बिलियर्ड्स आयताकार टेबल पर छोटी गेंदों की एक निश्चित संख्या व एक लम्बी छ्ड़ी से, जिसे क्यू कहा जाता है, से खेले जाने वाले विभिन्न खेलों में से एक है। कैरम या फ़्रेंच बिलियर्ड्स तीन गेंदों से एक बिना पॉकेट वाली टेबल पर खेला जाता हैं अन्य प्रमुख खेल छ: पॉकेट वाली टेबलों पर खेले जाते हैं, जिनमें हर कोने में एक-एक और दोनों लम्बी भुजाओं में एक-एक पॉकेट होती हैं।

स्नूकर इंग्लिश बिलियर्ड्स के लिये प्रयुक्त टेबल पर व उसी आकार की गेंदों से खेला जाता है। यह खेल 22 गेंदों से खेला जाता है: सफ़ेद क्यू गेंद, 15 लाल गेंद और छह रंगीन गेंद, जिनका पीली के 2, हरी के 3, भूरी के 4, नीली के 5, गुलाबी के 6 व काली के 7 के हिसाब से अंक होते हैं।

खेल के नियम

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खिलाड़ी को पहले एक लाल गेंद को पॉकेट में डालकर फिर किसी भी रंग की गेंद डालने का प्रयास करना चाहिये, जिससे उसे पॉकेट में डाली गई गेंद के रंग के अनुसार अंक मिलते रहें। उसके बाद लाल व रंगीन गेंदें एक के बाद एक पॉकेट में डाली जाती हैं। पॉकेट में डाले जाने के पश्चात प्रत्येक लाल गेंद वहीं रहती है, जबकि अन्य रंगों की गेंदें, जब पॉकेट में डाल दी जाएं, तो जब तक कोई भी लाल गेंद टेबल पर बची रहती है, तब तक वापस अपने निर्धारित स्थान पर रखी जाती हैं। खेल तब तक चलता है, जब तक केवल छह रंगो की गेंदें ही टेबल पर न रह जाएं। अंत में छह रंगीन गेंदों को उनके अंकों के मूल्य के अनुसार क्रम से पॉकेट में डाला जाना चाहिये। जब आख़िरी गेंद पॉकेट में डाल दी जाती है, तो खेल समाप्त हो जाता है। खेल के दौरान यदि (अन्य गेंद अथवा गेंदों की रूकावट के कारण) कोई खिलाड़ी उस गेंद पर प्रहार नहीं कर पाता, जिस पर उसे नियमानुसार प्रहार करना चाहिये, तो कहा जाता है कि उसने स्नूकर कर दिया है और वह अपना दांव खो देता है; यह स्थिति खेल को उसका नाम देती है।

पॉकेट बिलियर्ड्स या पूल

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पॉकेट बिलियर्ड्स या पूल, जो 15 गेंदों व एक क्यू गेंद से खेला जाता है। पॉकेट बिलियर्ड्स सामान्यत:1.4 मीटर x 2.7 मीटर की टेबल पर खेला जाता है, यद्यपि विशेष प्रतियोगिताओं में टेबल कभी-कभी 1.5 मीटर x 3 मीटर भी होती है। पॉकेट बिलियर्ड्स में एक सफ़ेद गेंद के साथ ही 15 संख्याकित लक्ष्य गेंदें होती हैं; जिनमें 1 से 8 लक्ष्य गेंदों पर एक ही रंग होता है, 9 से 15 तक पट्टियां होती हैं। खेल की शुरुआत में 15 लक्ष्य गेंदें टेबिल के एक कोने पर त्रिभुजाकार अभिरचना में त्रिभुजाकार लकड़ी अथवा प्लास्टिक के, रैक के द्वारा रखी जाती है। पहला खिलाड़ी संरचना को क्यू बॉल से तोड़ता है; फिर वह लक्ष्य गेंदों को किसी निर्दिष्ट क्रम या रीति से पॉकेट में डालने का प्रयास करता है। सफल प्रहार न कर पाने पर दूसरे खिलाड़ी को प्रहार करने का अवसर मिलता है। ऐसा ही क्यू बॉल को पॉकेट में डाल देने से होता है, जिसे ‘स्क्रैचिंग’ कहा जाता है। स्ट्रेट पूल में प्रत्येक खिलाड़ी 14 लक्ष्य गेंदों को किसी भी क्रम अथवा संयोजन में पॉकेट में डालने का प्रयास करता है। हालांकि प्रत्येक प्रहार के पूर्व, खिलाड़ी को गेंद की संख्या व निर्दिष्ट पॉकेट बताना होता है; यदि वह सफल होता है, तो उसे एक अंक मिलता है।

