वीर सिंह जूदेव

(बीरसिंह देव से अनुप्रेषित)

वीर सिंह जुदेव बुन्देला, बुन्देलखण्ड के सबसे प्रतापी राजा थे । वे राजा मधुकर शाह बुन्देला के पुत्र थे। माता कुंवर गणेश राजे जो भगवान राम की अनन्य भक्त थीं। इन्होने बहुत किले व तालाबों का निर्माण अपने राज्यकाल में कराया। इन में सबसे प्रमुख है झाँसी का किला, दतिया का किला, दतिया में वीर सिंह बुन्देला महल, लक्ष्मी तालाब (झाँसी) जुझार सागर, एरच दिनारा का तालाब, बरुआसागर का तालाब आदि।

आरम्भ से मुगल राजकुमार सलीम की सेवा में रहे। शेख अबुलफजल की हत्या कर देने पर यह सम्राट् अकबर के हुए। जब सलीम (जहाँगीर के नाम से) सिंहासनारूढ़ हुआ तब इन्हें तीनहजारी मंसब मिला। दक्षिण प्रदेश में कार्यकुशलता का परिचय देने पर इसके मंसब में वृद्धि हुई। जहाँगीर और शाहजहाँ के मनोमालिन्य के समय सुल्तान पर्वेज के साथ शाहजहाँ का पीछा करने पर नियुक्त हुए। इन्होंने बहुत से प्रदेश अपने अधीन कर लिए थे। १६२७ में इसी मृत्यु हुई। मथुरा का प्रसिद्ध मंदिर, जिसे औरंगजेब ने मस्जिद का रूप दे दिया, इन्हीं के द्वारा बनवाया गया था। वीर सिंह जुदेव बुन्देला के बाद उनकी तीन रानियों में ज्येष्ठ पुत्र झुझार सिंह बुन्देला बने।[1]

नरवर का युद्ध संपादित करें

इन्होने अपने कार्यकाल में बहुत से युद्ध लड़े। इनमे सबसे प्रमुख है नरवर का युद्ध। जब बुन्देलखण्ड पर अकबर की सेना ने आक्रमण किया तो वीर सिंह जू देव बुन्देला और उनके सेनापति रायमन सिंह दाऊआ (यादवराय) ने अकबर की  सेना से युद्ध लड़ा। वीर बुन्देलों ने रायमन दाऊआ की सहायता से मुगलो परास्त किया व उसके सेनापति अबुल फजल मारा गया मुगल सेना वापस आगरा भाग गई।

सन्दर्भ संपादित करें

  1. रवींद्र के., जैनी. इतिहास और किंवदंती के बीच: बुंदेलखंड में स्थिति और शक्ति.