बदरुद्दीन तैयबजी
बदरुद्दीन तैयबजी (10 अक्टूबर 1844 - 11 अगस्त 1906) का जन्म बम्बई अब के मुंबई प्रान्त में एक धनी इस्लामी परिवार में हुआ था। अपनी प्राम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद क़ानून की शिक्षा प्राप्त करने ये इंग्लैंड गए और वहाँ से बैरिस्टर बन लौटे। उसके पश्चात मुम्बई हाई कोर्ट में वकालत शुरू किया। जब उन्होंने वकालत शुरू की तब मुम्बई हाई कोर्ट में कोई वकील या जज भरतीय नहीं था। उन्होंने मुंबई में "मुम्बई प्रेसिडेंट एसोसिएशन" था मुसलमानों में शिक्षा का प्रचार करने के लिए "अंजुमन-ए-इस्लाम" नामक संस्था बनाई। फिरोज शाह मेहता, दादाभाई नौरोजी, उमेशचंद्र बैनर्जी के संपर्क में आकर उन्होंने सावर्जनिक कार्यो में भी रुचि लेने प्राम्भ कर दिया। बाद में उनकी नियुक्ति न्यायाधीश पद पर हुई। बाल गंगाधर तिलक पर राष्ट्रद्रोह के मुकदमे में तिलक को जमानत पर छोड़ने का फैसला तैयबजी ने ही किया। 19 अगस्त 1906 को उनकी मृत्यु हो गई। मृत्यु के पूर्व वो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तीसरे अध्यक्ष पद पर भी आसीन हुए।[1][2]
बदरुद्दीन तैयबजी | |
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बदरुद्दीन तैयबजी, 1917 ई॰ में | |
कार्यकाल 1887 | |
पूर्वा धिकारी | दादाभाई नौरोजी |
जन्म | 10 अक्टूबर 1844 बंबई, बंबई प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत |
मृत्यु | 19 अगस्त 1906 लंदन, इंग्लैंड, यूनाइटेड किंगडम | (उम्र 61 वर्ष)
संबंध | तैयबजी परिवार |
शैक्षिक सम्बद्धता | लंदन विश्वविद्यालय मिडिल टेंपल |
व्यवसाय | वकील, समाजसेवी, राजनीतिज्ञ |
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ प्रेमचंद, श्री (1939). बद्रुद्दीन तैयबजी. बनारस: सरस्वती प्रेस. पपृ॰ 159–67 – वाया विकिस्रोत. [स्कैन ]
- ↑ "Badruddin-Tyabji profile". The Open University website. अभिगमन तिथि 11 August 2020.