बाबा भूरादेव जी माता शाकम्भरी देवी के अनन्य भक्त थे। माता जी की आज्ञा से उन्होंने देवासुर संग्राम में भाग लिया था और राक्षसों को मार गिराया था। लेकिन युद्ध के अंत में अपने पांच साथियों सहित शहीद हो गए थे। युद्ध के अंत मे जब माता शाकंभरी देवी शेर पर सवार होकर रणघाटी का निरीक्षण करने लगी। तब उनको भूरादेव का शव दिखाई दिया। उसको माता ने संजीवनी विद्या के प्रताप से जीवित किया और कहां कि कहो तो मैं तुम्हें जीवित कर दू। लेकिन भूरादेव ने कहा कि मैं सदा आपके चरणों में ही रहना चाहता हूं मुझे केवल यही वर दीजिएगा । तब माता उस की भक्ति भावना से अति प्रसन्न हुई और उस को वरदान दिया कि तुम युग युग तक अमर रहोगे और जो भी भक्त यात्री मेरे प्रताप को सुनकर इस धाम के दर्शन करने के लिए आएगा। वह सर्वप्रथम तुम्हारा ही दर्शन करेगा। तेरे रूप में ही उनको मेरे रूप के दर्शन हो जाएंगे बगैर सर्वप्रथम तेरी पूजा के मुझे अपनी पूजा स्वीकार नहीं होगी। यह वरदान देकर माता शेरावाली अदृश्य हो गई 'सर्वखल्विदमेवाह न यदस्ती सनातनम'

भुरादेव मंदिर
भुरादेव,शाकुम्भरी देवी सहारनपुर
भुरादेव मंदिर
बाबा भुरादेव मंदिर
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धताहिन्दू धर्म
देवताभुरादेव
त्यौहारनवरात्र दुर्गा अष्टमी, चतुर्दशी
अवस्थिति जानकारी
अवस्थितिसहारनपुर
राज्यउत्तर प्रदेश
देशभारत
वास्तु विवरण
निर्माताअज्ञात
निर्माण पूर्णजसमौर रियासत के शासक

अर्थात माता ने कहा था यह संपूर्ण सनातन जगत में ही हूं मेरे सिवा कोई दूसरी अविनाशी वस्तु इस ब्रह्मांड में नहीं है।

शाकम्भरी माता राजस्थान