राजल (बंगूरी माता)
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देवी राजल (1076-1103 ई०) खरनाल चिफ़र्ट ताहड़ देव की पुत्री और नागवंशी धौल्या गोत्र के वीर तेजाजी की बहन थी। वह 1103 ई० में अपने भाई वीर तेजाजी की मृत्यु पर सती हो गई। उनका मंदिर राजस्थान के नागौर के खरनाल में तालाब के किनारे स्थित है।
वीर तेजाजी के जन्म के तीन वर्ष बाद ताहड़ देव जी की पत्नी रामकुँवरी की कोख से विक्रम संवत 1133 (1076 ई.) में एक कन्या का जन्म हुआ जिसका नाम रखा गया राजलदे (राजलक्ष्मी) । बोलचाल में उसे राजल कहा जाता था। वह तेजाजी के बलिदान के बाद लगभग 26 वर्ष की आयु में विक्रम संवत 1160 (1103 ई.) के भादवा सुदी एकादश को धरती की गोद में समा गई।
खरनाल के एक किमी पूर्व में एक तालाब की पाल पर इनका मंदिर बना हुआ है। जन मान्यता के अनुसार जहां मंदिर बना है उसी स्थान पर एक साथी ग्वला द्वारा तेजाजी के बलिदान का समाचार सुन वह धरती की गोद में समा गई थी। लोगों की मान्यता , आस्था है कि मंदिर में लगी प्रतिमा भूमि से स्वतः प्रकट हुई थी।