मध्य भारत में धार स्टेट के नजदीक राठौड़ स्टेट अमझेरा थी, जिसके अधीन 24 ठिकाने जागीरदार क्रमश: 1छडावद,2शामपुरा,3कापसी,4कुमारपाठ,5गोंदीखेड़ा ,6चुनप्या, 7दत्तीगांव, 8बड़दा, 9मंगोद, 10बालीपुर(चिखली), 11सलवा, 12सिरसी, 13सेमल्या, 14संदला, 15चोटिया 16बालोद, ,17चिचोडिया, 18चंदोडीया, 19जोलाना, 20टीमायची, 21दंतोली, 22मोलाना, 23 हनमन्त्या-काग, और 24 हणमत्या सिंगेसर

1857 विद्रोह के समय अमझेरा स्टेट के महाराजा राव बख्तावर सिंह जी राठौड़ थे, और उनके (अमझेरा के) उत्तराधिकारी पुत्र 14 वर्षीय युवराज रघुनाथसिंहजी भी थे,फिर भी अमझेरा महाराजा बख्तावरसिंहजी ने अपने राजसी सुखों की परवाह नहीं की। उन्होंने अपनी प्रजा का शोषण कर अंग्रेजों को टेक्स देना नहीं स्वीकारा, और बड़े पैमाने पर सैनिकों की भर्ती शुरू कर दी 2 जुलाई 18 को अंग्रेजों के अत्याचार शोषण के खिलाफ सशस्त्र युद्ध छेड़ दिया। दुर्भाग्यवश 1857की क्रांति विफल रही, राजा बख्तावरसिंह को धोखे से गिरफ्तार कर 10फरवरी 1857 को अल सुबह इन्दोर के एम.वाय. प्रांगण में स्थित नीम के पेड़ पर फांसी दे दी। अमझेरा में राव सा. की मृत्यु पर आयोजित मृत्यु भोज में 5-10 हजार लोग मोजूद थे, उस समय 14 वर्षीय युवराज रघुनाथसिंह जी का राजतिलक किया पर कुछ दिनों बाद उनकी भी हत्या हो गई । राजा बख्तावर सिंह जी की रानी गुलाब कुँवर से जन्मे दुसरे पुत्र किशन सिंह मृत्यु शैशवावस्था में ही हो चुकी थी, और चावड़ी रानी दौलत कुँवर मानसा गर्भवती थी,लक्ष्मण सिंह गर्भ में थे। अमझेरा राज जप्त कर ग्वालियर स्टेट के जयाजीराव सिंधिया को दे दिया। महाराजा बख्तावर सिंह राठौड़ की शहादत के दो माह बाद 27 अप्रेल 1858को बख्तावरसिंहजी की चावड़ी रानी दौलत कुंवर मानसा ने पुत्र लक्ष्मण सिंह को सरोली (बेगू रामपुरा के मध्य स्थित )नामक ग्राम में जन्म दिया। सत्ताधारी अंग्रेजों व उनके पिट्ठुओं के ताकतवर होने के कारण लक्ष्मण सिंह हत्या के डर से बेटमा के जंगलों में गुप्तवास में सन्यासी वेश में रह कर बागियों विद्रोहियों की मदद करते रहे । पराजित राजपरिवार इस अपमानजनक परिस्थितियों के कारण समाज प्रजा से दूर गुमनाम  होता चला  गया,।

(उस समकालीन समय में छडावाद के ठाकुर भीम सिंह की मृत्यु हो गई थी,उनके बड़े पुत्र का नाम भी बख्तावर सिंह था,इनकी मृत्यु कुंवर पदे हो चुकी थी,इस लिए छडावाद गादी पर उनके दुसरे पुत्र किशन सिंह को बैठाया, गादी पर बैठने के एक वर्ष में किशन सिंह की भी मृत्यु हो गई थी, इनकी विधवा भटियानी जी ने निर्भयसिंह को गोद लिया था)

