नेपाल स्थित हिमालय की पहाडि़यों से निकली बांसी नदी पिपरा-पिपरासी, मधुबनी, पडरौना के खिरकिया स्थान होते हुए सेवरही के शिवाघाट से आगे पिपराघाट में नारायणी में जाकर मिल जाती है। करीब 100 किमी की यात्रा करते हुए यह नदी सैकड़ों गांवों को अपने जल से प्रभावित करती रहती है।

इस नदी के महत्व को 'सौ काशी और एक बांसी' की लोकोक्ति से समझा जा सकता है। त्रेता युगीन पौराणिक महत्व की यह नदी संबंधित क्षेत्र के लोगों के लिए जीवनदायिनी है। ऐसी मान्यता है कि मिथिला जाते समय भगवान श्रीराम ने विश्वामित्र ऋषि और अपने भाई लक्ष्मण के साथ बांसी नदी के तट पर विश्राम किया था। माघ माह में स्नान के अवसर पर मोक्ष प्राप्ति के लिए इस नदी में लाखों लोग डुबकी लगाते हैं।

प्रदूषण

पडरौना व सेवरही के शहरी इलाके के सीवरेज में मलजल के बहाव व चीनी मिलों के अपशिष्ट युक्त जल के इस नदी में आकर मिलने से इस नदी का जल आज जहरीला होकर जीवों के लिए खतरनाक हो गया है। इसके अलावा वही गंडक नहर प्रणाली पर स्थित गनेशा पट्टी फाल के माध्यम से नहर के ओवर फ्लो को बांसी नदी में मिलाने के कारण नहर का सिल्ट नदी में जमा होने से भी नदी की गहराई और चौड़ाई प्रभावित हो रही है।