बीकानेर किला
बड़ा किला अधिक नवीन है तथा इसका निर्माण महाराजा रायसिंह (१५८९-९४ AD) के समय हुआ था और शहरपनाह के कोट दरवाजे से लगभग ३०० गज की दूरी पर है। इसकी परिधि १०७८ गज है। भीतर प्रवेश करने के लिए दो प्रधान द्वार हैं, जिनके बाद फिर तीन या चार दरवाजे हैं। कोट में स्थान-स्थान पर प्राय: ४० फुट ऊँची बुर्जे हैं और चारों ओर खाई बनी हुई है, जो ऊपर ३० फुट चौड़ी होकर नीचे तंग होती गई है। इस खाई की गहराई २० से ५० फुट तक है। प्रसिद्ध है कि इस किले पर कई बार आक्रमण हुए पर शत्रु बल पूर्वक इस पर कभी अधिकार न कर पाए।
किले का प्रवेश द्वार 'कर्णपोल' है। इसके आगे के दरवाजों में एक सूरज पोल है, जिसके दोनों पार्श्वो पर विशालकाय हाथी पर बैठी हुई दो मूर्तियां हैं, जो प्रसिद्ध वीर जयमल मेड़तिया (राठौड़) और फत्ता (चुंडावत)की (जो चितौड़गढ़ में बादशाह अकबर के मुकाबले में वीरतापूर्वक लड़कर मारे गए थे) बतलाई जाती हैं। आगे बहुत बड़ा चौक है, जिसमें एक तरफ पंक्ति बद्ध मरदाने और जनाने महल हैं। ये महल बड़े भव्य एवं सुंदर बने हुए हैं। इन महलों के भीतर कई जगह कांच की पच्चीकारी और सुनहरी कलम आदि का बहुत सुन्दर काम है, जो भारतीय कला का उत्तम नमूना है। इन राजमहलो की दीवारों पर रंगीन पलस्तर किया हुआ है, जिससे उनका सौंदर्य बढ़ गया है। राजमहलों के निर्माण में बहुधा अब तक के प्राय: सभी महाराजाओं का हाथ रहा है। पहले के राजाओं के बनवाए हुए स्थानों में महाराजा रायसिंह का चौबारा, महाराजा गजसिंह का फूलमहल, चन्द्रमहल, गजमंदिर तथा कचहरी, महाराजा सूरतसिंह का अनुपमहल, महाराजा सरदार सिंह का बनवाया हुआ रत्नमंदिर और महाराजा डूंगर सिंह का छत्रमहल, चीनी बुर्ज, गनपत निवास, लाल निवास, सरदार निवास, गंगा निवास, सोहन भुर्ज (बुर्ज), सुनहरी भुर्ज (बुर्ज) तथा कोढ़ी शक्त निवास है। बाद के राजाओं ने भी समय समय पर नवीन भवन बनवाकर उनकी शोभा बढ़ा दी है। इन महलों में दलेल निवास और गंगा निवास नामक विशाल कक्ष मुख्य है। गंगा निवास में लाल रंग के खुदाई के काम हुए पत्थर लगे हैं। छत की लकड़ी पर भी खुदाई का काम है। इसका फर्श संगमरमर का बना है। किले के भीतर फारसी, संस्कृत, प्राकृत और राजस्थानी भाषा की हस्तलिखित पुस्तकों का एक बड़ा पुस्तकालय है। इस पुस्तकालय में संस्कृत पुस्तकों का बड़ा भारी संग्रह है, जिनमें से कई तो ऐसी हैं जो अन्यत्र नहीं हीं मिल सकतीं। मेवाड़ के महाराजा कुंभा (कुंभकर्ण) के संगीत ग्रन्थ का पूरा संग्रह भारत वर्ष के केवल इसी पुस्तकालय में है। किले के भीतर का शस्रागार भी देखने योग्य है। इसमें प्राचीन अस्र-शस्रों का अच्छा संग्रह है। वहीं एक कमरे में कई पीतल की मूर्तियां रक्खी हुई हैं, जो तैंतीस करोड़ देवता के नाम से पूजी जाती हैं। ये मूर्तियां महाराजा अनूपसिंह ने दक्षिण में रहते समय मुसलमानों के हाथ से बचाकर यहां पहुँचाई थी।
किले के एक हिस्से में बीकानेर राज्य के उत्तरी भाग के रंगमहल, बड़ोपल आदि गांवों से प्राप्त पकी हुई मिट्टी की बनी बहुत प्राचीन वस्तुओं का बड़ा संग्रह है, जिसका श्रेय डाँ० टैसिटोरी को है। इस सामग्री को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:-
- खुदाई के काम की ईंटे तथा पकी हुई मिट्टी के बने हुए स्तंभ आदि।
- पकी हुई मिट्टी की सादी और उभरी हुई मूर्तियां आदि।
खुदाई के काम की ईंटों में हड़जोरा (Acanthus) की बहुत ही सुंदर पत्तियां बनी है। इसके अतिरिक्त उनपर मथुरा शैली और किसी-किसी पर गंधार शैली की छाप स्पष्ट प्रतीत होती है। इनमें से एक में बैठे हुए दो बैलों की आकृतियां बनी हुई है। दूसरे में एक राक्षस का सिर हड़जोरा की पत्तियों के मध्य बना हुआ है। इण्ड़ोपर्सिपोलिटन शैली के शिरस्तंभों में हाथी और गरुड़ तथा सिंह की सम्मिलित आकृतियां है। पकी हुई मिट्टी के सिरे बनावट से बहुत प्राचीन दिखते हैं। इनमें तथा अन्य आकृतियों में मथुरा शैली का अनुकरण मिलता है। इनमें कुछ वैष्णव मूर्तियों का भी संग्रह मिलता है। महिषासुरमर्दिनीकी चार भुजावाली मूर्ति के अतिरिक्त विष्णु के वामनावतार और रुद की अजैकपाद की मूर्तियां उल्लेखनीय हैं। उभरी हुई खुदाई के काम की मूर्तियों में कृष्ण की गोवर्धन लीला, नागलीला और राधा कृष्ण की मूर्तियां भी महत्वपूर्ण है। ये मूर्तियां अब वहीं पर निर्मित एक संग्रहालय में सुरक्षित है।
किले के भीतर एक घंटा घर, दो बगीचे और चार कुएँ हैं, जो प्राय: ३६० फुट गहरे हैं। इनमें एक का जल बीकानेर में सर्वोत्कृष्ट माना जाता है। किले के कर्ण पोल के सामने सूरसागर के निकट विशाल और मनोहर गंगानिवास पब्लिक उद्यान है। इस उद्यान का उद्घाटन तात्कालीन वायसराय लार्ड हार्किंडग के हाथ से १९१५ ई० के नबंबर माह में हुआ। इसके प्रधान प्रवेश द्वार का नाम क्वीन एम्प्रेस मेरी गेट है। किले के सामने के एक किनारे पर महाराजा डूंगर सिंह की संगमरमर की मूर्ति लगी है, जिसके ऊपर संगमरमर का शिखर बना हुआ है। इसी उद्यान में एक तरफ एजर्टन ट्ैंक बना है जिसके निकट ही इस दौर के महाराजा साहब की अश्वारुढ़ कांसे की प्रतिमा भी लगी है।