बचनेश का जन्म सं0-1932 में फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। आपकी प्रतिभा बहुमुखी थी। यही कारण है कि आपने गद्य और पद्य दोनों में ही सफलता हासिल की। प्रमुख काव्य ग्रंथों में- नीति कुंडल, आनन्द लहरी, नवरत्न, मनोरंजिनी, बचनेश शतक, भारती भूषण, धर्म ध्वजा, धर्म पताका, युग भक्त, बचन विलास, ध्रुव चरित्र, विनोद, श्री शिव सुमिरिनी, शान्त समीर, शबरी और हरिदास उल्लेखनीय हैं। आपके ‘सैरन्ध्री’, प्रहलाद चरित्र, रामलीला और खून की होली नाटक तथा ‘नन्दाबाई’ व ‘लाल कुमारी’ उपन्यास भी पठनीय हैं।[1] आपकी कविता में स्वाभाविकता के साथ व्यंग्य और परिहास का अच्छा पुट मिलता है। लक्ष्मी की निर्लज्जता कविता का आनन्द लीजिए, जो विनोद से उद्धृत है-
आती बड़े चाव से, रिझाती हाव-भाव से,
पिलाती मन्द ताव से हवास होस खोती है।
मूड़ कटवाती, छलछन्द करवती अन्त-
सींग दिखलाती न किसी की सगी होती है।
‘बचनेश’ ताज्जुब क्या बेटी बहू बड़ों की ये,
रमा हरजाई हो जो मरजाद धोती है।
लाज हो पसम, जब घर की रसम ऐसी,
छाती पर बाप की खसम संग सोती है।

सन्दर्भ संपादित करें

  1. सिंह, डॉ॰राजकुमार (जनवरी २००७). विचार विमर्श. मथुरा (उत्तर प्रदेश)- २८१००१: सारंग प्रकाशन, सारंग विहार, रिफायनरी नगर. पृ॰ १२६. |access-date= दिए जाने पर |url= भी दिया जाना चाहिए (मदद)सीएस1 रखरखाव: स्थान (link)