सदियो से "बाबू साहब उपाधि" का प्रयोग मुख्य रूप भोजपुरी भाषी क्षेत्र में भूमिहार सामंतों के लिए किया जाता था। 12 वीं से 16 वीं शताब्दी के बीच राजस्थान और मध्यप्रदेश से निर्वासित होकर बिहार में राजपूत परिवार भी बस गए और उन्हें भी स्थानीय राजाओं के द्वारा सामंत बनाया गया, जिसके कारण राजपूतों को भी "बाबू साहब की उपाधि" से संबोधित किया जाने लगा।

सदियों से बिहार में कर्मकांडी ब्राह्मण समूह को "बाबा की उपाधि" से संबोधित किया जाता था और अयाचक ब्राह्मण के भूमिहार समूह को "बाबू "की उपाधि से संबोधित किया जाता था। बाबा और बाबू दोनों शब्द आपस में पर्यायवाची है जिसका अर्थ होता है -सम्मानित अथवा प्रिय व्यक्ति। मुस्लिम शासन के दौरान बिहार के बाबू (भूमिहार सामंतों) को "बाबू साहब की उपाधि" से संबोधित किया जाने लगा। साहब एक उर्दू शब्द है जिसका प्रयोग मुस्लिम शासन के द्वारा सम्मानित व्यक्तिओं के लिए किया जाता था। कालांतर में भूमिहारों के अलावा अन्य जाति के श्रेष्ठ और सम्मानित व्यक्तिओं के लिए भी "बाबू" उपाधि का प्रयोग किया जाने लगा।