(इस वास्तविकता को छुपाकर छडावद के भीम सिह के वंशज ठाकुर उदय सिंह ने मध्य प्रदेश सरकार से वर्ष १९९६ के लगभग शहीद बख्तावर सिह के शैशव अवस्था में मृत पुत्र किशन सिंह को २७ अप्रेल १८५८ में जन्मा बता दिया और उनकी विधवा द्वारा दीप सिंह के पुत्र लक्ष्मण सिंह को गोद लेना बता कर उनके वंशज होने से अमझेरा का मुआवजा का क्लेम किया था, पर

(गुरु ग्रन्थ में दर्ज छडावाद के भीम सिंह के पुत्रों के नाम १ बख्तावर सिंह(मृत्यु कुंवर पदे) २ किशन सिंह(मृत्यु छडावद गादी बेठने के एक वर्ष बाद)  नटनागर शोध संस्थान सीतामऊ में मौजूद कुलगुरु की पोथी में दर्ज वास्तविक रिकार्ड के अनुसार छडावद के ठाकुर भीम सिंह का दुसरे न. का पुत्र किशनसिंह था, इनकी मृत्यु छडावद की गद्दी पर बैठने के एक वर्ष में हो गई थी, इन किशन सिंह की  विधवा ने दीप  सिंह के दुसरे पुत्र निर्भय सिंह को गोद लिया था। छडावद के उदयसिंह केस हार गये, सरकार ने उनका दावा खारिज़ कर दिया।)

    चावड़ी रानी दौलत कुँवर मानसा के 27 अप्रेल 1858 को जन्मे पुत्र लक्ष्मण सिंह अंग्रेजों के खिलाफ बागियों और विद्रोहियों की मदद से ज्यादा कुछ नहीं कर पाए पर शहीद राजा बख्तावर सिह जी के पौत्र ठाकुर अमर सिंह S/o लक्ष्मनसिंह ने महू में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोही गतिविधियां संचालित की। राज खुलने पर वे भूमिगत हो गए,अंग्रेजों ने उनकी महू स्थित सम्पति जप्त कर ली ठाकुर अमरसिंहजी के  बड़े पुत्र ठाकुर राम सिंग राठौड़ को महू में ओक्ट्रय सुपरिडेंट के पद से हटा दिया और ठाकुर अमरसिंह जी के दुसरे पुत्र ठाकुर हरि सिंह को ब्रितानी पुलिस पूछताछ के लिए उठा ले गई, दुसरे दिन अधमरी हालत में छोड़ गई, कुछ ही घंटो बाद उनकी मृत्य हो गई, परिवार को और नुकसान  न पहुचे इस लिए ठाकुर अमरसिंह जी ने आत्म समर्पण कर दिया, अंग्रेजों से माफ़ी न मांगने के कारण गाँधी इरविन समझोते के बावजूद भी विद्रोही ठाकुर अमर सिंह S/o लक्ष्मण सिंह और उनके सहयोगी भगवानदास अग्रवाल की सजा ख़त्म नहीं हुई , ब्रितानी हुकूमत ने विद्रोही ठाकुर अमरसिंह  की सम्पति जप्त ही रखी,और ठाकुर अमरसिंह को महू की शांति के लिए खतरा मानते हुए उनका महू में प्रवेश वर्जित रखा।ठाकुर अमर सिंह जी निर्वासनकाल में कुछ समय अपनी परदादी अजब कुंवर के मायके रामपूरा में गुजरा था, रामपुर के चंद्रावत भी उन गिने चुने राज्यों मे से था, जिसने 1857 की क्रांति में मेवाड़ महाराणा के आदेश के बावजूद भी अंग्रेजों का साथ नहीं दिया, इस नाफ़रमानी से नाराज हो कर मेवाड़ महाराणा ने  भाटों बड्वाजी द्वारा रामपूरा स्टेट के रखे गए रिकार्ड पोथी  पिछोरा झील में  डाल क्र नष्ट करावा दिए थे l

