बाक़ी (सन् १५२६-१६०० ई.) सोलहवीं शती के एक प्रसिद्ध तुर्क कवि थे।

परिचय संपादित करें

इसका पूरा नाम महमूद अब्दुल् बाक़ी था और इसका जन्मस्थान कुस्तुंतुनिया (इस्तांबोल) है। यह दरिद्र घराने का व्यक्ति था किंतु इसको उस समय के प्रसिद्ध विद्वानों से शिक्षा ग्रहण करने का अवसर मिला और तुर्की के उच्च कोटि के साहित्यकारों एवं कवियों का सत्संग भी। १८-१९ वर्ष ही की अवस्था में इस्ताबोल के प्रसिद्ध कवियों में इसकी गणना होने लगी। सन् १५५५ ई. में जब सुलतान सुलेमान आज़म ईरान की चढ़ाई से लौट आया, बाक़ी ने उसके एश्वर्य पर बड़ा उल्लासपूर्ण एक प्रशंसात्मक कसीदा उसके समक्ष उपस्थित किया। सुलतान इसे सुनकर इतना प्रभावित हुआ कि उसने बाक़ी से अपनी कविताओं पर 'नज़ीरिए' लिखने का आदेश दिया। इस प्रकार इसकी पहुँच दरबार तथा उच्च कोटि के समाज तक सहज में हो गई। सुलतान की इस कृपा से स्वयं इसके मित्रगण भी जलने लगे परंतु यह तुर्की का सबसे बड़ा कवि माना जाने लगा और इसकी प्रसिद्धि बड़ी शीघ्रता से पूरे राज्य ही में नहीं, प्रत्युत हिंदुस्तान तक फैल गई।

सुल्तान सुलेमान की विशेष कृपा से बाक़ी को उसकी निकट पार्श्ववर्तिता प्राप्त हो गई थी। इस कारण सुलतान की मृत्यु का इसपर बड़ा प्रभाव पड़ा और इसी प्रभाव के कारण इसने सुलतान की स्मृति में एक मरसिया लिखा, जो इसकी श्रेष्ठ रचना मानी जाती है। बाक़ी अरबी तथा फारसी का भी विद्वान् था। इसने अरबी की बहुत सी पुस्तकों का तुर्की में अनुवाद भी किया है और फारसी भाषा में कविता भी की है। परंतु इसकी सर्वाधिक जनप्रियता तुर्की की कविता ही के कारण हुई है और इसको उस युग के कवियों की प्रथम श्रेणी ही में स्थान नहीं दिया गया है, प्रत्युत तुर्की के गज़ल गायकों का सिरताज भी कहा गया है। गज़लों के सिवा इसके क़सीदे तथा मरसिए भी काव्यदृष्टि से पूर्णता तक पहुँचे हुए हैं। यद्यपि इसने अपने अनेक पूर्ववर्तियों की कविता से लाभ उठाया है तथापि अपने विशिष्ट व्यक्तित्व को भी बनाए रखा है।

सन्दर्भ ग्रन्थ संपादित करें

  • ई.जे.डब्ल्यू. गिब्ब : ए हिस्ट्री ऑव औटोमन पोएट्री;
  • एन. येसिरगिल : बाक़ी (इस्तांवोल, १९५३),
  • आर, द्वेरक: बाक़ी का दीवान (लाइडेन, १९११)