बिनसर वन्य अभयारण्य (Binsar Wildlife Sanctuary) भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अल्मोड़ा ज़िले में स्थित एक वन्य अभयारण्य है। यह अल्मोड़ा से लगभग ३४ किलोमीटर दूर है और समुद्र तल से लगभग २४१२ मीटर की उंचाई पर है। बिनसर लगभग ११वीं से १८वीं शताब्दी तक चन्द राजाओं की राजधानी रहा था। अब इसे वन्य जीव अभयारण्य बना दिया गया है।[1][2]

बिनसर वन्य अभयारण्य
Binsar Wildlife Sanctuary
आईयूसीएन श्रेणी चतुर्थ (IV) (आवास/प्रजाति प्रबंधन क्षेत्र)
बिनसर अभयारण्य में पहाड़ी ढलान पर बलूत वृक्ष
बिनसर वन्य अभयारण्य की अवस्थिति दिखाता मानचित्र
बिनसर वन्य अभयारण्य की अवस्थिति दिखाता मानचित्र
अवस्थितिउत्तराखण्ड, भारत
निकटतम शहरअल्मोड़ा
निर्देशांक29°42′18″N 79°45′14″E / 29.705°N 79.754°E / 29.705; 79.754निर्देशांक: 29°42′18″N 79°45′14″E / 29.705°N 79.754°E / 29.705; 79.754
क्षेत्रफल45.59 किमी2
स्थापित1988
शासी निकायवन विभाग, उत्तराखण्ड सरकार

बिनसर झांडी ढार नाम की पहाडी पर है। यहां की पहाड़ियां "झांदी धार" के रूप में जानी जाती हैं। बिनसर गढ़वाली बोली का एक शब्द है - जिसका अर्थ "नव प्रभात" है। यहां से अल्मोड़ा शहर का उत्कृष्ट दृश्य, कुमाऊं की पहाडियां और ग्रेटर हिमालय भी दिखाई देते हैं। घने देवदार के जंगलों से निकलते हुए शिखर की ओर रास्ता जाता है, जहां से हिमालय पर्वत श्रृंखला का अकाट्य दृश्‍य और चारों ओर की घाटी देखी जा सकती है। बिनसर से हिमालय की केदारनाथ, चौखंबा, त्रिशूल, नंदा देवी, नंदाकोट और पंचोली चोटियों की ३०० किलोमीटर लंबी शृंखला दिखाई देती है, जो अपने आप में अद्भुत है और ये बिनसर का सबसे बड़ा आकर्षण भी हैं।

बिनसर अभयारण्य में तेंदुआ पाया जाता है। इसके अलावा हिरण और चीतल तो आसानी से दिखाई दे जाते हैं। यहां २०० से भी ज्यादा तरह के पक्षी पाये जाते हैं। इनमें मोनाल सबसे प्रसिद्ध है ये उत्तराखंड का राज्य पक्षी भी है किन्तु अब ये बहुत ही कम दिखाई देता है। अभयारण्य में एक वन्य जीव संग्रहालय भी स्थित है।

बिन्सर महादेव

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रानीखेत से १९ किलोमीटर की दूरी पर बिन्सर महादेव मंदिर समुद्र तल से २४८० मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस क्षेत्र का प्रमुख मंदिर है। मंदिर चारों तरफ से घने देवदार के वनों से घिरा हुआ है।[3] मंदिर के गर्भगृह में गणेश, हरगौरी और महेशमर्दिनी की प्रतिमा स्थापित है। महेशमर्दिनी की प्रतिमा पर मुद्रित नागरीलिपि मंदिर का संबंध नौवीं शताब्दी से जोड़ती है। इस मंदिर को राजा पीथू ने अपने पिता बिन्दू की याद में बनवाया था। इसीलिए मंदिर को बिन्देश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां हर साल जून के महीने में बैकुंड चतुर्दिशी के अवसर पर मेला लगता है। मेले में महिलाएं पूरी रात अपने हाथ में दिए लेकर सन्तान प्राप्ति के लिए आराधना करती हैं। गढवाल जनपद के प्रसिद्ध शिवालयों श्रीनगर में कमलेश्वर तथा थलीसैण में बिन्सर शिवालय में बैकुंठ चतुर्दशी के पर्व पर अधिकाधिक संख्या में श्रृद्धालु दर्शन हेतु आते हैं तथा इस पर्व को आराधना व मनोकामना पूर्ति का मुख्य पर्व मानते हैं।[4]

बिनसर मंदिर

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पौड़ी मुख्यालय से ११८ किलोमीटर दूर थैलीसैंण मार्ग पर ८००० फीट की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ का प्रसिद्ध बिनसर मन्दिर देवदास के सघन वृक्षो से आच्छादित ९००० फीट पर दूधातोली के ऑचल में विद्यमान है। जनश्रुति के अनुसार कभी इस वन में पाण्डवों ने वास किया था। पाण्डव एक वर्ष के अज्ञातवास में इस वन में आये थे और उन्होंने मात्र एक रात्रि में ही इस मन्दिर का निर्माण किया।[5]

इन्हें भी देखें

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  1. "Uttarakhand: Land and People," Sharad Singh Negi, MD Publications, 1995
  2. "Development of Uttarakhand: Issues and Perspectives," GS Mehta, APH Publishing, 1999, ISBN 9788176480994
  3. बिन्सर-एक छोटा लेकिन बेहद खूबसूरत हिल स्टेशन Archived 2010-01-24 at the वेबैक मशीन। यात्रा सलाह
  4. ह्वे गे झिग्जा पुतुड़ी[मृत कड़ियाँ]
  5. "प्राचीन गढ़वाल / कुमाओं के बारे में". मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 जनवरी 2010.