बुन्सन ज्वालक एक विशेष प्रकार का गैस ज्वालक है। गैस को जलाने से पूर्व इसमें वायु की एक निश्चित मात्रा मिलाने की युक्ति होती है। ऐसा करने हेतु इसमें एक नली रहती हैं, जिसके आधार के पार्श्व में वायु आने हेतु छिद्र होते हैं। गैस नीचे की ओर से आती है। यदि गैस और वायु का ठीक अनुपात में मिश्रण हो, तो यह मिश्रण जलने पर तप्त, किंतु ज्योतिहीन तथा निर्धूम ज्वाला देता है। बुन्सन ज्वाला प्राप्त करने हेतु गैस और वायु का, आयतनानुसार, लगभग 3 : 1 का अनुपात होना चाहिए। इस प्रकार की ज्वाला के भीतरी निचले क्षेत्र में जलवाष्प, कार्बन मोनोक्साइड, नाइट्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड तथा हाइड्रोजन का मिश्रण रहता है। ज्वाला के बाह्य दहन क्षेत्र में गैस और नाइट्रोजन पहुँचती है। गैस वायु की अधिक मात्रा के आने पर जल उठती है। ज्वाला और धौंकनी की सहायता से गलन और ऑक्सीकरण की क्रियाएँ संभव हैं। कुछ धात्विक लवण इस रंगहीन ज्वाला को विशिष्ट रंग देते हैं।

बुन्सन ज्वालक
उपयोग उत्तापन
रोगाणुनाशन
दहन
आविष्कारक रोबर्ट बुन्सन

इस प्रकार के ज्वालक के आविष्कार का श्रेय रोबर्ट बुन्सन को दिया जाता है, परन्तु बाद की खोजों से पता चला है कि इसका वास्तविक डिज़ाइन पीटर डेसगा (Peter Desaga) ने बनाया था और इनसे भी बहुत पूर्व इसी सिद्धांत पर माइखल फ़ेरडे ने एक समंजनीय गैस ज्वालक बनाया था। बुन्सन ज्वाला उत्पन्न करने के इस सिद्धांत पर बने आज करोड़ों ज्वालक प्रयोगशालाओं में काम में आ रहे हैं।

हवा और गैस के मिश्रण और नियंत्रण की अलग अलग विधियों के कारण बुन्सन ज्वालक के अनेक भेद हो गए हैं, जिनमें ऊष्मा कम या अधिक और ज्वाला छोटी या बड़ी होती है। इनमें मेकर ज्वालक और फिशर ज्वालक अधिक प्रसिद्ध हैं। मार्शल ज्वालक में केंद्रीय गैस जेट संबंधी त्रुटियों को दूर करने के लिए गैस को पार्श्व से और हवा को नीचे से नली में प्रवेश कराते हैं। इसके नीचे की ओर एक नियंत्रक होता है। कोयला गैस, तेल गैस और ऐसेटिलीन गैस को जलाने के लिए भी बुन्सन ज्वालक बनाए जाते हैं।

संरचना संपादित करें

 
1. ज्वालक नली 2. वायु नियन्त्रक 3. तुण्ड 4. गैस नली

आधार संपादित करें

धातु से बना भारी आधार पार्श्व नली, जिसे गैस नली कहते हैं, से जुड़ा रहता है। स्रोत से आई गैस, नली द्वारा ज्वालक में प्रवेश करती है तथा तुण्ड नामक छोटे से छिद्र से निकलकर ज्वालक की नली में उच्च दाब पर पहुँचती है और ज्वालट की नली के ऊपरी भाग में जलाई जा सकती हैं।

ज्वालक नली संपादित करें

यह एक लम्बी धात्विक नली होती है जिसके निचले सिरे के पास दो छिद्र परस्पर के मुखाभिमुखी स्थित होते हैं और ये वायु-निकास बनाते हैं। नली को आधार की चूड़ियों पर कसा या खोला जा सकता है। तुण्ड से आने वाली गैस वायु निकास से आने वाली वायु से मिश्रित होकर नली के ऊपरी छोर पर जलती हैं।

