बुद्ध के पदचिह्नों को बुद्धपद कहते हैं। इनकी सभी बौद्ध देशों में उपासना की जाती है। उक्त पद में सभी अँगुलियाँ एक आकार की होती है। बुद्धपद पत्थर के बने होते हैं। इनके ऊपर कुछ विशेष आकृतियाँ (भगवान विष्णु की तरह) खुदी होती हैं। बीच में चक्र बना होता है। इसके चारों तरफ 32, 108 या 132 बुद्ध से संबंधित विभिन्न चौकोर आकृतियाँ बनी होती हैं।

बौद्ध धर्म

की श्रेणी का हिस्सा

बौद्ध धर्म का इतिहास
· बौद्ध धर्म का कालक्रम
· बौद्ध संस्कृति
बुनियादी मनोभाव
चार आर्य सत्य ·
आर्य अष्टांग मार्ग ·
निर्वाण · त्रिरत्न · पँचशील
अहम व्यक्ति
गौतम बुद्ध · बोधिसत्व
क्षेत्रानुसार बौद्ध धर्म
दक्षिण-पूर्वी बौद्ध धर्म
· चीनी बौद्ध धर्म
· तिब्बती बौद्ध धर्म ·
पश्चिमी बौद्ध धर्म
बौद्ध साम्प्रदाय
थेरावाद · महायान
· वज्रयान
बौद्ध साहित्य
त्रिपतक · पाळी ग्रंथ संग्रह
· विनय
· पाऴि सूत्र · महायान सूत्र
· अभिधर्म · बौद्ध तंत्र

बौद्ध स्तूप- संपादित करें

बौद्ध धर्म में बुद्ध के आदर्श शारीरिक अनुपातों के अनुसार धार्मिक स्मारकों की संरचना की जाती है। इनकी संरचना भारतीय समाधियों व छतरियों से प्रेरित होती है। इन समाधियों के नीचे साधु-संतों के शवों को रखा जाता था। उनकी देह को गड्ढे में बैठा दिया जाता था और फिर मिट्टी से ढँक दिया जाता था। सभी संतों की समाधियों को पवित्र स्थल माना जाता है। कई समाधियाँ तो तीर्थस्थल के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। रुवानवेलिसीया या 'महास्तूप' श्रीलंका के अनुराधापुरा के स्तूपों का मुख्य स्तूप है। यह 300 फुट ऊँचा है और ईंटों का बना हुआ सबसे पुराना ढाँचा है। इस स्तूप को राजा दत्तूगमुनू ने बनवाया था। इस स्तूप की संरचना थाइलैण्ड, बर्मा और अन्य देशों के बौद्ध धार्मिक स्मारकों में भी दोहराई गई है, जहाँ पर श्रीलंका के बौद्ध मठवासियों द्वारा प्रचार किया गया था।

स्तूप के मूल ढाँचे में चौरस आधारशिला होती है जो भूमि का प्रतीक है। इसमें तेरह सीढ़ियाँ होती हैं जो अग्नि का प्रतीक है। ये सीढ़ियाँ एक छत्री पर जाकर समाप्त होती हैं जो वायु का प्रतीक हैं। इन सब के ऊपर आकाशीय खगोल बना हुआ होता है जो स्तूप का मुकुट होता है।

स्तूप के प्रतीकात्मक रूप संपादित करें

तीर्थ यात्रा
बौद्ध
धार्मिक स्थल
 
चार मुख्य स्थल
लुंबिनी · बोध गया
सारनाथ · कुशीनगर
चार अन्य स्थल
श्रावस्ती · राजगीर
सनकिस्सा · वैशाली
अन्य स्थल
पटना · गया
  कौशांबी · मथुरा
कपिलवस्तु · देवदह
केसरिया · पावा
नालंदा · वाराणसी
बाद के स्थल
साँची · रत्नागिरी
एल्लोरा · अजंता
भरहुत · दीक्षाभूमि
  • स्तूप के सबसे ऊपर अग्नि की लौ को दर्शाता शिखर होता है, जो सर्वोच्च प्रबोधन का प्रतीक है।
  • स्तूप पर बने दो प्रतीक (सूर्य-चंद्रमा) परम सत्य और अन्योन्याश्रयी सत्य के बीच मेल को इंगित करते हैं।
  • स्तूप की छत्री का मतलब बुराई से सुरक्षा होता है।
  • तेरह सीढ़ियों में से पहली दस सीढ़ियाँ 'दशा-भूमि' को दर्शाती हैं और आखिर की तीन सीढ़ियाँ 'अवेणिका-समृत्युपष्थाना' को इंगित करती हैं।
  • स्तूप का गुम्बज 'धातु-गर्भ' की ओर इशारा करता है और स्तूप का आधार पाताल का प्रतीकात्मक रूप है।
  • आधार या परिषद चौकोर होता है, जो बौद्ध धर्म के आर्य चतुर्सत्य का प्रतीक है।