ठाकुर अमर सिंह राठौड़ के पौत्र अजित सिंह राठौड़S/oराम सिंग राठौड़(ओक्ट्रय सुपरिडेंट महू) महू कालेज में हिंदी के  प्रोफ़ेसर बन गए, ट्रांसफर होने के बाद नीमच म.प्र. में ही बस गए। वर्ष 1985-90 के लगभग उत्तर प्रदेश का एक फर्जी व्यक्ति N.K. सिंह  अमझेरा के कुछ लोगों को बरगला कर प्रो.अजित सिंह राठौड़ जगह स्वयं को शहीद राव बख्तावरसिंह राठौड़ का वंशज बता कर सम्मानित होता रहा, अमझेरा की जनता ने उसे सर आँखों पर बिठाया पर कुछ समय बाद ही असलियत सामने आने पर अमझेरावासियों ने उसका तिरस्कार कर दिया था।

अमझेरा में चलने वाली इस तमाम उठा पटक से बेखबर शहीद बख्तावर सिंह जी के पौत्र ठाकुर अमरसिंहS/oलक्ष्मनसिंह के पौत्र प्रोफ़ेसर अजित सिंहS/oठाकुर रामसिंह राजस्थान सीमा पर स्थित रामपुरा नीमच मध्य प्रदेश में अपने चार पुत्रों के साथ अपना खुशहाल समय व्यतीत कर रहे थे,बाद में प्रो. अजीतसिंह जी रामपुरा से नीमच कालेज में स्थानांतरित हो गए और सेवा निवृति के बाद नीमच में ही सेटल हो गए थे, 1 जनवरी २०१७ को पत्नी कृष्णादेवी मेत्राल के देवलोकगमन के बाद , अन्नजल त्याग कर दि. २४ फरवरी २०१७ शिवरात्रि को शिवलोक को प्रस्थान किया वर्तमान में प्रोफ़ेसर अजित सिंह जी के पौत्र कुँवर आदित्यराज सिंह राठौड़ S/oठाकुर महेंद्रसिंह राठौड़ नोयड़ा में सोफ्ट्वेयर इंजीनियर  है, जोकि अमझेरा राजवंश के एक मात्र चिराग हैl  

अमझेरा बर्बादी के बाद फर्जी तरीके से शहीद बख्तावर सिह के शैशव अवस्था में ही मृत पुत्र किशन सिंह को 27 अप्रेल 1858 में जन्मा बता कर छडावाद के भीमसिंह के पुत्र किशन सिंह की विधवा द्वारा दीप सिंह के दुसरे पुत्र निर्भय सिंह उर्फ़ (लक्ष्मण सिंह) को गोद लेना बताकर भीमसिंह का वंशज उदयसिंह ने  अमझेरा की वारिसी सिध्द कराने कि कोशिश कि गई थी, पर बात नहीं बनी और छ्डावाद केस हार गए, पर लोग बागों में यही भ्रान्ति अभी भी फ़ैली है, कि 27 अप्रेल 1858 में किशन सिंह जन्मे और किशन सिंह विधवा ने लक्ष्मण सिंह को गोद लिया, जबकि उज्जैन में  स्थित प. अरविन्द त्रिवेदी मगरगुहा के पूर्वज गुरु किशनलाल की बही में पृष्ठ 8पर ३० दिसंबर १८५७ को शहीद भुवानी सिंह संदला के क्रियाकर्म दर्ज है ,उसी के ऊपर अमझेरा वंशावली पृष्ठ 7 और 8 पर दर्ज है ,जिसमे अजित सिंह बख्तावर सिंह रघुनाथ सिंह और किशन सिंह का नाम दर्ज है,जब ३० दिसम्बर १८५७ के पूर्व से ही किशन सिंह का नाम दर्ज है, तो किशन सिंह का जन्म 27अप्रेल 1858 को दोबारा नहीं हो सकता, 1857 के बाद अमझेरा राजवंश का लेखाजोखा रखनेवाले बड़वाजी शंकर सिंह के पूर्वज अमझेरा क्षेत्र में नहीं गए पर अमझेरा राजवंश कि रानियों का लेखा जोखा रखने वाले रानीमंगा राम सिंग बडवा जी और उनके पूर्वज अमझेरा क्षेत्र में जाते रहे उनके पास  दर्ज अमझेरा रानियों से सम्बंधित दस्तावेजों में 27 अप्रेल 1858 को लक्ष्मण सिंह जन्म की लिखतम है, ठाकुर लक्ष्मणसिंहजी का विवाह भंवर कुँवर भटियानी जी ओसिया से हुआ, उनके पुत्र ठाकुर अमर सिंहजी  का विवाह पालनपुर पीथापुर  वाघेला जी से हुआ, ठाकुर अमरसिंहजी के पुत्र ठाकुर राम सिंग (ओक्ट्रय सुपरिडेंट महू) का विवाह बरडिया समंद कुंवर सिसोदनी जी से हुआ, ठाकुर राम सिंह के पुत्र प्रो. अजित सिंह राठौड़ का विवाह कृष्णा कुँवर जाधवन जी मेत्राल गुजरात से हुआ

