फ्रेड्रिक रेटजेल (१८४४ - १९०४ ई.) एक प्रमुख भूगोलवेत्ता थे। उनका जन्म कार्ल शू नगर में प्रशिया में हुवा। उन्होंने १८६९ में सर्वप्रथम डार्विन के विकासवादी ग्रन्थ की समालोचना प्रस्तुत की। तब से जीवन-प्रयन्त उन्होंने जीव-विज्ञान, भू-विज्ञान, भौतिक, मानव एवं राजनीतिक भूगोल पर लेख एवं ग्रन्थ लिखें। १८७४-७५ में उन्होंने पूर्वी युरोप, इटली, उत्तरी अमरीका और मध्य अमरीका की यात्रा की।

फ्रेड्रिक रेटजेल

Friedrich Ratzel
जन्म 30 अगस्त 1844
Karlsruhe, Baden
मृत्यु अगस्त 9, 1904(1904-08-09) (उम्र 59 वर्ष)
Ammerland, Lower Saxony
राष्ट्रीयता German
क्षेत्र Geography
Ethnography
संस्थान Leipzig University
प्रसिद्धि Concept of lebensraum
प्रभाव Charles Darwin
Ernst Haeckel
प्रभावित Ellen Churchill Semple

रैट्ज़ेल के पिता बाडेन के ग्रैंड ड्यूक के घरेलू कर्मचारियों के प्रमुख थे। फ्रेडरिक ने 15 साल की उम्र में एपोथेकरी के लिए प्रशिक्षु होने से पहले छह साल के लिए कार्ल्सरूहे में हाई स्कूल में भाग लिया। 1863 में, वह ज्यूरिख, स्विट्जरलैंड की झील पर रैपर्सविल गए, जहां उन्होंने क्लासिक्स का अध्ययन करना शुरू किया। रूहर क्षेत्र (1865-1866) में क्रेफेल्ड के पास मोर्स में एक और वर्ष के बाद, उन्होंने कार्ल्सरूहे में हाई स्कूल में एक छोटा समय बिताया और हीडलबर्ग, जेना और बर्लिन के विश्वविद्यालयों में प्राणी विज्ञान के छात्र बन गए। उन्होंने 1869 में प्राणिविज्ञान का अध्ययन किया, डार्विन पर सेन अंड वेर्डेन डेर ऑर्गन्चेन वेल्ट प्रकाशित किया। अपनी स्कूली शिक्षा के पूरा होने के बाद, रैट्ज़ेल ने यात्रा की एक अवधि शुरू की जिसने उन्हें प्राणीविज्ञानी / जीवविज्ञानी से भूगोलवेत्ता में बदलते हुए देखा। उन्होंने भूमध्यसागरीय क्षेत्र में क्षेत्र का काम शुरू किया, अपने अनुभवों के पत्र लिखे।


संकल्पना

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रेटजेल पृथ्वी को जैविक इकाई के रूप में मानते थे। जिसे लेबेन्स्रॉम कहतें हैं।

  • डार्विन के विकासवादी ग्रन्थ की समालोचना
  • एन्थ्रोपोज्योग्राफी, दो खण्ड - १८८२ एवं १८९१
  • पृथ्वी और आवास
  • वॉल्कर कुण्डे
  • भूमध्यसागरीय तट के जीव
  • चीनी आवर्जन
  • राजनितिक भूगोल
  • उत्तरी अमरीका का राजनीतिक भूगोल
  • उनके द्वारा स्कूली छात्रों के लिए १८९८ मे लिखी गयी जर्मनी:ड्यूशलैण्ड नामक पुस्तिका भूगोल के छात्रों के लिए विशेष उपयोगी बनी रही। इसके १८९८ से १९४३ के मध्य सात संस्करण प्रकाशित हुए। आज भी यह ग्रन्थ जर्मन भाषा में उपलब्ध हैं।

राजनैतिक भूगोल मे योगदान

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रैटज़ेल को राजनैतिक भूगोल का प्रणेता माना जाता है। उनके अनुसार राज्य के तीन अविभाज्य आयाम होते हैं- क्षेत्रफल, प्रजा एवं भौतिक-सांस्कृतिक वातावरण। यह चिंतन भूराजनैतिक चिंतन से भिन्न इसलिए है, क्योंकि इसमें संरंचना के आधार पर भौगोलिक प्रभावों के अध्ययन की प्राथमिकता दिखाई देती है। जबकि, भूराजनीति में घटकों के मानचित्रण व उनके देशीय संयोजन से उत्पन्न भौगोलिक विशेषता राष्ट्रों के मध्य व्यवहार प्रक्रिया का अध्ययन किया जाता है। रैटज़ेल की पुस्तकें दी लॉज ऑफ दी स्पॉशियल ग्रोथ ऑफ स्टेट्स एवं पॉलिटिस्च जियॉग्राफी (१८९७) चर्चित रही हैं। उनके लेखन में चार्ल्स डार्विन का प्रभाव स्पष्ट नज़र आता है। उनके अनुसार राज्यों के उत्थान व पतन के मध्य चक्रीयता का सिद्धांत लागू होता है। जिस प्रकार जैव मंडल के सभी प्राणी जीवन चक्रों से बंधे हुए हैं, उसी प्रकार राज्य भी एक जीवंत इकाई है। अतः, राज्यों के जीवन काल में उत्पत्ति, विकास, विस्तार एवं क्षीणता की अवस्थाएँ जुङी हुई हैं। रैटज़ेल की राज्य की जैविक अवधारणा में सामाजिक डार्विनवाद का पर्याप्त प्रमाण मिलता है। उनके अनुसार अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में राज्यों के मध्य निरंतर वातावरण से सर्वाधिक प्राप्त करने की होङ लगी रहती है, जिसमें कि समर्थ राज्य ही सफल हो पाते हैं। उनके कथनानुसार,“दी नेशन् इज् एन ऑर्गैनिक ऐन्टिटि, विच् इन दी कोर्स ऑफ् हिस्टरी बिकम्स इन्क्रीजिंगली अटैच्ड टू दी लैण्ड ऑन विच् इट ऐग्जिस्ट्स”। उनकी इस अवधारणा का शाब्दिक नामकरण लेबेन्सराम के रूप में किया गया।