बहराइच दंगा अथवा महराजगंज कस्बा दंगा भारत देश के राज्य उत्तर प्रदेश के बहराइच ज़िला में १३ अक्टूबर २०२४ को हिंदू-मुस्लिम साम्प्रदायिक हिंसा हो गई थी। हिंसा की शुरुआत दुर्गा प्रतिमा मूर्ति विसर्जन के जुलूस के दौरान मस्जिद के पास डिजे पर भड़काऊ गाना और भड़काऊ नारे लगाने से शुरू हुआ था। उसी वक्त रामगोपाल मिश्रा नाम के युवक ने अब्दुल हमीद के घर की छत पर चढ़कर वहाँ छत की रेलिंग पर लगे हरे रंग के झंडे को हटाकर भगवा झंडा फहरा दिया रेलिंग भी तोड़ दिया। इसी बीच रामगोपाल मिश्रा को किसी ने गोली मार दी, उसे बहराइच के जिला चिकित्सालय ले जाया गया। वहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। उसके बाद दूसरे दिन सुबह ९,१० बजे दंगा शुरू हुआ। [1]
१३ अक्टूबर २०२४ को लगभग ४ बजे से ६ बजे शाम के वक्त महसी तहसील में दुर्गा मूर्ति विसर्जन की यात्रा जा रही थी। यात्रा के दौरान डीजे पर गाने बज रहे थे। जब यात्रा तहसील मुख्यालय से कुछ दूर आगे महराजगंज कस्बे में मस्जिद के पास पहुंची तो वहाँ डीजे पर भड़काऊ गाना बजाया जाने लगा, जैसे जिस दिन जाग उठा हिंदुत्व तो यह अंजाम बोलेगा की टोपी वाला भी सर झुका के जय श्री राम बोलेगा यही वह भड़काऊ गाना था जिसकी वजह से हिंसा हुई थी इसके अलावा और भी बहुत सारे भड़काऊ सोंग्स चल रहे थे, जब मुसलमानों द्वारा इस गाने पर आपत्ति किया गया तो उसमें मौजूद लड़के हाथापाई पर आ गए वह लोग बोल रहे थे कि यह गाना बंद नहीं किया जाएगा। इसी बीच किसी मुसलमान लड़के ने जाकर डीजे का पेन ड्राइव निकाल दिया, कुछ लोगों का कहना है कि सरफराज उर्फ रिंकू ने डीजे की पेन ड्राइव निकली थी, जो अब्दुल हमीद का लड़का था,जिसकी वजह से गाना बंद हो गया गाना बंद होने के बाद वहां पर हिंदू लड़के जोर-जोर से नारे बाजी करना शुरू कर दिये, इस नारेबाजे की उकसावे में आकर राम गोपाल मिश्रा नाम का युवक अब्दुल हमीद के घर की छत पर चढ़ गया, वहां लगे हरे रंग का इस्लामी झंडे को हटाकर अपना भगवा झंडा फहराने लगा, उसके बाद उसने उसे ग्रीन झंडे को अपने पैरों से राउंड रहा था और उसको फाड़ रहा था इसी बीच किसी ने राम गोपाल मिश्रा को गोली मार दी जिससे वह नीचे गिर गया फिर उसके बाद उसके साथियों ने उसको बहराइच जिला चिकित्सालय ले गए वहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई, बवाल होते देखा वहां मौजूद हरदी थाना और महसी पुलिस चौकी की पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया जिसे भीड़ भाग गई और कुछ माहौल में सुधार आई और भी कुछ पुलिस बल बुलाया गया जिसे शांति बनाया जाए उसे समय तो मामला शांत हो गया लेकिन सुबह जब राम गोपाल मिश्रा के शव को घर लाया गया उसके बाद उसको तहसील के मुख्यालय के पास रखकर विरोध प्रदर्शन के लिए भीड़ जमा हो गई , देखते-देखते पास पड़ोस के 50-60 गांव के लोग वहां पर जमा हो गए और सबके हाथों में डंडे और कुछ हथियार थे, तहसील मुख्यालय से महज 800 मीटर की दूरी पर ही कस्बा महाराजगंज है जो मुस्लिम बहुल कस्बा है, वहां पर रात से ही पुलिस बल मौजूद था उसके बावजूद यह सारी भीड़ महाराजगंज कस्बे में घुसकर तोड़फोड़ लूटपाट आगजनी करने लगी, कम से कम 50 टू व्हीलर गाड़ियों को जला दिया गया और फोर व्हीलर की गाड़ियों को भी जलाया गया ट्रैक्टर्स को भी जलकर राख कर दिया गया, एक हीरो की एजेंसी को चला दिया गया जिसमें कम से कम 30 से 35 मोटरसाइकिल थी, उसी के बाजू में लखनऊ सेवा अस्पताल को भी जलकर राख कर दिया गया यह सब होते देखा पास पड़ोस के गांव में भी दंगे शुरू हो गए जिस गांव में मुसलमान की तादाद कम थी वहां पर उनके घरों को जला दिया गया उनको मारा पीटा गया कम से कम 20 से 30 किलोमीटर अराउंड दंगा शुरू हो गया, मुसलमानों ने घर छोड़कर भागकर धान के खेतों में लेट कर जान बचाई, लेकिन उनके घरों को चला दिया गया कुछ नहीं छोड़ा जो भी मिला सब जला दिया गया, दंगा होते बहराइच की डीएम और एसपी ब्रिंदा शुक्ला ने भारी पुलिस बल तैनात किया उसके बावजूद भी भीड़ पर काबू नहीं किया जा पा रहा था जब गोरखपुर क्षेत्र के एडीजी लॉ एंड ऑर्डर अमिताभ यश आए। फिर उन्होंने भीड़ को काबू किया[4]