     जब ठा.रामसींघ के पुत्र ठा.अजितसींघ की नौकरी महू कालेज में प्रोफ़ेसर पर लगी  थी। महू कालेज से प्रोफ़ेसर अजीतसिंहजी  ट्रांसफर हो कर रामपुरा नीमच चले गए इसी का फायदा उठाने के लिए एक उत्तरप्रदेश N.K. सिंह नामक व्यक्ति ने महू से जानकारी एकत्रित कर धार से नकली ताम्रपत्र बनवाया उसने अमझेरा के कुछ लोगों को भी झांसे में लिया और तत्कालीन गवर्नर कुंवर महमूद अली की सहायता हासिल कर प्रोफ़ेसर ठाकुर अजीतसिंहजी राठौड़  की जगह स्वयं (N.K.सिंह) शहीद बख्तावर सिंह जी का वंशज बन बैठा. अमझेरावासियों ने भी इस नकली प्रोफ़ेसर(N.K.सिंह)  का खूब स्वागत सत्कार किया, पर धीरे-धीरे अमझेरावासियों  को उसकी जालसाजी का एहसास हो गया,और उसे  बहिष्कृत कर दिया

      ठाकुर अजित सिह जी के प्रोफ़ेसर बनने के बाद 1950-60 के दशक में स्थानान्तरण होने से रामपुरा(जिला नीमच) चले गए,रामपुरा में 10-15 वर्ष रह कर नीमच स्थानांतरित होगए और नीमच में ही कालेज प्रोफ़ेसर के पद से सेवा निवृत हुए

      वर्तमान में अमझेरा के शहीद बख्तावर सिॅंह के पौत्र स्व. ठा.अमर सिॅंहजी के पौत्र ठाकुर अजीतसिॅहजी राठौड़ का भी नीमच में स्वर्गवास हो गया । नीमच में  इनके चार पुत्र ठा.राजेन्द्र सिॅंह,ठा.देवेन्द्र सिॅंह, ठा.महेन्द्र सिॅंह ठा.विजय सिॅंह एवं एक पौत्र भॅंवर आदित्य सिंह राठौड़ है। कुँवर आदित्य सिंह राठौड़ अमझेरा राजवंश के एकमात्र अंतिम चिराग हैl