वायु नियन्त्रक संपादित करें

यह एक छोटा सा बेलनाकार धात्विक खोल होता है। जिसमें मुखाभिमुखी दो छिद्र होते हैं। जब इसे ज्वालक की नली पर लगा दिया जाता है तो यह ज्वालक की नली के वायु निकास को ढक लेती है। निकास से वायु के प्रवाह को नियन्त्रित करने हेतु खोल को घुमा कर छिद्र का आकार समायोजित कर लिया जाता है।

बुन्सन ज्वाला के भाग संपादित करें

 
 

अन्तः तिमिर क्षेत्र संपादित करें

ज्वाला का अन्तः तिमिर क्षेत्र, ज्वाला नली के ठीक ऊपर होता है। यह बिना जली गैसो से बना होता है। यह क्षेत्र ज्वाला का सबसे कम गरम भाग होता है जहाँ कोई दहन नहीं होता।

मध्य नील क्षेत्र संपादित करें

यह ज्वाला का मध्य भाग होता है। जब वायु निकास थोड़ा सा बन्द होता है तो यह दीप्त हो जाता है। इस भाग की दीप्ति गैस के आंशिक दहन से उत्पन्न कार्बन कणों की उपस्थिति के कारण होती है। यह कण तापदीप्ति तक गरम होकर चमकने लगते हैं किन्तु जलते नहीं। इस भाग में दहन सम्पूर्ण न हो पाने के कारण ताप अत्यधिक नहीं होता।

बाह्य अदीप्त प्रावार संपादित करें

यह बैंगनी रंग का बाह्य क्षेत्र है। यह ज्याला का सबसे गरम भाग होता है। वह वायुमण्डल के सोधे सम्पर्क में रहता है और इस क्षेत्र में दहन सम्पूर्ण हो जाता है।

ज्वाला के इन तीन प्रमुख क्षेत्रों में छः मण्डल अभिनिर्धारित किए गए हैं:

  • ऊपरी ऑक्सीकरण मण्डल: इसका स्थान ज्वाला की अदीप्त नोंक पर होता है जो वायु में रहती है। ज्वाला के भीतरी भागों की अपेक्षा यहाँ ऑक्सीजन का आधिक्य होता है। ताप उतना अधिक नहीं होता जितना कि नीचे वर्णित मण्डल में यह भाग उन ऑक्सीकरण प्रक्रमों हेतु प्रयोग में लाया जा सकता है जिनमें ज्वाला के अधिकतम ताप की आवश्यकता नहीं होती।
  • ऊपरी अपचयी मण्डल: यह मण्डल मध्य नील क्षेत्र की नोक पर स्थित होता है और तापदीप्त कार्बन से भरपूर होता है। यह धातु ऑक्साइडों की पर्पटियों को धातु में अपचित करने हेतु विशेष उपयोगी होता है।
  • उष्णतम भाग: यह संगलन मण्डल है। यह ज्वाला की लगभग एक तृतीय औच्च्य पर प्रावार अर्थात् बाह्य क्षेत्र में भीतर और बाहर से लगभग समान दूरी पर स्थित होता है। पदार्थ के संलग की जाँच इस भाग में की जा सकती है। पदार्थों अथवा पदार्थों के मिश्रण का आपेक्षिक वाष्पन भी इस भाग में जाँचा जा सकता है।
  • निम्न ऑक्सीकरण मण्डल: यह प्रावार के बाह्य किनारे पर ज्वाला के निम्न भाग में स्थित होता है और इसे बोरेक्स अथवा सोडियम कार्बोनेट की मणिका में घुले हुए पदार्थ के ऑक्सीकरण हेतु प्रयोग में लाया जा सकता है।
  • निम्न अपचयी मण्डल: यह बाह्य प्रावार के भीतरी किनारे पर नीले क्षेत्र के पास स्थित होता है और यहीं अपचयी गैसें वायु की ऑक्सीजन से मिश्रित होती है। यह ऊपरी अपचयी मण्डल से कम शक्तिशाली अपचयी मण्डल है और इसे गलित बोरेक्स या ऐसी ही मणिका के अपचयन हेतु कार्य लाया जा सकता है।
  • न्यूनतम ताप मण्डल: इस मण्डल का नाम न्यूनतम होता है। यह वाष्पित हो सकने वाले पदार्थों के प्रेक्षण में यह सुनिश्चित करने हेतु प्रयोग में लाया जाता है कि ज्वाला को रंग प्रदान करते हैं अथवा नहीं।

सन्दर्भ संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें