बाबू गेनू सैद
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बाबू गेनू सैद (1 जनवरी 1908 – 12 दिसम्बर 1930) भारत के स्वतंत्रता-संग्राम सेनानी एवं क्रांतिकारी थे। उन्हें भारत में स्वदेशी के लिये बलिदान होने वाला पहला व्यक्ति माना जाता है।
1930 में महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह आरम्भ किया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इसका विशेष महत्व है। सम्पूर्ण भारत के लोग अबाल-वृद्ध, शिक्षित-अशिक्षित, ग्रामीण नागरिक सबने उसमे भाग लिया। शराब की दुकानों के आगे धरना दिया और विदेशी कपड़ो की होली जलाई, जुलुस निकाले और घरो ने नमक बनाकर नमक कानून को तोड़ा। सरकार ने जनता पर असीम अत्याचार किये। कई लोगो को बंदी बनाया गया, लाठीचार्ज किया गया और बंदूके भी चलाई गयी। इस प्रकार से अत्याचार से विदेशी शासन के विरुद्ध आक्रोश फ़ैल गया।
पुणे जिले के महांनगुले गाँव में ज्ञानोबा आब्टे का पुत्र बाबू गेनू 22 वर्ष का था वह भी सत्याग्रहियों में सम्मलित था। वह केवल चौथी कक्षा तक पढ़ा हुआ था। बाबू के माता-पिता उससे बहुत प्रेम करते थे। उसके अध्यापक गोपीनाथ पंत उसको रामायण, महाभारत और छत्रपति शिवाजी की कहानिया सुनाते थे। बाबू दस वर्ष का भी नही हुआ था कि उसके पिता की मृत्यु हो गयी और परिवार का भार उसकी माँ के कन्धो पर आ गया। वह भी उसकी सहायता करता था।
माँ उसका जल्दी से जल्दी विवाह करना चाहती थी परन्तु वह भारत माँ की सेवा करना चाहता था इसलिए उसने विवाह करने से मना कर दिया और वह मुम्बई चला गया। वह तानाजी “पाठक” के दल में सम्मिलित हो गया। वह वडाला के नमक पर छापा मारने वाले स्वयंसेवकों के साथ हो गया। वह पकड़ा गया और उसको कठोर कारावास का दंड दिया गया। वह जब यरवदा जेल से छुटा तो माँ से मिलने गया जो लोगो से उसके वीर पुत्र की प्रशंशा सुनकर बहुत प्रसन्न थी।
माँ की आज्ञा लेकर वह फिर मुम्बई अपने दल में जा मिला। उसको विदेशी कपड़ो के बाहर धरना देने का काम सौंपा गया जो उसने बखूबी निभाया। धरना देने वाले सत्याग्रहियों से न्यायाधीश ने पूछा कि क्या तुम विदेशी कपड़ो से भरे ट्रक के सामने लेट सकते हो? बाबू ने इस चुनौती को मन ही मन स्वीकार कर लिया और यह भी निश्चय कर लिया कि आवश्यक होने पर वह अपना बलिदान भी दे सकता है। 12 दिसम्बर 1930 को ब्रिटिश एजेंटों के कहने से विदेशी कपड़ो के व्यापारियों ने एक ट्रक भरकर उसको सड़क पर निकाला। ट्रक के सामने एक के बाद एक 30 स्वयंसेवक लेट गये और ट्रक को रोकना चाहा। पुलिस ने उसको हटाकर ट्रक को निकलने दिया।
बाबू गेनू ने ओर कोई ट्रक वहां से न निकलने का निश्चय कर लिया और वह सड़क पर लेट गया। ट्रक उस पर होकर निकल गया और वह अचेत हो गया। उसको अस्पताल ले गये जहा उसकी मृत्यु हो गयी। ट्रक ड्राईवर और पुलिस की क्रूरता से शहीद हो गया किन्तु वह लोकप्रिय हो गया। उसका नाम भारत के घर घर में पहुच गया और बाबू गेनू अमर रहे के नारे गूंजने लगे। महानुगले गाँव में उसकी मूर्ति लगाई गयी जहा वह शहीद हुआ था। उस गली का नाम गेनू स्ट्रीट रखा गया। कस्तूरबा गांधी उसके घर गयी और उसकी माँ को पुरे देश की तरफ से सांत्वना दी। एक साधारण मजदूर के द्वारा दी गयी शहादत को यह देश कभी नही भूल सकता है।
सन्दर्भ
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- स्वदेशी के प्रथम शहीद-बाबू गेनू (प्रवक्ता)
- स्वदेशी के हुतात्मा वीर बाबू गेनू (स्वदेशी ब्लॉग)
- स्वदेशी के प्रवर्तकबाबू गेनू (पाञ्चजन्य)
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