(उपर्युक्त शौधकार्य  इतिहाकर डॉ.दिवाकर सिंह तोमर ने नटनागर शौध संस्थान सीतामऊ म.प्र. के उप निर्देशक मशहूर इतिहासकार स्व. डॉ. मनोहर सिंह राणावत के निर्देशन में किया है, शौध कर्म के लिए डॉ. दिवाकरसिंह तोमर जी ने अमझेरावासियों से, अमझेरा स्टेट के ठिकानों के वर्तमान मौजुद जमीन्दारों  से जीवंत सम्पर्क किया, अमझेरा निवासी मांगीलालजी पंडित,कविराज शरद जोशी, इत्यादि से जानकारियों का आदान प्रदान किया अमझेरा जागीरदारों के बडवाजी शंकरसिंह दुदू,रानिमंगा बडवाजी रामसिंगजी से जिवंत सम्पर्क कर उनके पूर्वजों की लिखी वंश पोथियों का अवलोकन किया,उज्जैनवासी कविराज अरविन्दजी जी त्रिवेदी के पास स्थित अमझेरा राजवंश कि बही पोथी, बख्तावर सिंह की तलवार का अवलोकन किया अमझेरा वासी स्व. मुन्नालाल पचोली द्वारा लिखित अतीत के स्मरण, रघुनाथसिंह संदला द्वारा लिखित अमझेरा का वृहत इतिहास का अध्ययन, नटनागर शौध संस्थान सीतामऊ लाइब्रेरी में रखे दस्तावेजों का अध्ययन , महू कन्टोलमेंट लाइब्रेरी के अध्ययन का निचोड़  यह शोध है) 

इतिहाकर लेखक डॉ.दिवाकर सिंह तोमर मो.न. 9669993438

आवश्यक सूचना

रोहित साव,Em mustapha संजयकुमार, Mds Shakil, निलेश शुक्ला आदि ये सभी क्रमशः विकिपीडिया को हेंडल करते है,इनका किसी प्रकार का सम्पर्क सूत्र नहीं है , ये लोग अपना व्हाट्सअप नम्बर शो नहीं करते, इनके इमेल पते नहीं है, रोहित साव का इमेल ऐड्रेस rohitshaw8292 gmail · com भी गलत है, Mds Shakil और Em mustapha ये बंगलादेशी है। शायद ये ही रोहित साव,संजयकुमार निलेश शुक्ला आदि फर्जी नामों से विकिपीडिया में हमारे देश से सम्बन्धित सामाजिक,भोगोलिक, ऐतिहासिक लेख हेंडल करते है, और देश कि छवि को प्रभावित करते है,मैंने विकिपीडिया चोपाल और चर्चा में अपना व्हाट्सअप नम्बर ,इमेल ऐड्रेस दिया, ताकि इन्हें हमारे मालवा अमझेरा के शहीद महाराजा बख्तावरसिंह जी राठौड़ के विषय में इनकी (विकिपीडिया) गलत जानकारी को सही और विस्तृत किया जा सके, पर इन्होने कोई ध्यान नहीं दिया, मुझे इन पर  संदेह हुआ, तो मैंने इनके इमेल ऐड्रेस पर सम्पर्क करने की कोशिश की पर रोहित साव का इमेल ऐड्रेस भी गलत निकला मैंने इनकी शेक्षणिक योग्यता के विषय में जानकारी चाही, पर चोपाल पर कोई जवाब नहीं दिया,फिर भी ये मालवा अमझेरा के शहीद महाराजा बख्तावर बख्तावर सिंह जी की सही तथ्यात्मक जानकारी को विलोपित कर रहे है , इनके लेख में महाराजा बख्तावर सिंह जी को ये कसबे का राजा लिखते है,बख्तावरसिंहजी को महाराणा लिखते है,जबकि महाराणा मेवाड़ राजवंश के लिए लिखा जाता है, ये विदेशी हमारे देश भारत की ऐसी ही कई गलत जानकारीयां विकिपीडिया के माध्यम से लोगों के मन मै बैठाने के एजेंडे पर काम कर रहे है। अतः अपने देश के सामाजिक,भोगोलिक,ऐतिहासिक वातावरण को प्रभावित करनेवाले ऐसे बंगलादेशी  विदेशीयों से सावधान करने के लिए इस सुचना के साथ अमझेरा राजवंश की वास्तविकता प्रकाशित की जारही है, जिसे ये बंगलादेशी जल्द ही विलोपित कर देंगे