड़ दिखाए गए हैं। चित्र 3. की आकृति क में कीलीनुमा जोड़, ख में त्रिशाखित जोड़, ग में कोने का जोड़ और घ में गोल छड़ों के उपयुक्त विशाखित जोड़ बनाने की विधि दिखाई गई है। इंजनों और जहाजों के बड़े बड़े व्यास के घुरों को, जिन्हें शक्ति पारेषण के काम में लाने से उनपर मरोड़ बल भी पड़ता है, जोड़ना जब अभीष्ट होता है, तब उन्हें चित्र 3. की आकृति च में दिखाए अनुसार ठंढा ही चीरकर और फिर गरम कर आपस में बैठा दिया जाता है।