पंडित श्री बिहारीलाल भट्ट का जन्म आश्विनश् शुक्ला विजयदशमी, सं. १९४६ वि. को बुंदेलखंड के अंतर्गत बिजावर में हुआ। इस ब्रह्मभट्ट वंश में कवि होते ही आए थे। पितामह दिलीप, जो अच्छे कवि थे, की देखरेख में बिहारीलाल का बाल्यकाल बीता और उन्हीं के द्वारा इन्हें प्रारंभिक शिक्षा भी मिली। बिजावर राज्य के मुसाहिब हनुमतप्रसाद बिहारीलाल के काव्यगुरु थे। दस वर्ष की अवस्था से ही ये काव्यरचना करने लगे थे। बिजावरनरेश सावंतसिंह जू देव इनके आश्रयदाता थे। उन्होंने इनकी जीविका का भी समुचित प्रबंध किया था। इसके अतिरिक्त ओरछा, पन्ना, चरखारी, अजयगढ़, छतरपुर और धौलपुर के राजाओं ने भी इनका यथोचित सम्मान किया था।

कवि बिहारीलाल श्री कृष्ण के सात दृष्टिकोण कर्त हुए

तीन वर्ष के सतत्‌ परिश्रम और अपने आश्रयदाता सावंतसिंह जू देव की आज्ञा से बिहारीलाल ने "साहित्यसागर' संज्ञक प्रसिद्ध रीतिबद्ध दशांग काव्य की रचना की। इसमें दो खंड, १५ तरंग, ६०० पृष्ठ और लगभग २,००० छंद हैं जिसमें लक्षण ग्रंथों की परिपाटीविहित पद्धति पर ही साहित्यिक लक्षण, काव्यलक्षण, काव्यकारण, काव्यप्रयोजन, गुण, वृत्ति, शब्दवृत्ति, तुक, रसांग नायक-नायिका-भेद, अलंकार, दोष, चित्रकाव्य, निर्वाण और दान आदि का वर्णन भेदोपभेदों के साथ किया गया है। लक्षण उदाहरण पद्यबद्ध ही दिए गए हैं।

कवि की दृष्टि में अध्यात्म का विशेष महत्व है। उसके विचार से "कवि उस (भगवत्‌) की कला का कलेवर है जहाँ से मनुष्य की वाणी का प्रभाव जीवों पर पड़ने लगता है। वहाँ से वह मनुष्य कवि कोटि में जाता है।' उनकी मान्यता है कि कवि चार प्रकार के होते हैं-

(१) ब्रह्मकोटि, (२) ईशकोटि, (३) जीवकोटि और (४) विश्वकोटि।

तपोपूत और ब्रह्मसाक्षात्कारी वाल्मीकि व्यासादि कवि ब्रह्म कोटि, मलरहित अंत:करणवाले और ईश्वरसाक्षात्कारी कवि चंद, सूर, तुलसी आदि कवि ईशकोटि, दिव्यरूप का जिनको लक्ष्य रहता है और जीव जिनकी वाणी के वशवर्ती हैं, वे भूषण आदि कवि जीवकोटि और धर्मशास्त्र-बल-संपन्न एवं विद्या साहित्यादि साक्षात्कारी तथा जगत्जाग्रतकारी कवि विश्वकोटि में आते हैं।

नायिकाभेद में अध्यात्म तत्व की प्रतिष्ठा करने और उसके क्रम में एकसूत्रता तथा श्रृंखलाबद्धता के लिए उन्होंने अपने "साहित्यसागर' में नवीन प्रयास किए हैं, जैसे, एक नायिका उत्कंठिता है, गमन करने पर वही अभिसारिका हुई, पुन: संकेत पर विप्रलब्धा योग से वही विप्रब्ध हुई, इत्यादि। चित्रकाव्य में भी कुछ नवीनता है। इस प्रवृत्ति के अन्य कवियों की भाँति श्रृंगार ही उनका भी प्रमुख वर्ण्यविषय था।

इसके साथ ही बैराग्य बावनी, शरीर सप्तक, गांधी गमन, गीता का ब्रज भाषा में अनुवाद जिसे ज्ञान गीतावली, भी कहते हैं जैसी सैकड़ों ग्रंथों की रचना की।'''

संदर्भ ग्रंथ संपादित करें

  • बिहारीलाल भट्ट : "साहित्य सागर (प्रथम व द्वितीय भाग) गंगा फाइन आर्ट प्रेस, लखनऊ, सं. १९९४;
  • "हिंदी साहित्य कोश' भा. २, ज्ञानमंडल लिमिटेड, संपादक डॉ॰ धीरेंद्र वर्मा तथा अन्य वाराणसी, सं. २०२०;
  • डॉ॰ भगीरथ मिश्र, हिंदी काव्यशास्त्र का इतिहास' लखनऊ विश्वविद्यालय प्रकाशन, स.