बिशन सिंह शेखावत

पत्रकार, शिक्षक

ग्राम खाचरियावास सीकर (शेखावाटी क्षेत्र) में जन्मे और शिक्षित, अब दिवंगत, राजस्थान के एक जाने-माने अध्यापक, शिक्षक-नेता, भारतीय उपराष्ट्रपति भैंरोंसिंह शेखावत के छोटे भाई थे जो राजकीय सेवानिवृत्ति के बाद [पत्रकार-कवि कर्पूर चंद कुलिश के दैनिक समाचार-पत्र राजस्थान पत्रिका से जुड़े और जिन्होंने बहुत लम्बे समय तक राजस्थान के हर बड़े गाँव का इतिहास और उनकी वर्तमान दशा-दिशा पर टिप्पणी अपने जनप्रिय स्तम्भ 'आओ गाँव चलें !' में नियमित रूप से लिखी.

स्वर्गीय बिशन सिंह की जीवन व पत्रकारिता पर जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के एक शोध छात्र सचिन बत्रा ने एक पुस्तक —शिक्षक नेता एवं जुझारू पत्रकार — बिशनसिंह शेखावत लिखी। सचिन ने बिशन सिंह जी के शिक्षक जीवन और गांव—गांव की समस्याओं को रेखांकित करने वाले उनके स्थाई स्तंभ आओ गांव चलें सहित समाचारो व आलेखों पर एमए पत्रकारिता एवं जनसंचार के दौरान शोध किया और उसे पुस्तक के रूप में प्र​काशित किया गया। इस पुस्तक का विमोचन तत्कालीन राज्यपाल महामहिम अंशुमान सिंह जी साथ ही राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और प्रतिपक्ष के नेता माननीय भैरोसिंह शेखावत जी ने 10 जून 2000 को राजभवन जयपुर में किया था। https://www.exoticindiaart.com/book/details/teacher-leader-and-belligerent-journalist-bishan-singh-shekhawat-uaa130/

इस पुस्तक में बिशन जी के सिद्धांतवादी, परिश्रमी और सादगी से पूर्ण सरल जीवन के बारे में बताया गया है। साथ ही पुस्तक में स्वर्गीय बिशन जी की नेतृत्व क्षमता पर भी प्रकाश डाला गया है कि कैसे उन्होंने छोटे—छोटे शिक्षक संघों को एकीकृत कर राजस्थान शिक्षक संघ जैसे विशाल संगठन की स्थापना कर शिक्षकों की समस्याओं के समाधान का मार्ग प्रशस्त किया। इसमें बताया गया है कि शिक्षक जीवन के बाद पत्रकारिता में कार्यरत रहते हुए राजस्थान पत्रिका के माध्यम से बिशनसिंह जी ने गांवों की समस्याओं, विशेषताओं और चुनौतियों को मंच देते हुए राजस्थान के हज़ारों गावों की यात्रा कर अपने आलेखों में इतिहास दर्ज कर दिया।

उल्लेखनीय है कि स्वर्गीय बिशनसिंह शेखावत जी के पुत्र डॉ. भूपेंद्र सिंह शेखावत जयपुर में श्री बिशनसिंह शोध संस्थान चला रहे हैं। जिसमें स्वर्गीय बिशन जी पर आधारित कार्यक्रम व शोध को बढ़ावा दिया जाता है। इसी प्रकार बिशन जी के ज्येष्ठ पुत्र श्री जितेंद्र सिंह शेखावत भी अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए इतिहास बुन रहे हैं। जितेंद्र जी ने भी राजस्थान पत्रिका में अपने स्थाई स्तम्भ हेरीटेज दर्पण का दो दशक से अधिक समय तक लेखन कर अपने पिता के कीर्तिमान को आगे बढ़ाने का साहस किया। वे भी अब तक जयपुर के ऐतिहासिक महत्व और भूले बिसरे महत्वपूर्ण प्रसंगों, घटनाओं और कार्यो को नियमित उजागर कर रहे है।