बसंती बिष्ट (जन्म : ) भारत की एक लोकगायिका हैं जो उत्तराखण्ड राज्य के घर-घर में गाए जाने वाले मां भगवती नंदा के जागरों के गायन के लिये प्रसिद्ध हैं। भारत सरकार ने 26 जनवरी 2017 को उन्हें पद्मश्री से विभूषित किया है।[1]

विदूषी डॉ० बसन्ती बिष्ट
चित्र:Dr Basanti Bisht
Basanti Bisht performing Jagar
जन्म 1953
राष्ट्रीयता Indian
कार्यकाल 1998– present
गृह-नगर Luwani, Dewal tehsil, Chamoli, Uttarakhand
प्रसिद्धि का कारण Uttarakhandi folk singer; Only " TOP GRADE " Folk Singer of Akashwani and Doordarshan from Uttarakhand; First professional woman singer of the Jagar folk form of Uttarakhand.
पुरस्कार
  • Padma Shri (2017)
  • Rashtriya Matoshri Devi Ahilya Samman (2016)
  • Teelu Rauteli Nari Shakti Samman

गांव और पहाड़ में महिलाओं के मंच पर जागर गाने की परंपरा नहीं थी। मां ने उन्हें सिखाया था लेकिन बाकि कोई प्रोत्साहन नहीं मिला। वह गीत-संगीत में तो रुचि लेती लेकिन मंच पर जाकर गाने की उनकी हसरत सामाजिक वर्जनाओं के चलते पूरी नहीं हो सकी। शादी के बाद उनके पति ने उन्हें प्रोत्साहित तो किया लेकिन समाज इतनी जल्दी बदलाव के लिए तैयार नहीं था। इसी बीच करीब 32 वर्ष की आयु में वह अपने पति रणजीत सिंह के साथ पंजाब चली गईं।

पति ने उन्हें गुनगुनाते हुए सुना तो विधिवत रूप से सीखने की सलाह दी। पहले तो बसंती तैयार नहीं हुई लेकिन पति के जोर देने पर उन्होंने सीखने का फैसला किया। हारमोनियम संभाला और विधिवत रूप से सीखने लगी।

उत्तराखण्ड आन्दोलन के फलःस्वरुप मुजफ्फरनगर, खटीमा और मसूरी गोलीकांड की पीड़ा को बसंती बिष्ट ने गीत में पिरोया और राज्य आंदोलन में कूद पड़ी। अपने लिखे गीतों के जरिये वह लोगों से राज्य आंदोलन को सशक्त करने का आह्वान करती। राज्य आंदोलन के तमाम मंचों पर वह लोगों के साथ गीत गाती। इससे उन्हें मंच पर खड़े होने का हौसला मिला।

40 वर्ष की आयु में पहली बार वह गढ़वाल सभा के मंच देहरादून के परेड ग्राउंड में पर जागरों की एकल प्रस्तुति के लिए पहुंची। अपनी मखमली आवाज में जैसे ही उन्होंने मां नंदा का आह्वान किया पूरा मैदान तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। दर्शकों को तालियों ने उन्हें जो ऊर्जा और उत्साह दिया, वह आज भी कायम है। उन्हें खुशी है कि उत्तराखंड के लोक संगीत को राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है।[2]बसंती बिष्ट ने मां नंदा के जागर को उन्होंने स्वरचित पुस्तक ‘नंदा के जागर- सुफल ह्वे जाया तुम्हारी जात्रा’ में संजोया है। [3]

इन्हें भी देखें

संपादित करें
  1. "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 28 जनवरी 2017. Retrieved 28 जनवरी 2017.
  2. "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 28 जनवरी 2017. Retrieved 28 जनवरी 2017.
  3. "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 2 फ़रवरी 2017. Retrieved 28 जनवरी 2017.