बटेर या वर्तक (quail) भूमि पर रहने वाले जंगली पक्षी हैं। ये ज्यादा लम्बी दूरी तक नहीं उड़ सकते हैं और भूमि पर घोंसले बनाते हैं। इनके स्वादिष्ट माँस के कारण इनका शिकार किया जाता है। इस कारण बटेरों की संख्या में बहुत कमी आ गई है। भारत सरकार ने इसी वजह से वन्य जीवन संरक्षण कानून, 1972 के तहत बटेर के शिकार पर प्रतिबन्ध लगा दिया है।

झलक
Weibliche Wachtel (Coturnix coturnix).jpg
बटेर (Coturnix coturnix)
Call of a male quail
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: प्राणी
संघ: रज्जुकी
वर्ग: Aves
गण: Galliformes
कुल: Phasianidae, Odontophoridae

बटेर पालन कम लागत, सुगम रख-रखाव तथा पालन-पोषण के साथ और बिना किसी धार्मिक प्रतिबंध के साथ सम्भव है। हम सभी इस बात को जानते हैं कि आहार को संतुलित बनाने के लिए पशुधन से प्राप्त होने वाले प्रोटीन जैसे - दूध, माँस, अंडे की जरूरत पूरी करने के लिए पशुओं की महत्ता सभी जानते हैं। बटेर कम लागत पर हमारे लिए माँस और अंडे की जरूरत पूरी करता है। इस वजह से यह कहना सही है कि ‘‘पालें बटेर, बटोरें फायदे ढेर‘‘।

बटेर पालनसंपादित करें

वर्ष भर के अंतराल में ही मांस के लिए बटेर की 8-10 उत्पादन ले सकते हैं। चूजे 6 से 7 सप्ताह में ही अंडे देने लगते हैं। मादा प्रतिवर्ष 250 से 300 अंडे देती है। 80 प्रतिशत से अधिक अंडा उत्पादन 9-10 सप्ताह में ही शुरू हो जाता है। इसके चूजे बाजार में बेचने के लिए चार से पांच सप्ताह में ही तैयार हो जाते हैं। एक मुर्गी रखने के स्थान में ही 10 बटेर के बच्चे रखे जा सकते हैं। इसके साथ ही रोग प्रतिरोधक होने के चलते इनकी मृत्यु भी कम होती है। इन सबसे महत्वपूर्ण यह है कि बटेर को किसी भी प्रकार के रोग निरोधक टीका लगाने की जरूरत नहीं होती है। एक किलोग्राम बटेर का मांस उत्पादन करने के लिए दो से ढाई किलोग्राम राशन की आवश्यकता होती है। बटेर के अंडे का भार उसके शरीर का ठीक आठ प्रतिशत होता है जबकि मुर्गी व टर्की के तीन से एक प्रतिशत ही होता है।[1]

सन्दर्भसंपादित करें

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 22 अप्रैल 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 31 मार्च 2014.