बिलियर्ड्स के सभी खेलों के लिये एक टेबल, क्यू स्टिक्स व और गेंदें आवश्यक हैं। पारंपरिक महोगनी की टेबल आज भी प्रयोग की जाती है, लेकिन अब टेबल सामान्यत: अन्य लकड़ियों व सिंथेटिक साम्रगी की बनती हैं। इसकी विशाल आयताकार टेबल विशिष्ट रूप से चौड़ाई से अधिक दुगुनी लम्बी होती है। इसकी ऊपरी सतह सामान्यत: समतल स्लेट की बुने हुए ऊनी कपड़े से ढकी होती है, जिसे कभी-कभी ‘फ़ेल्ट’ कहा जाता है। कठोर रबड़ अथवा सिंथेटिक रबड़ का मुड़ा हुआ घेरा, जिसे कुशन कहा जाता है, टेबल की अंदरूनी किनारे पर लगा होता है। क्यू चिकनी लकड़ी अथवा सिंथेटिक साम्रगी की एक ओर से क्रमश: पतली होती छ्ड़ होती है, जो लंबाई में 100 से 150 सेमी तक होती है। क्यू के पतले छोर पर, जिससे गेंद पर प्रहार किया जाता है, प्लास्टिक, फ़ाइबर तथा हाथीदांत जड़ा जाता है, जिस पर एक चमड़े का टुकड़ा चिपका होता है। छोटे घनाकार टुकड़ों से क्यू के सिरे पर एक समान चॉक लगाया जाता है, जिससे खिलाड़ियों को क्यू गेंदों को मध्य से प्रहार कर फिरकी वाली चाल देने में सहायता मिलती है, जिसे ग्रेट ब्रिटेन में ‘साइड’ व संयुक्त राज्य अमेरिका में ‘इंग्लिश’ कहा जाता है। बिलियर्ड्स की गेंद, जो पहले हाथीदांत अथवा बेल्जियन मिट्टी की बनाई जाती थीं, अब सामान्यत: प्लास्टिक की होती हैं; और उनमें प्रत्येक 5.7 से 6 सेमी व्यास की होती है, बड़ी गेंद कैरम बिलियर्ड्स में प्रयोग की जाती हैं।

भारत में बिलियर्ड्स

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भारत में बिलियर्डस और स्नूकर जैसे कौतूहल जगाने वाले खेल बहुत कम हुये हैं। अंधेरे कमरे, बेहतरीन कपड़े पहने खिलाड़ी और कुछ वर्ष पूर्व तक 18 की उम्र के नीचे वालों का प्रवेश निषेध करते सूचना पट्ट, सभी बिलियर्ड्स और स्नूकर को रहस्यमय बनाते थे, जिससे कई युवा इस खेल की ओर आकर्षित हुए। इनमें से एक चार बार के पेशेवर बिलियर्ड्स के विश्व विजेता गीत सेठी थे। 12 वर्ष की उम्र में गीत अक्सर अहमदाबाद के रेलवे क्लब बिलियर्ड्स कक्ष में नज़र बचाकर घुस जाते व क्यू पर हाथ आजमाते। यह शीघ्र ही उनका शौक़ बन गया और केवल आठ वर्ष बाद 1981 में वह सबसे कम उम्र के राष्ट्रीय विजेता बने। उन्हें शौक़िया खिलाड़ियों का विश्व ख़िताब 1984 में मिला। सेठी की सफलता उसी महान भारतीय बिलियर्ड्स परंपरा की कड़ी थी, जो 1958 में उस समय सुर्खियों में आई थी, जब विल्सन जोन्स ने शौक़िया खिलाड़िया का विश्व खिताब जीता। जोन्स द्वारा स्थापित प्रतिमान के बाद, माइकल फ़रेरा ने पुराने और नए दौर के बीच सेतु का काम किया। फ़रेरा ने अपना पहला शौक़िया ख़िताब 1977 में जीता और 1983 तक दो बार और जीतकर अंग्रेज़ों के वर्चस्व को गंभीर चुनौती दी, जिन्होंने 19वीं शाताब्दी में खेल का भारतीय उपमहाद्वीप में परिचय कराया था। फ़रेरा उन बहुत से खिलाड़ियों की पीढ़ी के थे, जो अच्छा बिलियर्ड्स खेलते थे और प्रतिद्वंद्वियों को निश्चित ही कठिन चुनौती देते थे। इस पीढ़ी में सतीश मोहन, अरविंद सावूर और अलीम शामिल थे। गीत सेठी द्वारा फ़रेरा के नक़्शे क़दम पर चलने से, 1980 व 1990 के दशक ने निश्चित ही भारतीय बिलियर्ड्स का स्वर्णिम युग देखा। सेठी ने 1986 में एक और शौक़िया ख़िताब जीता और 1990 के दशक में चार पेशेवर विश्व ख़िताब जीते, जिनमें से अंतिम 1998 में जीता गया। शौक़िया बिलियर्ड्स में भारत के कीर्तिमानों में एक और प्रतिष्ठापूर्ण अध्याय 1990 में तब जुड़ा मनोज कोठारी 'आर्थर वॉकर ट्राफ़ी' जीतने वाले चौथे भारतीय बने। जब 1988 में बैंकाक के एशियाई खेलों में ये खेल शामिल किये गए, तब अशोक शांडिल्य ने भारत के लिये स्वर्ण पदक जीते। शांडिल्य ने सेठी के साथ मिलकर युगल स्पर्द्धा जीती और फ़ाइनल में सेठी को हराकर स्वर्ण पदक जीता। आलोक कुमार, देवेंद्र जोशी, धर्मेंद्र लिली, मन्नन चंद्र और अन्य के साथ शांडिल्य बिलियर्ड्स में भारत के भविष्य के प्रति आशा बंधाते हैं। ओम अग्रवाल ने स्नूकर में शौक़िया विश्व प्रतियोगिता 1984 में जीती। यासिन मर्चेंट 1989 में एशियाई प्रतियोगिता जीतकर विश्व स्नूकर में अपना मुक़ाम बनाने वाले एकमात्र अन्य भारतीय बने। क्यू खेल भारत के युवाओं में तेज़ी से लोकप्रिय होते जा रहे हैं। पूल और कैरम आजकल युवाओं को बहुत आकर्षित कर रहे हैं, जो हर क्षेत्र में बढ़ते पूल पार्लरों के कारण सुलभ भी होते जा रहे हैं। बिलियर्ड्स के इन अधिक आकर्षक रूपों के बेहतर नियोजन से भविष्य के विजेताओं का उदय निश्चित है।